- मोतिहारी में कल जन सुराज पदयात्रा का जिला अधिवेशन
अखबार पढ़कर सरकार चलाते हैं नीतीश कुमार, यात्रा के नाम पर कम से कम बंगले से तो बाहर निकले हैं
नीतीश कुमार की समाधान यात्रा पर तंज कसते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि यात्रा के मुल अर्थ को मैं जितना समझता हूं, और नीतीश कुमार जो जिलों में आकर प्रशासनिक मीटिंग कर रहे हैं उसे यात्रा कैसे कहा जा सकता है। वो तो गाड़ी से चल रहे हैं न की पैदल चल रहे हैं। पटना से आते हैं, सरकारी अफसरों के साथ समीक्षा बैठक करते हैं, तो इसे यात्रा नहीं कहा जाना चाहिए। हर मुख्यमंत्री का काम होता है राज्य के दूसरे जिलों में जाना। 'किसी को कुछ पता है, इसको कुछ आता है' ये नीतीश कुमार का नया तकिया कलाम बन गया है। पूर्वी-पश्चिम चंपारण जिले जिसमें 1 करोड़ लोग रहते हैं और जिसकी यात्रा 5 घंटे में पूरी कर ली जाए और उसे यात्रा कैसे कहा जा सकता है। नीतीश कुमार अखबार पढ़कर सरकार चलाते हैं। नीतीश कुमार यात्रा के नाम पर कम से कम बंगले से तो बाहर निकले हैं, यही बड़ी बात है।
2025 के चुनाव में तेजस्वी के जंगलराज को दोहरा कर अपने को भले आदमी के रूप में पहचान दिलवाना चाहते हैं नीतीश कुमार
प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर महागठबंधन के खिलाफ एक बड़ा आरोप लगाते हुए कहा, "नीतीश कुमार 2025 में राजद की सरकार इसलिए चाहते हैं, दोबारा फिर से जब जंगलराज आए तो लोग कहें कि इससे अच्छा तो नीतीश कुमार थे। नीतीश कुमार को मैं जितना जानता हूं उन्हें तेजस्वी यादव से कोई सहानुभूति नहीं है। वो तो नीतीश कुमार की सोची समझी राजनीति है। राजद ने जिस तरीके से 40 सीटों पर जदयू को समेट दिया है, कहीं न कहीं उसकी कसक नीतीश कुमार में रह गई है जिसका बदला वो तेजस्वी को गद्दी देकर लेना चाहते हैं। नीतीश कुमार की सोची समझी राजनीति है कि 2025 तक तेजस्वी के साथ रहो उसके बाद राजद नाम के भस्मासुर को जनता के हवाले कर दो ताकि बिहार की जनता भोगे और देख सके कि नीतीश कुमार कितने अच्छे थे।"
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर पीके का तंज, कहा - वे बहुत बड़े आदमी हैं, मेरी यात्रा की उनसे कोई तुलना ही नहीं।
राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के सवाल पर प्रशांत किशोर ने कहा कि कांग्रेस बड़ी पार्टी है और राहुल गांधी बड़े लोग हैं। वो देश के स्तर पर बड़ा प्रयास कर रहे हैं। राहुल गांधी जो भारत जोड़ों पदयात्रा कर रहे वो कन्याकुमारी से कश्मीर की 3500 किलोमीटर की पदयात्रा है जिसे उन्हें 6 महीने में पूरा करना है। मैं जो पदयात्रा कर रहा हूं उसमें किलोमीटर कोई महत्व नहीं रखता है। मैंने कोई दिन भी फिक्स नहीं किया है। मेरे लिए यात्रा माध्यम है समाज को निचले स्तर पर समझने का प्रयास करना, लोगों की समस्यायों को जानना और उसका समाधान भी लोगों के माध्यम से ही निकालना। सड़क पर चलने का मुझे ओलिंपिक रिकॉर्ड नहीं बनाना है, न ही मुझे यह दिखाना है कि मैं कितना फीट हूं। मुझे जनता की समस्या को समझना है इसलिए मेरी यात्रा की उनसे कोई तुलना ही नहीं है।
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