सड़क किनारे रोजगार की तलाश में रहने लोग अपने बालक बालिकाओं के साथ में रहते हैं ।जो बहुत विकट परिस्थिति में रहते होंगे।आज इनका डेरा यहां तो कल कहीं और अन्यस्थान पर जाने को मिलेगा। परंतु कोई ठिकाना नहीं बाल बच्चों की पढ़ाई का कोई आसरा नहीं। क्योंकि हम आज यहां है तो कल नहीं टीम के समझा ईस करने पर भी कोई भी बालक बालिका पास आने पर बैठने के लिए तैयार नहीं थे।क्योंकि वह बताते थे कि आप तो लिख कर ले जाओगे परंतु हमें प्रशासन की खबर लगते ही यहां पर से हटा दिया जाएगा। इसलिए हमें तो इसी हाल में मस्त रहने दो।अगर खाने का कुछ होतो देते जाओ एवं हमारे लिए कुछ कर सकते हो तो हमारे रहने का ठिकाना कर दो हमारे दो बीस से सत्ताईस बालक बालिकाए है जो अभी सात सै दस वर्ष की उम्र के है परन्तु आज तक विघालय नहीं दैखा है।क्योंकि हमारा कोई स्थाई ठीकाना नहीं है। टीम की चौपाल में अनेकों प्रकार की समस्याएं निकल कर सामने आई 7 नाबालिग बालक बालिकाएं दिव्यांग होनै पर भी लाभ नहीं मिल रहा है ।यह सभी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की पहुंच से दूर है.चार वृद्धजनों को अपनी वृद्धा पेंशन का इंतजार था ।शायद उम्र के अंतिम पड़ाव पर है! परंतु क्या मालूम पेंशन यहां मिलेगी या ऊपर मिलेगी! उसका भी कोई ठिकाना नहीं यह तो भगवान ही जाने । हमारी इन सभी बातों को सरकार तक पहूचाने मै आप हमारी मदद करना। टीम के कमलेश बुनकर द्वारा बताया गया कि इन सभी समस्याओं को एकत्र कर जिला प्रशासन को अवगत करवाने के साथ ही हमारे द्वारा सभी की मदद की जाएगी एवं जो बालक शिक्षा से वचिंत है उनको भी तत्काल जोडा जाएगा दिव्यांग जनो को भी हर प्रकार की योजनाओं से प्रशासन के सहयोग से जोडा जाएगा।एवं सडक किनारे रहनै वालो के लिए पहली प्राथमिकता हमारी यह होगी की हम उन्हें शिक्षा से जोड पाए उसके लिए बारी बारी से टीम बालक बालिकाओं को पढाने जाएगी एवं रिपोर्ट जिला प्रशासन को भेजैगै टीम की चौपाल मै बासुडा कटारा शोभा सोनी ,नरेश चन्द्र पाटीदार एवं कान्तिलाल यादव उपस्थित रहे।
आजादी के 75 वर्ष बाद भी आज गांव कस्बे एवं स्थानीय लोगों की हालात बद से बदतर है । सरकार अनेकों योजनाओं को संचालित करती है ।परंतु हम लोगों तक आज भी पहुंच नहीं पाई है ।आखिर हम क्या करें।विश्व के अनेक देशों को हम अनाज एवं अन्य अनेक प्रकार की सहयोग भेजते है।वहीं इसके उलट गावों मै आज भी हालात खराब है लोग आज भी किस स्थिति में रहते हैं यह उन्हीं की जुबानी सुनने को अगर मिले तो अच्छा रहता है। कि किस प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े हुए हैं स्थानीय घर तक एवं स्थानीय बस्ती तक जाने के लिए रोड नहीं, लाइट नहीं बिजली नहीं है गंदगी का अंबार भरा हुआ है,एवं झोपड़पट्टी मै रहने वालो की तो दुनिया ही निराली है।साहब जी यहीं हमारी दुनिया है। अन्दर पानी टपकता है, बच्चे बीमार होते हैं तो घर पर ही इलाज होता है। यह सभी आज भी होता है। टीम के जिला समन्वयक परमेश पाटीदार के द्वारा बताया की जब चाइल्ड हेल्प लाइन 1098 की टीम गांव निचला घन्टाला के मईडा बस्ती मै चौपाल लगाई तो यह वाक्य सुनने में आया कि आप तो हमारी वेदना को सरकार तक पहुंचाओ सरकार और कहां है हम लोग की आजादी के इतने वर्षों बाद भी हमारे अधिकारों की हम तक पहुंच नहीं हुई है। केवल कागज के टुकड़े पर नए-नए योजनाओं को लाभान्वित करने के लिए योजनाएं सीमित होती है। पहले भामाशाह कार्ड ,जन आधार कार्ड और अगली सरकार बनते ही कौन सा कार्ड आएगा हमें नहीं मालूम। परंतु हमारा जो भी पैसा जेब में होता है वह भी इन योजनाओं के फोटो कॉपी एवं सरकार के ऑफिसों के चक्कर काटते काटते वह भी खत्म हो जाता है। परंतु हमारी जेब में कुछ नहीं आता हमारे बालक बालिकाएं आज भी पढ़ाई से वंचित है एवं दूर-दराज तक जाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है गांवों में आज भी बेरोजगारी का आलम है। पहले तो हम लोग और भी हमारे घर का गुजारा कर लेते थे परंतु आज आलम यह है कि 2 जून की रोटी बड़ी मुश्किल से जुगाड़ कर पाना आसान नहीं है। स्थानीय ग्रामीण एवं पुर्व वार्ड पचं ऊकार भाई नै बताया की हमारे गांव के वार्ड में आसपास 1 से 2 किलोमीटर में कोई स्थानीय विद्यालय नहीं होने से बीच में बालक बालिकाएं पढ़ाई छोड़ देते हैं ।साथ ही 8 से 10 दिव्यांग बालक बालिकाएं हैं जो आसपास के रहने वाले हैं जिनका भी सरकार की योजनाओं से जुड़ाव नहीं हो पाया है एवं 3 विधवा माता की संताने हैं जिनको पालनहार से भी जोड़ना है। इस प्रकार की कई समस्याओं से हमने आज अवगत करवाया है ।
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