इस संबंध में गांव की एक बुज़ुर्ग रीना देवी स्थानीय जनप्रतिनिधि की उदासीन भूमिका पर गुस्से का इज़हार करते हुए कहती हैं कि ‘‘जे भी मुखिया वोट मांगे आवलन बोललन की इंद्रवास दिलवायम, सड़क बनवायम, रउआ सब के सारा समस्या के सामाधान हो जाई. सब कोई मिल के हमारा के जिताउ लेकिन जब जित जा लन तब कुछ न करलन. कौनो कुछ न कैलन सड़के के समस्या जस के तस बनल बा।’’ (जो भी मुखिया वोट मांगने आते हैं, कहते हैं कि इंदिरा आवास दिलाएंगे, सड़क बनवा देंगे, आप सभी की सभी समस्याओं का निराकरण कर देंगे, सब मिलकर मुझे विजयी बनाओ, लेकिन जीत जाने के बाद कुछ नहीं करते हैं, किसी ने कुछ नहीं किया, सड़क की समस्या आज भी जस की तस बनी हुई है) वहीं एक अन्य महिला कामनी कुमारी बताती हैं कि सड़क अच्छी न होने की वजह से कई बार सड़क दुर्घटना में बच्चों की मौत हो जाती है. वह कहती हैं कि 'हमारी सबसे ज्यादा समस्या सड़क से ही जुडी हुई है. कुछ दिन पहले एक गर्भवती महिला तक केवल सड़क अच्छी नही होने की वजह से एम्बुलेंस समय से पहुंच नहीं सकी. जिससे जन्म लेते ही कुछ जटिलताओं के उसके बच्चे की मौत हो गई. कामनी बताती हैं कि गांव में सड़क खराब होने के कारण गाड़ी गांव तक पहुंच नहीं पाती है, इसलिए मरीज़ को खाट पर उठाकर मुख्य सड़क तक ले जानी पड़ती है. बाढ़ के समय समस्या बहुत अधिक बढ़ जाती है. इस समस्या के हल के लिए ग्रामीण कई बार धरना-प्रदर्शन भी कर चुके हैं, लेकिन नतीजा सिफर ही रहा.
गांव में ही राशन की दूकान चलाने वाले 32 वर्षीय बिट्टु कुमार कहते हैं कि 'बारिश के समय में बहुत कठिनाइओं का सामना करना पड़ता है. सड़क पूरी तरह से टूट जाती है जिसमें बड़े बड़े गड्ढ़े बन जाते हैं. अक्सर लोग उन गढ्ढों में गिर कर घायल हो जाते हैं, वहीं इन गढ्ढों में फंस कर गाड़ियां भी खराब हो जाती हैं. चाहे जितनी भी इमर्जेन्सी हो, लेकिन बारिश के समय कोई एम्बुलेंस भी गांव में नहीं आना चाहती है. मरीज़ को खाट पर लिटा कर मुख्य सड़क तक ले जाना पड़ता है. वह कहते हैं कि हमारी अधिकतर समस्या सड़क से जुड़ी हुई है. यदि सड़क ठीक हो जायेगी तो हमारी आधी समस्या का निवारण हो जाएगा. बिट्टू कहते हैं कि इस खस्ताहाल सड़क की वजह से हमें ब्लॉक ऑफिस, बैंक या कचहरी जाने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में कोई भी अंदाज़ा लगा सकता कि बुज़ुर्गों को कितनी दिक्कत होती होगी. वह बताते हैं कि नदी से कुछ दूरी पर एक प्राथमिक विद्यालय का भवन भी बाढ़ की भेंट चढ़ चुका है. स्कूल का समूचा भवन नदी मे कटकर गिर गया, जिसके बाद इसे दूसरी जगह शिफ्ट करनी पड़ी और आज यह एक अस्थाई भवन में संचालित हो रहा है. जिसकी वजह से शिक्षण कार्य में बहुत दिक्कत होती है. वहीं 12 वर्षीय सोना कुमारी कहती है कि मुझे साइकिल चलाना बहुत पसंद है. मैं साइकिल से ही स्कूल जाना चाहती हूं लेकिन रोड पर गढ्ढा होने की वजह से मैं बहुत बार गिर गई हूं. इसकी वजह से अब मैं पैदल ही स्कूल आना जाना करती हूं.
राजवाड़ा पंचायत के राकेश कुमार बताते हैं कि सड़क से जुड़ी समस्या को लेकर मुज़फ़्फ़रपुर के जिलाधिकारी से भी बात की गई. ग्रामीणों ने राजधानी पटना जाकर सरकार और अधिकारियों के समक्ष धरना-प्रदर्शन भी किया, परंतु कोई सुनवाई नहीं हुई, केवल आश्वासन दिया जाता है. आज भी हालात जस के तस कायम है. बाढ़ आती है तो सबकुछ तबाह हो जाता है. अब कोई उम्मीद नही है. ग्रामीण सबकुछ करके थक गए हैं. वहीं गांव के मुखिया कहते हैं कि वह अपने स्तर से लगातार प्रयास कर रहे हैं कि इस समस्या का कोई स्थाई समाधान निकल सके. बहरहाल, इस बाढ़ग्रस्त इलाके के निवासियों की दर्दभरी दास्तान अखबारों की सुर्खियां तो जरूर बनती है, पर लोगों को सुविधा और योजना का लाभ नहीं मिल पाता है. सड़क विहीन गांव की यह समस्या कमोबेश भारत के विभिन्न राज्यों की है. जहां बाढ़ आते ही सबकुछ उजड़ जाते हैं. पुनर्स्थापन और राहत कार्य के बाद भी ठोस बसावट और जन-जीवन पटरी पर आने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है. यदि बाढ़ पूर्व उपयुक्त तैयारी व प्रबंधन कर लिया जाए तो कुछ हद तक समस्याओं पर नियंत्रण किया जा सकता है. बाढ़ के बाद प्रभावित सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा को दुरुस्त करने के लिए आला अधिकारियों के साथ-साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों की इच्छाशक्ति भी बेहद जरूरी है.
अंजली भारती
मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार
(चरखा फीचर)
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