इस संबंध में डॉ. बलराम साहू कहते हैं कि मेडिकल दृष्टिकोण से शराब को बहुत हानिकारक माना जाता है. इसके फलस्वरूप जहां इंसान लीवर, किडनी, मधुमेह, कैंसर व मानसिक अवसाद का शिकार होता है वहीं उच्च रक्तचाप, तंत्रिका विकार, एजिंग की समस्या, पाचन तंत्र और फेफड़ों की बीमारी आदि के कारण असमय मृत्यु को निमंत्रण देता है. इसकी वजह से घरेलू हिंसा और सड़क दुर्घटना भी होती है. डॉ साहू के अनुसार शराब के कारण 27 प्रतिशत मस्तिष्क रोग, 23 प्रतिशत पाचन-तंत्र के रोग और 26 प्रतिशत फेफड़ों की बीमारियां होती हैं. शराबबंदी कानून का पुरज़ोर समर्थन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता बिहारी प्रसाद कहते हैं कि यदि इसे संपूर्ण देश में लागू कर दिया जाए तो निःसंदेह आधी आबादी की समस्या स्वतः मिट जाएगी, घरेलू हिंसा में काफी गिरावट आएगी और निम्नवर्ग की आर्थिक स्थिति में सुधार हो जायेगा. बहरहाल, शराबबंदी कानून के बावजूद पुलिस प्रशासन की नाक के नीचे अवैध शराब का धंधा गांवों में खूब फलफूल रहा है. गांव के चौक-चौराहों पर इसका गोरखधंधा बेरोकटोक जारी है. दूसरी ओर अशिक्षित समुदाय और गरीबों की सेहत तो बिगड़ ही रही है, साथ ही उनकी गृहस्थी में आर्थिक समस्या भी रोड़ा बन रही है. नशा से मुक्ति दिलाना आसान काम नहीं है. फिलहाल इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है कि गांवों में देसी शराब से बर्बाद हो रहे गरीब मज़दूरों को कैसे बचाया जाए?
वंदना
मुजफ्फरपुर, बिहार
(चरखा फीचर)
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