- कंपनी के मैनेजर के कहने पर चैसा थाना प्रभारी ने मध्य रात्रि में चलाया दमन अभियान, कार्रवाई की जाए.
- माले की उच्चस्तरीय जांच टीम पहुंची बनारपुर, डुमरांव विधायक अजीत कुशवाहा भी थे शामिल.
- उचित मुआवजे की मांग पर आंदोलनरत किसानों के ऊपर दमन के खिलाफ 13 जनवरी को विरोध दिवस.
जांच टीम के निष्कर्ष
चैसा में निर्मित हो रहा थर्मल पावर प्लांट एनटीपीसी का प्रोजेक्ट है. वह अपनी सहयोगी कंपनी एसजीवीएन के जरिए निर्माण कार्य चला रही है. इसके लिए 2010-11 से ही लगभग एक हजार एकड़ जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. तय हुआ था कि 36 लाख रु. प्रति एकड़ की दर से जमीन का मुआवजा मिलेगा, लेकिन अपने वादे से मुकरते हुए सरकार महज 28 लाख रु. प्रति एकड़ की दर से मुआवजा देेने लगी. किसानों ने इसका विरोध शुरू कर दिया. 50 प्रतिशत से अधिक किसानों ने मुआवजा नहीं लिया. मुआवजे के साथ-साथ कंपनी के सीएसआर फंड से इलाके में स्कूल, होटल एवं रोजी-रोजगार के संसाधन बढ़ाने तथा नौकरी में स्थानीय लोगों को वरीयता देने का भी वायदा किया गया था. तभी जाकर किसानों ने एग्रीमेंट पर दस्तख्त किए थे, लेकिन एग्रीमेंट के बाद कम्पनी अपनी बात से मुकर गई. यहां तक कि लोगों पर जुल्म करना शुरू कर दिया. सभी कर्मियो की बहाली अन्य प्रदेशों से की गई. किसानों का आरोप है कि सीएसआर फंड नेताओं व अधिकारियांे की चापलूसी और उन्हें खुश करने में कंपनी ने पानी की तरह बहाया. कई अधिकारियांे को नजराने के तौर पर लाखों की सौगात दी गई. किसानों पर जिस अधिकारी द्वारा जितना अधिक जुल्म हुआ उसे कम्पनी द्वारा उतनी सुविधा उपलब्ध कराई गई. पुनः कम्पनी द्वारा 2022 में रेलवे पाइप लाइन के लिए किसानों की लगभग 250 एकड़ जमीन अधिग्रहण करने की कार्रवाई शुरू हुई. किसानों ने पुराने बकाए और कंपनी द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के साथ-साथ इस बार के भूमि अधिग्रहण के लिए वर्तमान दर पर मुआवजे की मांग उठानी शुरू कर दी. इसी मुद्दे को लेकर वे विगत 2 महीने से आंदोलन कर रहे थे. अचानक 10 जनवरी की रात बनारपुर में पुलिस का छापा पड़ा. माले विधायक अजीत कुशवाहा ने डीआईजी व एसपी से इस बाबत प्रश्न पूछा कि आखिर किसके कहने पर यह पुलिस कार्रवाई हुई? डीआईजी व एसपी दोनों मुकर गए और उन्होंने कहा कि ऐसा कोई आदेश उनके कार्यालय से जारी नहीं हुआ है. वे सारा दोष चैसा थाना प्रभारी के मत्थे मढ़ गए. इसी घटना के बाद किसानों का प्रदर्शन हिंसक हुआ था. अतः इसकी पूरी जिम्मेदारी व जवाबदेही प्रशासन की बनती है. चंूकि यह योजना केंद्र सरकार की है, इसलिए वह अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकती. किसानों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाली भाजपा सरकार यह बताए कि आखिर वह किसानों के साथ किए गए वादों को पूरा क्यों नहीं कर रही है? जांच टीम को ग्रामीणों ने यह भी बताया कि स्थानीय भाजपा सांसद अश्विनी चैबे भी अपने लोगों को कंपनी में ठेका दिलवाने का काम करते हैं. भाकपा-माले किसान आंदोलन की उपर्युक्त सभी मांगों का समर्थन करते हुए दमन की घटना के जिम्मेवार पुलिस अधिकारियों पर कार्रवाई की मांग करती है. प्रशासन को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से खुश करके कंपनी किसानों का गला घोंट रही है. यह बेहद संगीन मामला है. अतः इसकी उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए. 13 जनवरी को माले व किसान महासभा के बैनर से पूरे राज्य में विरोध दिवस आयोजित किया जाएगा.
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