झारखंड : मांडर विधानसभा की कांग्रेसी विधायक हैं शिल्पी नेहा तिर्की - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 21 मार्च 2023

झारखंड : मांडर विधानसभा की कांग्रेसी विधायक हैं शिल्पी नेहा तिर्की

  • "आग जलती रहे" का नारा फादर कॉन्सटंट लीबंस ने छोटानागपुर में अपनी प्रेरिताई की शुरूआत करते हुए दिया था जो आज भी प्रज्वलित है.

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रांची. रांची से 25 किलोमीटर दूर स्थित जमगाईं ग्राम में छोटानागपुर के प्रेरित ईश सेवक फादर फादर कॉन्सटंट लीबंस के भारत आगमन के 138 वीं वर्षगांठ और तीर्थयात्रा समारोह में आगत अतिथि को संबोधित कर रही थीं. हुलहुंडू पेरिश स्थित इस गांव में यह विशेष दिवस मनाया गया.विधायक ने कहा कि जब फादर छोटानागपुर आए होंगे,तो छोटानागपुर कैसा होगा.यहां के लोग द्वितीय भाषा बोलते व समझते थे.फादर लीवंस ने विपरित परिस्थिति जीवन और आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात कर लिये. आगे कहा कि फादर फादर कॉन्सटंट लीबंस का जीवन और समर्पित सेवा समाज और दूसरों के कल्याण के लिए रही.आज के विशेष दिन में हम मसीहियों का दायित्व बनता है कि हम सभी उन्हीं के आदर्शों पर चलें और हमारे जीवन का एकमात्र उद्देश्य जरुरतों की मदद हो. इस अवसर पर पवित्र मिस्सा शुरू करते हुए मुख्य अनुष्ठाता राँची के महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो एवं सहअनुष्ठाता सहायक धर्माध्यक्ष थेओदोर मसकरेन्स ने ईश सेवक कॉन्सटंट लीबंस को श्रद्धांजलि देते हुए माल्यार्पण किया एवं मशाल प्रज्वलित किया. तत्पश्चात् फादर कॉन्सटंट लीबंस की संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत की गई.परमप्रसाद के बाद ईश सेवक फादर कॉन्सटंट लीबंस की धन्य घोषणा के लिए विशेष प्रार्थना की गई.


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1885 में जमगाईं पहुंचे थे फादर फादर कॉन्सटंट लीबंस, तोरपा उनकी गतिविधियों का केंद्र बना 

प्रत्येक वर्ष 19 मार्च का यह दिन फादर कांस्टेंट लीवंस के आगमन दिवस के रूप में मनाया जाता है.ईश सेवक स्वर्गीय फादर कॉन्सटंट लीबंस 19 मार्च 1885 को जामगाईं पहुंचे थे. वे यहां छह महीने तक रहे और छोटानागपुर के आदिवासियों, गरीबों के बीच अपनी समर्पित मिशनरी सेवकाई दी. उनका जन्म 10 अप्रैल 1856 को बेल्जियम के मूरसेलेदे में हुआ था.एक फ्लेमिश परिवार में हुआ था.वे चार भाई व छह बहनें थे.हाई स्कूल के बाद लीवंस रॉयसलेयर के माइनर सेमिनरी से फिलोस्फी की पढ़ाई की.फिर ब्रुजेस के सेमिनरी से थियोलॉजी की ट्रेनिंग प्राप्त की. मानव सेवा से प्रेरित होकर उन्होंने 1878 में येसु समाज में प्रवेश किया और 1880 में मिशनरी बनकर भारत आये.दो साल के नोविशिएट स्पीरिचुअल ट्रेनिंग पूरी करने के बाद थियोलॉजी की ट्रेनिंग के लिए वे इंडिया के पश्चिम बंगाल स्थित आसनसोल भेजे गए.14 जनवरी 1883 को कलकता में लीवंस को पुरोहिताभिषेक के बाद पुरोहित नियुक्त किया गया.तोरपा उनकी गतिविधियों का केंद्र बना. उन्होंने आदिवासी प्रथागत कानून में जानकारी एकत्र करना शुरु किया.उन्होंने जो खोज की थी वह जबरन श्रम, कर्ज से लदे लोगों की दयनीय स्थिति तथा व्यवस्थित भूमि विचलन की निराशाजनक स्थिति थी.उन्होंने सुसमाचारों के बारे बात करने के बजाए मुंडाओं को उनके मूल अधिकारों के बारे जानकारी दी और औपनिवेशिक अदालतों में बचाव करना शुरू कर दिया.विशेष रूप से वे अंग्रेजी मजिस्ट्रेटों को यह स्वीकार कराने में सफल रहे कि जनजातीय मामलों से निपटने के दौरान गैर लिखित प्रथागत कानून को ध्यान में रखा जाए.इस तरह मुंडा उन्हें अपने उद्धारकर्ता के रूप में देखते थे. फादर कॉन्सटंट लीबंस की मृत्यु सात नवंबर 1893 को टीबी से लेउवेन में हुई.

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