अपने ही परिवार द्वारा बेचे जाने का रोहतास में यह अकेला मामला नहीं है. अपनों से ही ये दर्द पाने वाली इन बच्चियों की एक लंबी फेहरिस्त है. इसी साल फरवरी माह में बंजारी नाम की जगह में दो सगी नाबालिग बच्चियों की शादी राजस्थान के किन्हीं पुरुषों से कराया जा रहा था. इस शादी में भी राजस्थान से आए लोगों ने नाबालिग बच्चियों को उसके भाई उपेन्द्र भुइया और भाभी सुनीता देवी से महज दस हजार रूपये में खरीद लिया था. इन दोनों बच्चियों के माता पिता की मृत्यु हो चुकी है. इनका सौदा रोहतास के बकनौरा की बुंचिया कुंवर और समहुता पंचायत की संतोषी देवी नाम की महिला कराया था. हालांकि बाद में ये शादी भी परिवर्तन विकास संस्था की पहल पर रूक गई. इस तरह के मामले लगातार सामने आने के बाद फ़रवरी 2022 में रोहतास के जिलाधिकारी धर्मेन्द्र कुमार ने एक जांच टीम का गठन भी किया था, लेकिन अब तक इसका नतीजा सिफर ही रहा. नवंबर 2022 में ही जिले के नासरीगंज थाने की एक लड़की को राजस्थान के नीमाका थाना (सीकर) से बरामद किया गया था. इस मामले में रोहतास के पिपरडीह की ही रहने वाली सुमित्रा देवी ने लड़की को एक लाख साठ हज़ार रुपये में बेचा था. परिवर्तन विकास संस्था, जो चाइल्ड लाइन का काम भी जिले में देख रही है, उससे जुड़े विनोद कुमार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि कोविड से पहले रोहतास में शादी के नाम पर लड़कियों की खरीद फरोख्त नहीं होती थी. लेकिन इसकी दर बहुत कम थी. कोविड ने लोगों को आर्थिक तौर पर मोहताज बनाया जिसके चलते ये मामले एकदम से बढ़े हैं और अब कई दलाल इसे एक बिजनेस के तौर पर देख रहे हैं”
रोहतास जिले को बिहार का धान का कटोरा कहा जाता है. यानी यह वह इलाका है जो राज्य की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में संपन्न है. इसके बावजूद जिले से ब्राइड ट्रैफिकिंग के साथ साथ गरीब आदिवासी बच्चियों की पढ़ाई के नाम पर ट्रैफिकिंग हो रही है. स्थानीय पत्रकार कमलेश जो लगातार ब्राइड ट्रैफिकिंग के मामलों पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं, बताते हैं, “रोहतास जिले से जो ब्राइड ट्रैफिकिंग हो रही है, उसमें से 90 फीसदी राजस्थान और 10 फीसदी उत्तर प्रदेश में हो रही है. इसके लिए लड़कियां सामान्य तौर पर दस हजार से ढाई लाख में बिक रही हैं.” इन मामलों के अलावा हाल ही में ट्रेन से महाराष्ट्र के नागपुर में ले जाई जा रही 59 नाबालिग आदिवासी बच्चियों की बरामदगी हुई थी. इन बच्चियों को पढ़ाई के नाम पर नागपुर ले जाया जा रहा था. जिले के आदिवासी क्षेत्र में से एक पिपरली पंचायत के सरपंच लक्ष्मण उरांव बताते हैं, “इस क्षेत्र के लोग स्वभाव से सीधे हैं. उन्हें पढ़ाई के नाम पर बहका उनकी लड़कियों को बाहर के लोग ले जा रहे थे, जिसमें कुछ इलाके के दलाल भी थे. अब इसका खुलासा हुआ है तो हम लोग ध्यान दे रहे हैं.”
दरअसल पूरे कोविड के दौरान रोहतास जिले के भीतर भी ट्रैफिकिंग के नए केन्द्र उभरे हैं. रोहतास डिस्ट्रिक्ट डॉट कॉम नाम की वेबसाइट चलाने वाले अंकित कुमार कहते हैं, “रोहतास का पहाड़ी इलाका जैसे तिलौथू, रोहतास, नौहट्टा प्रखंड तकरीबन पांच साल पहले अच्छी रोड कनेक्टिविटी से जुड़ गए हैं. ये राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 2 से जुड़ी है. इससे इन इलाकों में जाना अधिक आसान हो गया है, इसलिए ट्रैफिकर्स भी अब यहां खूब जाते हैं” हालांकि बिहार के सीमांचल जिलों से इतर दक्षिण बिहार के जिले रोहतास में ऐसे केस ज्यादा संख्या में रिपोर्ट हो रहे हैं. इसकी एक वजह जो साफ साफ समझ में आती है, वह है शिक्षा की कमी. रोहतास की साक्षरता दर जहां 75.59 प्रतिशत है वहीं सीमांचल के अररिया की 53.53 प्रतिशत, कटिहार की 52.24 प्रतिशत, पूर्णिया की 51.1 प्रतिशत और किशनगंज की 57.04 प्रतिशत साक्षरता दर है. सीमांचल के इन सभी जिलों में महिलाओं के साक्षरता दर की बात करें तो ये महज 45 प्रतिशत के आसपास है जबकि रोहतास में ये 63 प्रतिशत है. यानी ब्राइड ट्रैफिकिंग को परास्त करने का एक रास्ता शिक्षा के उजाले से ही निकलेगा. यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के अंतर्गत लिखी गई है.
सीटू तिवारी
पटना, बिहार
(चरखा फीचर)
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