सरकार ने इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया।
यह जानकर हैरानी हुई कि मनमोहन सिंह सरकार ने इस मामले की नए सिरे से जांच करने के बजाय 100 साल से अधिक समय पहले पूरी की गई अधिग्रहण की प्रक्रिया को वापस ले लिया। यह 05.03.2014 की अधिसूचना द्वारा किया गया था। गौरतलब है कि लोकसभा के आम चुनाव के लिए चुनाव आयोग की अधिसूचना से कुछ घंटे पहले ही अधिसूचना जारी की गई थी। विहिप ने आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष इसकी शिकायत की और आईवीएचपी ने इस अधिसूचना को डब्ल्यूपी (सी) संख्या 2901/2014 द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी। सरकार अपनी कार्रवाई का बचाव नहीं कर सकी और बयान दिया कि इंद्रप्रस्थ विश्व हिंदू परिषद द्वारा दायर रिट याचिका को प्रतिनिधित्व के रूप में माना जाएगा और जल्द से जल्द एक उचित निर्णय लिया जाएगा। सरकार ने मामले की जांच के लिए न्यायमूर्ति श्री एस के गर्ग (सेवानिवृत्त) की अध्यक्षता में दो सदस्यीय समिति नियुक्त की। कमेटी ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को कई नोटिस भेजे। बोर्ड नहीं आया। इसने कोई दावा दायर नहीं किया। इस प्रकार समिति को यह निष्कर्ष निकालना पड़ा कि डीडब्ल्यूबी के दावे की पुष्टि नहीं हुई है। भारत सरकार ने दो सदस्यीय समिति के निर्णय को स्वीकार कर लिया है और इस प्रकार उक्त 123 संपत्तियां सरकार के पास बनी रहेंगी और डीडब्ल्यूबी को हस्तांतरित नहीं की जाएंगी।
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