बेटे धन दौलत के लोभी, बेटी सुख-दुःख की साथी,
फिर क्यों नही ये बात समझ में आती।।
बेटे तो मां-बाप की दौलत के आगे-पीछे भागे,
सदा रहे खुशहाल मां-बाप, बेटी यही दुआ मांगे।।
बेटी होती घर की रौनक,
समाज कहां समझता यह बातें,
बेटी को कोई समझ न पाते,
बेटी हो तो मार डालते।।
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ,
समाज न समझे यह बातें।।
दीक्षा बोरा
पिंगलो, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड
चरखा फीचर
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