नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा की दोस्ती और दुश्मनी की कथा रोचक रही है। 2000 में पहली बार उपेंद्र समता पार्टी के टिकट पर विधायक बनते हैं और फिर 2003 में समता पार्टी के सदस्यों के जदयू में शामिल होने के बाद विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष बनते हैं। लेकिन, 2005 में चुनाव हारने के बाद नीतीश कुमार के खिलाफ तेवर तीखे हो गये। इसकी सजा मिली कि उनका सामान सरकारी आवास से बाहर फेंक दिया गया। 2009 में कुशवाहा फिर जदयू में शामिल हुए और 2010 में राज्यसभा के सदस्य बन गये। इस बार उन्हें कार्यकर्ताओं के सम्मान की चिंता हुई और नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाने लगे। इसे दल विरोधी गतिविधि माना गया और उनकी राज्यसभा सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गयी। इससे बचने के लिए उन्होंने जनवरी, 2013 में राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी आरएलएसपी बनायी। 2014 के लोकसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़े और तीन सीटों पर जीत मिली। वे केंद्र में मंत्री बने। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा से उनका मोहभंग हुआ और राजद के साथ आ गये। राजद खेमे में आने के बाद लोकसभा और 2020 के विधान सभा चुनाव में जीरो पर आउट हो गये। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को भी नुकसान हुआ। इसके बाद नीतीश और उपेंद्र साथ आये और उपेंद्र अपने कुनबे के साथ जदयू में शामिल हो गये। पार्टी में उन्हें बड़ी जिम्मेावारी दी गयी और विधान पार्षद भी बनाया गया। लेकिन सरकार में मंत्री नहीं बनाये जाने से असंतुष्ट रहने लगे। इस बीच मीडिया में खबर चली कि उपेंद्र कुशवाहा को उपमुख्यमंत्री बनाया जाएगा। इस चर्चा के शुरू होते ही मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि पार्टी के अंदर ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। उधर, दिल्ली एम्स में भर्ती उपेंद्र कुशवाहा से मिलने भाजपा के कुछ नेता चले गये और फिर तिल का ताड़ बन गया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा आते-जाते रहते हैं। इस बयान से परेशान उपेंद्र कुशवाहा ने भी कहा कि मुख्यमंत्री भी सरकार बचाने और बनाने के लिए भाजपा और राजद के साथ आते-जाते रहते हैं। उन्होंने कहा कि जदयू के जो जितने बड़े नेता हैं, वे उतना ही भाजपा के करीब हैं। इस बयान के बाद तूफान आ गया। श्री कुशवाहा ने पार्टी के कमजोर होने की बात कह कर एक साथ नीतीश और ललन सिंह दोनों पर निशाना साध दिया। माना यह जा रहा है कि जदयू किसी न किसी बहाने उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ कार्रवाई का आधार बनायेगा और उनकी विधान परिषद सदस्यता जानी तय हो गयी है। उनके हाल के बयान को भी आधार बनाया जा सकता है। अब लगता है कि उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ तीसरी बार ‘कुर्मी गाज’ गिरना लगभग तय हो गया है।
--- वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ संसदीय पत्रकार, पटना ---
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