बताते चले कि अपने लिए निर्धारित एक साल की समय सीमा को एक बार बढ़वाने के बाद आयोग ने 2008 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी.लेकिन 15 साल बाद भी नीतीश कुमार ने आयोग के सुझावों पर अमल की कोई पहल करते नहीं दिख रहे है.आयोग ने अपनी रिपोर्ट में 1990 के दशक के दौरान भूमिहीनता का आंकड़ा रखा. इन आंकड़ों के अनुसार इस दौरान राज्य में भूमिहीनता की दर चिंताजनक हद तक बढ़ी है. M जगजाहिर है कि जन संगठन एकता परिषद के संस्थापक पी व्ही राजगोपाल ने राष्ट्रीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर एकता परिषद के प्रांतीय संयोजक प्रदीप प्रियदर्शी ने मिलकर डी. बंद्योपाध्याय की अध्यक्षता वाली भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चलाया. उत्तर बिहार एकता परिषद के नेता विजय गोरैया ने महागठबंधन सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री आलोक मेहता को बाजीगर करार दिया है.उन्होंने कहा कि मंत्री जी ने सभी आवासीय भूमिहीन परिवारों की गिनती कराने के वादा से पीछे हटने के बाद, बिहार के भूमि सुधार मंत्री जी अब गरीबों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं. गिनती कराई नहीं, कोई नया आँकड़ा डाला नहीं और 'डाटा अपडेट' करायेंगे ? अंचल कार्यालय के कंप्यूटर में वर्षों से पड़े सौ-दो सौ आवासीय भूमिहीन परिवार के आँकड़ों को जिला स्तर पर जोड़वाकर प्रकाशित करा देंगे. किसी जिला में पाँच सौ तो किसी में हजार-बारह सौ की संख्या ...हो गया अपडेट. जबकि, आवासीय भूमिहीन परिवारों की एक प्रखंड की संख्या औसतन पाँच से पच्चीस हजार तक संभावित है./ कायदे से, जबतक गाँव के हर दरवाजे तक पहुँचकर सर्वेक्षण टीम द्वारा पुछताछ करने के बाद ही आवासीय भूमिहीनों की सही जानकारी प्राप्त होगी. अगर सरकार की नियत ठीक हो तो पूरे बिहार में, यह काम एक सप्ताह में पूरा किया जा सकता है. लेकिन अखबार की इस घोषणा से लगता है मानो, मंत्री जी बिहार के आवासीय भूमिहीनों को उकसा ही नहीं चिढ़ा भी रहे हों कि 'दम है तो हमारे खिलाफ बड़ी लड़ाई शुरु करो ; अगर नहीं, तो जो टुकड़ा हम फेंकते हैं उसे हमारी कृपा समझ कर स्वीकार करो'.
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