बिहार : श्रद्धालुओं के माथे पर राख लगाई गयी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

बिहार : श्रद्धालुओं के माथे पर राख लगाई गयी

Christian-news-patna
पटना. आज 22 फरवरी से चर्च में खचाखच भीड़ होने लगी है. आज ऐश बुधवार यानी राख बुधवार मनाया जा रहा है. ईसाई धर्म के लोगों के लिए राख बुधवार के दिन को लेंट की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. इसे एशेज का दिन भी कहा जाता है, जोकि ईस्टर रविवार से 40 दिन पहले होता है. कैथोलिक कलीसिया के लिए ऐश बुधवार यानी राख बुधवार का दिन बेहद खास होता है. मान्यता है कि आज होने वाली प्रार्थनाएं लोगों के जीवन में परिवर्तन, त्याग और आदर्श को बढ़ावा देती है. ईसाई समुदाय के लोग आज चर्च में प्रार्थना करते हैं और इसके बाद श्रद्धालुओं के माथे पर राख लगाई जाती है. आज से लेकर पूरे चालीस दिनों तक लोग प्रार्थना, त्याग, तपस्या, पुण्य काम और अपने जीवन का मूल्यांकन करते हुए यीशु के प्रेम, बलिदान, दुख, मृत्य आदि को याद करते हुए ईस्टर की तैयारी करते हैं. राख बुधवार के दिन माथे पर लगाए जाने वाले राख का निर्माण बीते वर्ष खजूर पर्व पर लाई गई खजूर की पत्तियों को सालभर रखा जाता है और अगले साल राख बुधवार के लिए इसे जलाकर इसकी राख बनाई जाती है. इसी तरह ही कुर्जी पल्ली के पल्ली पुरोहित फादर पायस माइकल ओस्ता ने किया.उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से ईसाई भक्तों से खग्गी देने का आग्रह किया था. इसी राख का प्रयोग राख बुधवार के दिन आशीष प्रदान करने के लिए श्रद्धालुओं के माथे पर लगाया जाता है.  पवित्र मिस्सा के दौरान पुरोहित एक धर्मोपदेश साझा करते हैं जो मुख्य रूप से पश्चाताप और मनन- चिंतन पर आधारित होता है.उसके बाद लोकधर्मियों को माथे पर राख लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है.आमतौर पर पादरी लोगों के माथे पर एक क्रॉस का चिन्ह बनाकर कहते हैं, 'हे!मानव तू मिट्टी से आया है और मिट्टी में लौट जायेगा'.इसी के साथ 40 दिवसीय दुखभोग हुआ हो गया.  चालीसा समय में ईसाई समुदाय(कैथोलिक) ऐश बुधवार से लेकर ईस्टर मास के पहले तक लजीज( मांस) भोजन नहीं खाते हैं. ऐश बुधवार की तरह ही  लेंट के दौरान शुक्रवार को मांस नहीं खाते हैं.ऐश बुधवार को उपासकों को भी उपवास और परहेज करते हैं. दिन में एक बार भोजन करते हैं.बच्चों और बुजुर्गों पर को इन नियमों से मुक्त रखा जाता है. बताते चले कि दुखभोग की पूर्व संध्या पर पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया के भक्तजन गोस्त-भुजा खाने का प्रचलन शुरू किया गया.गोस्त-भुजा का प्रचलन तेजी से प्रचलित होने पर गोस्त-भुजा पर्व में तब्दील हो गया.पश्चिम चंपारण जिले के बेतिया के भक्तजन जहां भी गए,वहां गोस्त-भुजा का पर्व मनाने लगे.हालांकि कैथोलिक कलीसिया द्वारा गोस्त-भुजा का पर्व घोषित नहीं किया है. संजय एलेक्जांडर का कहना है कि हमारे आसनसोल धर्मप्रांत में भी सभी लोग मिलजुल कर इस गोश्त भुजा को एक पर्व की तरह मनाते हैं.हमारे आसनसोल में जो लोग हैं. सर्वप्रथम बेतिया से आए.उनके द्वारा ही यह आरंभ हुआ था. जो आज तक चल रहा है.हैप्पी गोश्त भुजा.लेकिन आप मत भूलिए आपको चालीस दिन गोश्त खाने से परहेज करना है.इस संदर्भ में बक्सर धर्मप्रांत के नव घोषित धर्माध्यक्ष जेम्स शेखर ने कहा कि  गोस्त-भुजा काेई पर्व नहीं, बल्कि एक परंपरा है, जैसे Goa में carnival होता है. इस वर्ष चालीसा काल 22 फरवरी को राख बुधवार से आरम्भ हो रहा है.बिहार सरकार से पंजीकृत संस्था अल्पसंख्यक  ईसाई  कल्याण संघ है.इस संस्था के महासचिव एस.के. लौरेंस हैं.उन्होंने बताया कि कुर्जी पल्ली में   अल्पसंख्यक ईसाई कल्याण संघ के द्वारा मुसीबत गान प्रस्तुत किया जा रहा है.इस संदर्भ में एस.के. लौरेंस ने कहा आज 22 फरवरी,2023 को राख बुधवार के दिन रिचर्ड अब्राहम के चश्मा सेंटर गली घर में संध्या 06ः30 बजे मुसीबत गान प्रस्तुत किया गया.24 फरवरी,2023 को शुक्रवार के दिन पास्कल पीटर ओस्ता के मगध कॉलोनी,कुर्जी घर में संध्या 06ः30 बजे से किया जाएगी.

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