पटना. देश और प्रदेश में रहने वाले ईसाई समुदाय परेशान हैं.उनको कथित धर्म परिवर्तन करने के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है.इससे निपटने के लिए देश के करीब 12 राज्यों में धर्म विरोधी शख्त कानून बना ली गई है.देश में निर्मित खौफ से चिंतित खौफजदा ईसाई समुदाय कृत्रिम निर्मित वातावरण का विरोध करने का निश्चय किया है.इसके खिलाफ लक्षित नफरत और हिंसा बंद करो की मांग को लेकर ईसाई समुदाय रविवार 19 फरवरी को जंतर-मंतर पर दिल्ली में जुटकर शांति पूर्ण 11.00 से 04:00 बजे तक धरना देंगे.सभी भारतीय ईसाइयों को भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है.'एक संदेश पावें,तो पांच को पहुंचावे'नीति को लागू किया गया है. इस संबंध में विभिन्न चर्चो में ऐलान किया गया है.कि लक्षित ईसाई समुदाय नफरत और हिंसा बंद करो की मांग को लेकर शांति पूर्ण ढंग से जंतर-मंतर पर धरना देंगे.इस आयोजन का कोई आयोजक नहीं होगा.स्वत:कारवां बनते चला जाएगा.ऐसे लोग बिना बैनर और बिना झंडे लहराते आएंगे. यह बताने का प्रयास है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 एक में सार्वजनिक व्यवस्था सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के दूसरे उपबंध के अधीन रहते हुए सभी व्यक्तियों को अंत करण की स्वतंत्रता तथा धर्म के अवैध रूप से मानने की स्वतंत्रता आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है किंतु धर्म स्वतंत्रता का अधिकार भी अन्य अधिकारों की ही भांति आत्यंतिक अधिकार नहीं है.अनुच्छेद 25 (1) में ही सार्वजनिक व्यवस्था सदाचार और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए धार्मिक स्वतंत्रता पर राज्य विधि बनाकर निर्बंधन लगा सकता है, इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 25 के खंड 2 के उपखंड क और ख के अधीन राज्य इस अधिकार पर विधि बनाकर निम्नलिखित आधारों पर निर्बंधन लगा सकता है. यदि व्यक्ति अपनी धार्मिक विचारों को दूसरों तक प्रेषित करने के बजाय उसे धर्म परिवर्तन करने के लिए विवश करता है तो वह उसके अंतरण की स्वतंत्रता पर सीधा आघात करता है जो संविधान द्वारा वर्जित है, यदि विधानमंडल विधि बनाकर कोई ऐसा कानून बनाकर धर्म परिवर्तन का प्रतिषेध करता है तो वह संवैधानिक होगा.
राज्य में जबरन धर्मांतरण रोकने की कानून तैयार
1. ओडिशा- पहला राज्य है जहां जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून आया था. यहां 1967 से इसे लेकर कानून है. जबरन धर्मांतरण पर एक साल की कैद और 5 हजार रुपये की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है.
2. मध्य प्रदेश- यहां 1968 में कानून लाया गया था. 2021 में इसमें संशोधन किया गया. इसके बाद लालच देकर, धमकाकर, धोखे से या जबरन धर्मांतरण कराया जाता है तो 1 से 10 साल तक की कैद और 1 लाख तक के जुर्माने की सजा का प्रावधान है. मध्य प्रदेश में नवंबर 2023 में विधान सभा का चुनाव होगा.
3. अरुणाचल प्रदेश- ओडिशा और एमपी की तर्ज पर यहां 1978 में कानून लाया गया था. कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.
4. छत्तीसगढ़-2000 में मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद यहां 1968 वाला कानून लागू हुआ. बाद में इसमें संशोधन किया गया. जबरन धर्मांतरण कराने पर 3 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना, जबकि नाबालिग या एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 40 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
5. गुजरात-यहां 2003 से कानून है. 2021 में इसमें संशोधन किया गया था. बहला-फुसलाकर या धमकाकर जबरन धर्मांतरण कराने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये जुर्माना, जबकि एससी-एसटी और नाबालिग के मामले में 7 साल की कैद और 3 लाख रुपये के जुर्माने की सजा है.
6. झारखंड- यहां 2017 में कानून आया था. इसके तहत, जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. वहीं, एससी-एसटी के मामले में 4 साल की कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.
7. उत्तर प्रदेश - 27 नवंबर 2020 को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध कानून लागू किया गया था. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को अपराध की गंभीरता के आधार पर 10 साल तक की जेल हो सकती है. साथ ही 15 से 50 हजार रुपये तक का जुर्माने का प्रावधान भी है. इतना ही नहीं अंतर-धार्मिक विवाह करने वाले जोड़ों को शादी से दो महीने पहले जिला मजिस्ट्रेट को प्रस्तावित शादी के बारे में सूचना देनी आवश्यक है. वहीं इस कानून के तहत एससी-एसटी समुदाय के नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण पर भी तीन से 10 साल की सजा का प्रावधान है, जबकि जबरन सामूहिक धर्मांतरण के लिए तीन से 10 साल की जेल और 50 हजार का जुर्माना. इस कानून के मुताबिक अगर विवाह का एकमात्र उद्देश्य महिला का धर्म परिवर्तन कराना सिद्ध हुआ तो ऐसी शादियों को अवैध करार दिया जाएगा.
