आईईए के अधिशासी निदेशक फातिह बिरोल ने कहा “युक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई के परिणामस्वरूप ऊर्जा बाजार और नीतियां बदल गयी हैं। न सिर्फ अभी के लिये बल्कि आने वाले दशकों तक इसका असर बाकी रहेगा। यहां तक कि आज की नीतियों के तहत भी ऊर्जा की दुनिया हमारी आंखों के सामने नाटकीय रूप से बदल रही है। दुनिया भर की सरकारों द्वारा इस पर दी जा रही प्रतिक्रियाएं इसे एक अधिक स्वच्छ, ज्यादा किफायती और अधिक सुरक्षित ऊर्जा प्रणाली बनाने के लिहाज से ऐतिहासिक और निश्चयात्मक टर्निंग प्वाइंट साबित करेंगी।” पहली बार, आज की प्रचलित नीति व्यवस्था के आधार पर एक डब्ल्यूईओ परिदृश्य (इस मामले में, घोषित नीतियां परिदृश्य) में शिखर या उससे कुछ कम (plateau) प्रदर्शित करने वाले हर जीवाश्म ईंधन की वैश्विक मांग है। इस परिदृश्य में अगले कुछ सालों में कोयले का इस्तेमाल कम हो जाएगा, इस दशक के अंत तक प्राकृतिक गैस की मांग स्थिर हो जाएगी और इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती बिक्री का मतलब है कि इस सदी के मध्य तक कुछ कम होने से पहले 2030 के दशक के मध्य में तेल की मांग खत्म हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि जीवाश्म ईंधन की कुल मांग 2020 के मध्य से 2050 तक एक बड़े तेल क्षेत्र के जीवनकाल के उत्पादन के बराबर वार्षिक औसत से लगातार घट रही है। डब्ल्यूईओ के अधिक जलवायु-केंद्रित परिदृश्यों में गिरावट बहुत तेज तथा अधिक स्पष्ट है। 18वीं सदी में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत से ही जीडीपी के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल भी बढ़ा है। इस वृद्धि को पलट देना ऊर्जा इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण होगा। घोषित नीतियों के परिदृश्य में वैश्विक ऊर्जा मिश्रण में जीवाश्म ईंधनकी हिस्सेदारी 2050 तक लगभग 80% से गिरकर 60% से अधिक हो जाएगी। वैश्विक स्तर पर कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन प्रति वर्ष 37 बिलियन टन के उच्च बिंदु से 2050 तक 32 बिलियन टन तक धीरे-धीरे वापस आ जाता है। यह वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत तापमान में लगभग 2.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ जुड़ा होगा, जो गंभीर जलवायु परिवर्तन प्रभावों से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है। सभी जलवायु प्रतिज्ञाओं पर पूरी तरह से अमल दुनिया को सुरक्षित भविष्य की ओर ले जाएगी, लेकिन आज की प्रतिज्ञाओं और वैश्विक तापमान में लगभग 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के स्थिरीकरण के बीच अब भी एक बड़ा अंतर है। आज सोलर पैनल, वायु, इलेक्ट्रिक वाहन और बैट्री के इस्तेमाल की बढ़ती दर अगर बरकरार रही तो इससे स्टेटेड पॉलिसीज सिनैरियो में अनुमानित गति से ज्यादा रफ्तार से रूपांतरण होगा। हालांकि इसके लिये सहयोगात्मक नीतियों की जरूरत होगी। न सिर्फ शुरुआती बढ़त बनाये बाजारों में बल्कि पूरी दुनिया में भी। बैट्री, सोलर पीवी और इलेक्ट्रोलाइजर समेत कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकियों की आपूर्ति श्रंखलाओं में उन दरों से वृद्धि हो रही है जो व्यापक वैश्विक महत्वाकांक्षा का समर्थन करती हैं। अगर सोलर पीवी के लिये घोषित सभी निर्माण विस्तार योजनाएं परवान चढ़ीं तो निर्माण क्षमता वर्ष 2030 में घोषित प्रतिज्ञा परिदृश्य में तैनाती के स्तर से लगभग 75% अधिक होगी। हाइड्रोजन उत्पादन के लिये इलेक्ट्रोलाइजर के मामले में सभी घोषित परियोजनाओं की क्षमता में सम्भावित वृद्धि करीब 50 प्रतिशत होगी।
