- अशोक कुमार पांडेय द्वारा लिखित ‘राहुल सांकृत्यायन’ की जीवनी का हुआ लोकार्पण
- बाहर जाके जिन भारतीयों ने सत्ता हांसिल की और अपनी भारतीयता नही खोई उसको लेकर है तीन समंदर पार उपन्यास - राजीव शुक्ला
पश्चिमी विद्वता के सांस्कृतिक मानकों पर मीरा को समझने का प्रयास
कार्यक्रम के पहले सत्र में माधव हाड़ा की पुस्तक 'वैदेही ओखद जाणे : मीरा और पश्चिमी ज्ञान मीमांसा' का लोकार्पण हुआ। इस सत्र में पल्लव ने लेखक से बातचीत की। इस दौरान माधव हाड़ा ने कहा कि यूरोपियन शोध में अभी तक मीरा के जीवन के बारे विवरणों का अभाव है। इस पुस्तक में मीरा को उसकी अपनी सांस्कृतिक पारिस्थिकी से अलग, पश्चिमी विद्वता के सांस्कृतिक मानकों पर समझने-परखने के प्रयासों की पड़ताल की गई है़।
काशीनाथ सिंह की किताब पर हुई परिचर्चा
दूसरे सत्र में पल्लव द्वारा संपादित कथाकार काशीनाथ सिंह की किताब 'बातें हैं बातों का क्या' पर परिचर्चा हुई। इस पर पल्लव ने कहा कि जो लोग काशीनाथ सिंह को पढ़ना चाहते हैं उनके लिये यह किताब उपयोगी साबित होगी। इस किताब में काशीनाथ सिंह के साक्षात्कारों को संकलित किया गया है़। वहीं अगले सत्र में पंकज चतुर्वेदी के नए कविता संग्रह 'काजू की रोटी' का लोकार्पण हुआ। इस संग्रह में संकलित पंकज की कविताएँ भाषा के हर पाखंड को उजागर करने की जिद में कविता जैसी न दिखने की हद तक कविता के आडंबरों से परहेज करती दिखती है।उपन्यास के मलबे से उपन्यास लिखने की कोशिश
इसके बाद के सत्र में कृष्ण कल्पित के उपन्यास 'जाली किताब : हिंदी के प्रथम गद्य की दिलचस्प-दास्तान' का लोकार्पण हुआ। यह उपन्यास अपने ढंग का पहला और अकेला उपन्यास है। इसमें आलोचना भी है और आलोचना की आलोचना भी। किताब पर परिचर्चा के दौरान कृष्ण कल्पित ने कहा कि यह किताब साहित्य के मुक़दमे की तरह है़। हिन्दी साहित्य के उपन्यास का ढांचा ढह चुका है़ उसी ढहे हुए ढांचे के मलबे से मैंने इस उपन्यास को लिखने की कोशिश की है़।'
अनुपम सिंह ने किया कविताओं का पाठ
अगले सत्र में अनुपम सिंह की कविताओं पर बात करते हुए रेखा सेठी ने कहा कि अनुपम सिंह की कविताएं कई वजहों से विशिष्ट हैं। उनकी कविताएं स्त्री देह को जिस तेवर के साथ बरतती हैं वह इसके पहले दुर्लभ रहा है। वहां देह और उसकी कामनाओं की सहजता का स्वीकार ही नहीं है बल्कि इसके भी आगे जाकर वे इसे एक क्रांतिकारी बदलाव की तरफ ले जाती हैं। इसके पहले अनुपम सिंह ने अपने कविता संग्रह 'मैंने गढ़ा है अपना पुरुष' से कुछ कविताओं का पाठ भी किया।
अशोक कुमार पांडेय द्वारा लिखित राहुल सांकृत्यायन की जीवनी का हुआ लोकार्पण
राजकमल प्रकाशन के 'जलसाघर' में आज इतिहासकार अशोक कुमार पाण्डेय द्वारा लिखित राहुल सांकृत्यायन की जीवनी 'राहुल सांकृत्यायन : अनाम बेचैनी का यायावर' का लोकार्पण हुआ। लेखक ने इस पुस्तक में राहुल सांकृत्यायन को उनकी बौद्धिक विकास यात्रा में समझने की कोशिश की है जो अक्सर बाहरी है और जहाँ निजी है वहाँ भी पॉलिटिकल के स्वर सुनने की चेतन कोशिश की है। लोकार्पण के मौके पर अशोक कुमार पाण्डेय ने कहा कि 'यह जीवनी गुणगान नहीं है़। यह राहुल सांकृत्यायन को समझने की कोशिश है़। इस जीवनी में मैंने राहुल सांकृत्यायन का आलोचनात्मक अध्ययन किया है़।'
हिंदी की क्लासिक कृतियों पर कविताओं का संकलन है 'आविर्भाव'
अगले सत्र यतीश कुमार के कविता संग्रह 'आविर्भाव' पर उनसे आशीष मिश्र ने बात की। 'आविर्भाव' कविताओं की ऐसी किताब है जिसमें यतीश कुमार ने हिंदी की अनेक लोकप्रिय और लगभग क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुकी कृतियों पर यतीश कुमार ने कविताएं लिखी है, जिनमें उन कृतियों के होने का सेलिब्रेशन तो है ही साथ में उनकी सकारात्मक आलोचना भी उसी में विन्यस्त है। यतीश ने कहा कि ये कविताएं लिखते हुए उनके भीतर ये उपन्यास किसी जीवित और धड़कती हुए रूप में सदा उपस्थिति रहे हैं। इसके बाद गीत चतुर्वेदी के साथ मनोज कुमार पांडेय ने बातचीत की। इस दौरान गीत चतुर्वेदी की कविताओं और उनकी किताबों पर बातें हुईं। मनोज कुमार पांडेय ने उनसे कविता और उपन्यास लेखन से जुड़े सवाल किए जिनका जवाब उन्होंने दिया। अगले सत्र में धर्मवीर यादव गगन द्वारा संपादित 'पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली' पर चर्चा हुई। इस सत्र में वंदना टेटे, गोपेश्वर सिंह, कर्मेंदु शिशिर, वीरेन्द्र यादव और रामचंद्र बतौर वक्ता मौजूद रहे। धर्मवीर यादव गगन ने सम्पूर्ण पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली का सम्यक संकलन-संपादन कर पाँच खण्डों में प्रस्तुत किया है। इसमें पेरियार ललई सिंह को ईश्वर, मिथक, धर्म, संस्कृति, भाषा और इतिहास से सम्बन्धित चिन्तन है। आज के अंतिम सत्र में राजीव शुक्ला के उपन्यास 'तीन समंदर पार' पर बातचीत हुई। यह उपन्यास 19वीं सदी के अंत में उत्तरप्रदेश के एक गांव से एक गिरमिटिया मजदूर के त्रिनिदाद जा बसने और एक सदी बाद उसके वंशजों में से एक स्त्री के सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने की अद्भुत कथा है। अप्रत्याशित यात्रा, अनथक संघर्ष और असाधारण उपलब्धि की कहानी कहने वाले इस उपन्यास का एक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी है कि झूठ और छल से अर्जित सत्ताएँ अंततः जनता के आगे बेनकाब हो जाती हैं। इस मौके राजीव शुक्ला ने कहा ‘बाहर जाके जिन भारतीयों ने सत्ता हांसिल की और अपनी भारतीयता नही खोई उसको लेकर यह उपन्यास है’
कल का कार्यक्रम - 3 बजे - लेखक से मिलिए में कैलाश सत्यार्थी राजकमल मंच पर होंगे
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