गांव की प्रधान पुष्पा देवी भी नेटवर्क की समस्या से परेशान हैं. उनका कहना है कि मुझे भी अपने काम से जुड़ी फ़ाइल को व्हाट्सप्प या ई-मेल से अधिकारियों तक भेजने अथवा डाउनलोड करने में परेशानी आती है. इसके लिए उपर पहाड़ी पर जाती हूं और जब वहां नेटवर्क आता है तो मैं अपना काम करती हूं. उन्होंने बताया कि कई बार अधिकारियों और स्थानीय विधायक के साथ मीटिंग में इस समस्या को उठा चुकी हैं, लेकिन अभी तक इसपर किसी ने भी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है. वहीं सामाजिक कार्यकर्ता नीलम ग्रेंडी कहती हैं कि नेटवर्क की कमी ने पोथिंग गांव के विकास को सबसे अधिक बाधित किया है. कई बार तो ऐसा होता है कि गांव में अगर कोई बीमार हो जाए तो इस इमर्जेन्सी हालत में भी किसी से संपर्क भी नहीं कर पाते हैं. न तो डॉक्टर से सलाह मिल पाती है और न ही हम समय पर एंबुलेंस बुला पाते हैं. गांव के युवा समय पर नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर पाते हैं और न ही उन्हें समय पर प्रतियोगिता परीक्षा से संबंधित जानकारियां उपलब्ध हो पाती हैं. नेटवर्क की इस समस्या से केवल पोथिंग गांव ही नहीं बल्कि उसके आसपास के गांव जैसे उछात, तल्ला घुरड़ी, मांतोली और जलजिला भी प्रभावित हैं. जहां ग्रामीणों को दोहरी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. एक ओर जहां इन गांवों में कई प्रकार की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है तो वहीं नेटवर्क की कमी इस मुश्किल को और भी बढ़ा देती है. 5G की दौर में पोथिंग गांव के लोगों को 2G जैसी सुविधा भी मयस्सर नहीं है. दरअसल सरकार गांवों के विकास के लिए योजनाएं तो बहुत चलाती है लेकिन कई बार वह धरातल पर नज़र नहीं आती है. ऐसा लगता है कि सरकार की नज़र में विकास और नेटवर्क दोनों ही इस गांव की पहुंच से बाहर है.
पोथिंग, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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