इस साल के डब्ल्यूईओ के मुताबिक ऊर्जा निवेश में भारी वृद्धि करने के लिये अधिक मजबूत नीतियों की आवश्यकता होगी। यह निवेश भविष्य में कीमतों में होने वाली वृद्धि और भंगुरता के जोखिमों को कम करने लिये जरूरी होगा। वर्ष 2015-2020 की अवधि में कम कीमतों की वजह से ऊर्जा क्षेत्र में हुआ कम निवेश ऐसे खराब हालात के लिये जिम्मेदार रहा जिन्हें वर्ष 2022 में देखा जा रहा है। अगर स्टेट्स पॉलिसीज सिनेरियो में वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा में निवेश बढ़कर दो ट्रिलियन डॉलर तक हो जाता है तो वर्ष 2050 के नेट जीरो एमिशंस के लिये उसी तारीख तक चार ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश की जरूरत होगी। इससे ऊर्जा क्षेत्र में नये निवेशकों को आकर्षित करने की जरूरत भी रेखांकित होती है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं और उभरती हुई विकासशील अर्थव्यवस्था के बीच साफ ऊर्जा पर निवेश के स्तरों में व्याप्त चिंताजनक विभाजन को कम करने के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की अब भी फौरी जरूरत है। डॉक्टर बिरोल ने कहा “स्वच्छ ऊर्जा के लिए पर्यावरणीय मामले को सुदृढ़ करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन लागत-प्रतिस्पर्धी और सस्ती स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के पक्ष में आर्थिक तर्क अब मजबूत हैं - और ऐसा ही ऊर्जा सुरक्षा का मामला भी है। आज की आर्थिक, जलवायु और सुरक्षा प्राथमिकताओं के संरेखण ने केन्द्र को दुनिया के लोगों और धरती के लिए बेहतर परिणाम की ओर ले जाना शुरू कर दिया है।" “सभी को एक मंच पर लाना जरूरी है। खासतौर पर ऐसे वक्त जब ऊर्जा और जलवायु पर भू-राजनीतिक टूटन और ज्यादा साफ नजर आने लगी है। इसका मतलब है कि नयी ऊर्जा अर्थव्यवस्था में देशों का एक व्यापक गठजोड़ सुनिश्चित करने के प्रयासों को दोगुना करना होगा। हो सकता है कि अधिक सुरक्षित और सतत ऊर्जा प्रणाली सुनिश्चित करना आसान नहीं हो। मगर आज के संकट ने यह बिल्कुल साफ कर दिया है हमें इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत क्यों है।” क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा ‘‘दुनिया भर में ऊर्जा की कमजोरियों को उजागर करने वाली वैश्विक फॉल्टलाइन्स अक्षय ऊर्जा के तेजी से उत्थान की उन आवश्यकता को रेखांकित करती हैं जो कि डीकार्बनाइजेशन के केंद्र में होगी। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगी कि अर्थव्यवस्थाएं और भी अनिश्चित समय में बढ़ती रहें। भारत एक अनोखी स्थिति में खड़ा है। वह इस बात को सुनिश्चित कर सकता है कि सभी नए विकास कार्य अक्षय ऊर्जा से किये जाएं। युद्ध की शुरुआत के बाद से भारत सहित पूरी दुनिया में कोयले की कुल खपत बढ़ रही है। यह ध्यान करना उत्साहजनक है कि भारत अपनी अक्षय ऊर्जा उत्पादन की गति को निरंतर जारी रखे हुए है और यहां पीवी प्रौद्योगिकी फल-फूल रही है। हालांकि इसे अपने लक्ष्यों को पूरा करने और उत्सर्जन में काफी कमी लाने के लिए गैर-जीवाश्म ऊर्जा को दोगुना करने की जरूरत होगी, जो वर्तमान में आठ गीगाटन होने का अनुमान है। वर्ष 2050 के लिये सीओ2 पिछले वर्ष के आउटलुक से कम है। मुख्य रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में की गयी नेट जीरो उत्सर्जन सम्बन्धी प्रतिज्ञाओं के कारण।’’
