पुष्कर के बाहरी इलाका गन्हेरा गांव की रहने वाली ये महिलाएं इस पारंपरिक काम को उत्साह के साथ आगे बढ़ा रही हैं. उनके परिवार को व्यापार और कला विरासत में मिली है. पूरा परिवार चूड़ी बनाने के काम में लगा हुआ है. सलमा और आफरीन अपने उत्पाद बेचने के लिए दो दुकानें चलाती हैं. ज्ञात रहे कि राजस्थान में ज्यादातर लाख की चूड़ियां बनाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग हैं. सलमा दिन में पुष्कर के मुख्य बाजार में अपनी 100 साल पुरानी दुकान चलाती है. जबकि उनकी बहू घर से सटे दुकान पर बैठती है, जो उनके वर्कशॉप के बगल में है, जहां वह चूड़ियां बनाती हैं. वह अपने हुनर से चूड़ियों में रंग भरती हैं जो ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
यह पूरी तरह से हस्त श्रम प्रक्रिया है जिसमें गर्म अंगारों के सामने घंटों बैठने की आवश्यकता होती है. सलमा ने यह कला बचपन से अपने माता-पिता को देखते हुए सीखी, जबकि आफरीन ने इसे बड़ी उम्र में सीखा है. आफरीन कहती हैं "मैंने हाई स्कूल तक की पढ़ाई की है. मैं और पढ़ सकती थी, लेकिन मुझे इस काम में मजा आता है और शादी के बाद भी कर रही हूं. मेरा एक पांच साल का बेटा और दूसरी पांच महीने की बेटी है. मैं बहुत खुश हूं कि मैं घर, बच्चों और अपने काम को एक साथ मैनेज कर पा रही हूं." 24 साल की आफरीन न केवल परिवार के साथ लाख की चूड़ियां बनाती है बल्कि वह एक प्रभावी सेल्स वीमेन भी हैं. जो अपनी चूड़ियों के टिकाऊपन के बारे में संभावित खरीदारों को आश्वस्त करती हैं.
सलमा कहती हैं कि पहले हमारे पास महिलाएं अपनी कलाइयों के आकार की चूड़ियां बनवाती थीं, जो एक बार पहनने के बाद उतारी नहीं जा सकती थी. वह एक-दो साल बाद ही उसे उतारती थीं, लेकिन आजकल हर औरत अपने कपड़ों से मैच करती हुई चूड़ियां खरीदना चाहती है, इसलिए हम उन्हें विभिन्न रंगों में बनाते हैं. पहले चूड़ियां मोटी हुआ करती थीं, अब महिलाएं पतली चूड़ियां ही पहनना पसंद करती हैं. वह बताती हैं कि राजस्थान में हिंदू विवाह की रस्में लाखों की चूड़ियों के बिना अधूरी मानी जाती है. इससे पहले हर त्यौहार में भी हमारी चूड़ियों की बिक्री बहुत ज्यादा होती थी. आजकल फैशन और बिजनेस प्रमोशन के लिए वह लाखों चूड़ियों पर तस्वीरें और नाम भी लगाती हैं. खासतौर पर शादियों के लिए बनी चूड़ियों के सेट पर. वह बताती हैं कि दो चूड़ियों के एक सेट की कीमत 40 रुपये से लेकर 2500 रुपये तक होती है. सलमा के पति मुहम्मद शरीफ शेख एक दिन में करीब 150 से 180 चूड़ियां बनाते हैं.
तकनीक के इस युग में सलमा और उसके परिवार ने भी अपने व्यवसाय को अपडेट करने का प्रयास किया है. वह पिछले दो सालों से व्हाट्सएप ग्रुपों के जरिये अपने कारोबार का ऑनलाइन प्रचार भी कर रहे हैं. हालांकि उन्हें ई-कॉमर्स साइटों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन उन्हें लगता है कि अगली पीढ़ी इस मार्ग को अपना सकती है. सलमा चाहती है कि उनकी नई पीढ़ी अपने ज्ञान के उपयोग से इस कला को तकनीक से जोड़ने का काम करे क्योंकि तकनीक ही उनके व्यवसाय को दुनिया भर में परिचित कराने में मदद कर सकती है. यह केवल व्यवसाय नहीं है बल्कि महिलाओं द्वारा चलाई जा रही एक समृद्ध विरासत भी है. जिसे सहेजना और पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाना सभी की ज़िम्मेदारी है. यह आलेख संजॉय घोष मीडिया अवार्ड 2022 के तहत लिखा गया है.
शेफाली मार्टिन्स
जयपुर, राजस्थान
(चरखा फीचर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें