नयी दिल्ली, 01 सितंबर, उच्चतम न्यायालय ने राज्य कानूनों के तहत विनियमित मंदिरों के कथित कुप्रबंधन अथवा वहां एकत्र किए गए धन के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले याचिकाकर्ताओं को सबूत पेश करने का गुरुवार को निर्देश दिया। मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने याचिकाकर्ता भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार और गोपाल शंकरनारायणन को जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों से संबंधित अतिरिक्त तथ्य दो सप्ताह के भीतर न्यायालय में पेश करने के लिए समय दिया। मामले की अगली सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तारीख मुकर्रर की गयी है। पीठ ने याचिकाकर्ता के उस दावे से संबंधित ठोस सबूत पेश करने को कहा, जिसमें कुप्रबंधन के कारण कर्मचारियों के भुगतान न होने पर 15,000 मंदिरों को बंद होने का दावा किया गया है। पांच राज्यों के धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियमों की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता ने ईसाइयों और मुसलमानों की तरह हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध धार्मिक स्थलों का प्रबंधन करने का अधिकार देने की इजाजत देने की गुहार लगाई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि नियम केवल हिंदू स्थानों के नहीं होने चाहिए। अन्य धर्मों पर भी इसे लागू किया जाना चाहिए या फिर सभी के लिए एक जैसा कानून हो। पीठ ने कहा, “ हमारा 150 साल पुराना इतिहास है और इन पूजा स्थलों ने समाज की बड़ी जरूरतों को पूरा किया है न कि केवल अपने उद्देश्य के लिए। कुछ मंदिरों ने सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अपनी जमीन भी दी है। आप हमें वापस लेने के लिए कह रहे हैं।” पीठ ने कहा, “हम संबंधित बयानों का संज्ञान लेंगे। कानूनी मुद्दों के अलावा हमारे पास इसके आधार पर ठोस उदाहरण होने चाहिए।” याचिकाकर्ता स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमन सिन्हा ने तर्क दिया कि धन के दुरुपयोग के मामले सामने आए हैं। इस पर पीठ ने पूछा कि क्या उन्होंने हेराफेरी के आरोपियों को याचिका का पक्षकार बनाया है। इस पर वकील ने अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसे पीठ ने स्वीकार कर लिया।
गुरुवार, 1 सितंबर 2022
सुप्रीम कोर्ट ने कुप्रबंधन के कारण मंदिरों के बंद होने का सबूत मांगा
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