रूस अब तक जीवाश्म ईंधन का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है, लेकिन यूक्रेन पर इसका आक्रमण वैश्विक ऊर्जा व्यापार की आमूल-चूल पुनर्रचना को प्रेरित कर रहा है, जिससे वह बहुत कमतर स्थिति में आ गया है। रूस के यूरोप से जुड़े जीवाश्म ईंधन पर आधारित सभी व्यापार संबंधों को अंततः यूरोप की नेट जीरो के सिलसिले में व्यक्त की गयी महत्वाकांक्षाओं के कारण पिछले डब्ल्यूईओ परिदृश्यों में कम कर दिया गया था, लेकिन अपेक्षाकृत कम लागत पर रूस की क्षमता का मतलब था कि इसने केवल धीरे-धीरे अपनी जमीन खोयी है। मगर अब यह दरार इतनी तेजी से आयी है जिसकी कुछ ही लोगों ने कल्पना की होगी। इस साल डब्ल्यूईओ के किसी भी परिदृश्य में रूस के जीवाश्म ईंधन का निर्यात वर्ष 2021 के स्तरों के बराबर कभी नहीं हो पायेगा। प्राकृतिक गैस के मामले में रूस का खासतौर पर एशियाई बाजारों में पुनर्रेखण चुनौतीपूर्ण होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार के दौर से गुजरने वाली ऊर्जा में रूस की हिस्सेदारी वर्ष 2021 में 20 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2030 में स्टेट पॉलिसीज सिनैरियो में घटकर 13 प्रतिशत पर आ गिरी है। वहीं, अमेरिका और मध्य एशिया की हिस्सेदारी बढ़ी है। गैस उपभोक्ताओं के लिए आगामी उत्तरी गोलार्ध की सर्दी एक खतरनाक क्षण और यूरोपीय संघ की एकजुटता के लिए एक इम्तेहान साबित होगी। वर्ष 2023-24 की सर्दी और भी कठिन हो सकती है। मगर दीर्घकालिक नजरिये से देखें तो रूस की हाल की कार्रवाइयों का एक प्रभाव यह भी है कि गैस की तेजी से बढ़ती मांग अब खात्मे की कगार पर है। स्टेटेड पॉलिसीज सिनैरियो में ऐसे परिदृश्य में जब गैस का सबसे ज्यादा इस्तेमाल हुआ, वर्ष 2021 से 2030 के बीच गैस की मांग में पांच प्रतिशत से भी कम वृद्धि होगी और फिर वर्ष 2050 तक यह एक समान बनी रहेगी। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में गैस के इस्तेमाल का सिलसिला धीमा पड़ा है। खासतौर पर दक्षिणी और दक्षिणपूर्वी एशिया में। इससे एक रूपांतरणकारी ईंधन के तौर पर गैस की साख को धक्का लगा है। डॉक्टर बिरोल ने कहा “हो रहे बड़े बदलावों के बीच, उत्सर्जन को कम करते हुए विश्वसनीयता और सामर्थ्य सुनिश्चित करने के लिए एक नए ऊर्जा सुरक्षा प्रतिमान की जरूरत है। यही वजह है कि इस साल का डब्ल्यूईओ 10 सिद्धांत उपलब्ध कराता है जिससे नीतिनिर्धारकों को ऐसी अवधि के माध्यम से रास्ता दिखाने में मदद मिल सकती है, जब जीवाश्म ईंधन में गिरावट और विस्तार लेती स्वच्छ ऊर्जा प्रणालियां सह-अस्तित्व में हैं। क्योंकि चूंकि उपभोक्ताओं के वास्ते आवश्यक ऊर्जा सेवाओं को वितरित करने के लिए दोनों प्रणालियों को ऊर्जा संक्रमण के दौरान अच्छी तरह से काम करने की जरूरत होती है। जैसे-जैसे दुनिया आज के ऊर्जा संकट से आगे बढ़ रही है, उसे उच्च और अस्थिर महत्वपूर्ण खनिज कीमतों या अत्यधिक केंद्रित स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला से उत्पन्न होने वाली नई कमजोरियों से बचने की जरूरत है।
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