पौराणिक कथा के अनुसार, कहा जाता है कि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय द्वारा ताड़कासुर दैत्य का वध करने के बाद भगवान शिव ने इसी जगह पर आकर विश्राम किया। विश्राम के दौरान जब सूर्य की तेज किरणें भगवान शिव के चेहरे पर पड़ीं, तो माता पार्वती ने शिवजी के चारों ओर 7 वृक्ष लगाए। ये विशाल वृक्ष आज भी ताड़केश्वर धाम के प्रांगण में मौजूद हैं। सिद्धपीठ श्री ताड़केश्वर महादेव की महिमा के बारे में बताया जाता है कि ताड़केश्वर एक सिद्ध पुरूष अजन्म संत थे। वह शिव स्वरुप थे तथा भगवान शिव के ही तेजोमयी अंश से प्रकट हुए थे। वह दिगम्बर भेष धारी एक हाथ में त्रिशूल व चिमटा तथा दूसरे हाथ से डमरू बजाते हुए अपने ईष्ट भगवान शिव का जाप करते हुए इधर-उधर विचरण किया करते थे। इस दौरान यदि कोई व्यक्ति गलत काम करते हुए देखा गया या अपने स्वार्थ के लिए गाय बैलो को पीटते हुए देखा गया तो उसे जोर से आवाज देकर फटकारते थे तथा उसे आर्थिक या शारीरिक दंड देने की चेतावनी देते थे। वह सिद्ध पुरूष मानव को गलत काम करने के लिये ताड़ते थे। ताड़ने का अर्थ होता है डाँटना, फटकारना, पीटना इसलिए वह सिद्ध पुरूष जन समुदाय में ताड़केश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
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