8. उत्तराखंड - जबरन धर्मांतरण कराने वालों को उत्तराखंड में अब और सख्त सजा दी जाएगी. इसके लिए 2018 के कानून को और सख्त कर दिया गया है. अब इस नए कानून के तहत, जबरन धर्मांतरण कराने वाले दोषी को 10 साल की जेल और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा होगी. साथ ही पीड़ित को भी मुआवजा देना होगा.
9.हिमाचल प्रदेश - साल 2006 में हिमाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून बना, जिसका साल 2019 में संशोधन किया गया. जिसके तहत बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से या शादी से और उससे जुड़े मामलों के लिये एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करता है. वहीं साल 2022 के अगस्त में ‘द फ्रीडम ऑफ रिलिजन (संशोधित)‘ बिल पारित किया गया. जिसमें सजा को और भी सख्त कर दिया गया. हिमाचल में अब सामूहिक धर्मांतरण पर 10 साल की जेल और 2 लाख रुपये का जुर्माने का प्रावधान है.
10.कर्नाटक - 30 सितंबर 2022 को अधिसूचित किए गए कर्नाटक धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम-2022 को लागू किया गया है.इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, लुभाने या किसी कपटपूर्ण तरीके से या शादी करके किसी अन्य व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा. अगर ऐसा होता है तो उसे अपराध माना जाएगा। इस कानून का उल्लंघन करने वालों को तीन से पांच साल की जेल और 25,000 रुपये तक का जुर्माना.जबकि नाबालिग, महिलाओं और एससी और एसटी समुदायों के व्यक्तियों का धर्म परिवर्तित कराने वाले लोगों को तीन से 10 साल की जेल की सजा और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा का नियम है.कर्नाटक में मई 2023 में विधान सभा का चुनाव होने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने धर्मांतरण पर दिया था ये बयान साल 2020 के फरवरी महीने में दक्षिण के कई राज्यों में धर्मांतरण के मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. याचिका में अपील की गई थी कि कोर्ट धर्मांतरण को रोकने के लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने के लिए कहे.सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से इनकार कर दिया था.कोर्ट का कहना था कि कानून बनाना संसद का काम है, कोर्ट का नहीं. वहीं बीते कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रवि कुमार ने धर्मांतरण पर सुनवाई करते हुए कहा कि वह धर्मांतरण के खिलाफ नहीं है बल्कि जबरन धर्मांतरण के खिलाफ है. पीठ ने केंद्र और राज्यों से जबरन धर्मांतरण को लेकर पूरा विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा है.
भारत में हिंदू आबादी
भारत हिंदू धर्म का घर है जहां करीब 97 करोड़ हिंदू निवास करते हैं.भारत में 121 करोड़ की कुल आबादी में से 79.8% हिंदू हैं. पिछले दशक (2001-2011) में हिंदुओं की जनसंख्या वृद्धि दर 19.92% के पिछले आंकड़े से 16.8% थी.मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम (ईसाई धर्म प्रधान), पंजाब (सिख धर्म बहुल), जम्मू और कश्मीर और लक्षद्वीप (इस्लाम बहुल) को छोड़कर सभी राज्यों में हिंदू धर्म का पालन किया जाता है.
भारत में मुस्लिम आबादी
भारत में मुसलमान लगभग 17.22 करोड़ हैं यानी भारत की कुल जनसंख्या का 14.2% इस्लाम को मानते हैं. भारत दुनिया की कुल मुस्लिम आबादी का 11% के करीब है. जबकि यह दावा किया गया है कि भारत में पाकिस्तान की तुलना में अधिक मुसलमान हैं, यह सांख्यिकीय रूप से सच नहीं है. इंडोनेशिया और पाकिस्तान के बाद भारत में तीसरी सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी है. केंद्रशासित प्रदेश लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, जबकि यह आबादी असम, पश्चिम बंगाल, केरल और उत्तर प्रदेश के पर्याप्त राज्य हैं.
भारत में ईसाई जनसंख्या
2011 की जनगणना के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में ईसाई जनसंख्या 2.78 करोड़ है जो कुल भारतीय जनसंख्या का लगभग 2.3% है.2001-2011 में ईसाई धर्म की दशकीय विकास दर 22.52% से गिरकर 15.5% हो गई.पूर्वोत्तर राज्यों नागालैंड, मिजोरम, मेघालय और मणिपुर में ईसाई धर्म प्रमुख धर्म है, जबकि वे अरुणाचल प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, गोवा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में पर्याप्त आबादी बनाते हैं.
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