लगभग 15 से 20 साल पहले तक, इस समुदाय द्वारा बनाई गई बड़ी टोकरियों का व्यापक रूप से पशुओं को चारा खिलाने के लिए उपयोग किया जाता था. अब सस्ते और अच्छी गुणवत्ता वाले प्लास्टिक के बर्तन व्यापक रूप से उपलब्ध होने के कारण, ग्रामीण और किसान भी अब इन महिलाओं से ये टोकरियां नहीं खरीदते हैं और इसलिए उनके पहले से ही कम लाभदायक व्यवसाय को जबरदस्त नुकसान हुआ है. इस संबंध में मंगू जोगी कहती हैं कि "लेकिन हम और क्या कर सकते हैं? हमें कोई दूसरा काम भी नहीं देता है. हमारे पूर्वजों ने हमें केवल यही काम सिखाया है. हमें उसका अनुसरण करना है और उसके साथ रहना है. हम कभी स्कूल नहीं जा पाए, न ही हमारे पास करने के लिए कोई काम या खेती है.” मुंगो के घर के ठीक बगल में उसके भतीजे शंकर की 30 वर्षीय पत्नी जमना रहती है. जिसकी 12 वर्षीय बेटी एकुम करीब के एक सरकारी स्कूल में कक्षा 5 की छात्रा है. हालांकि एकुम ने अभी टोकरियां बनाना शुरू नहीं किया है, लेकिन जमना का मानना है कि वह भी यह काम सीख लेगी. फिलहाल एकुम और उनके छोटे भाई-बहन और चचेरे भाई कूड़ा बीनने का काम करते हैं और छोटी-छोटी रकम के लिए स्क्रैप बेचने के लिए आस-पास के इलाकों से बोतलें इकट्ठा करते हैं.
टोकरी बनाने दौरान आने वाली कठिनाइयों का ज़िक्र करते हुए जमुना कहती है कि "टोकरी के फ्रेम के चारों ओर लपेटने से पहले, बांस के स्टैंड को पानी में डुबाते हैं फिर बुनाई शुरू करते हैं. फ्रेम के चौड़े किनारों को जोड़ने के लिए चाकू का उपयोग करते हैं और उन्हें पतली स्ट्रिप्स में काटते हैं. कई बार बांस की एक छड़ी जो सुई की तरह महीन होती है, हमारी उंगलियों में प्रवेश कर जाती है. शुरू में बहुत दर्द होता था. लेकिन अब हम इसके अभ्यस्त हो चुके हैं, आखिरकार यह हमारा काम है. हम इसे वैसे ही लेते हैं जैसे वह है.” जमना और उसका परिवार कभी-कभी गांव में टोकरियां बेचने जाता है. लेकिन, पहले पशु मेलों के दौरान, वे नियमित रूप से जाते थे और मवेशियों के लिए उपयोग की जाने वाली टोकरियां, विशेषकर बैल टोकरियाँ, जो मेले में ही बुनी और बेची जाती थीं. अब मवेशियों को खिलाने के लिए प्लास्टिक की टोकरियों की मांग अधिक हो गई है, क्योंकि वे मजबूत और सस्ती होती हैं. लेकिन इसके बावजूद सरधना समुदाय की महिलाएं टोकरियां बनाती हैं. वह न केवल पारिवारिक शिल्प और कला की रक्षा करती हैं बल्कि देश को प्रदूषण से भी बचाती हैं. यह कहना उचित होगा कि प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त हस्तकलाओं की उपेक्षा की जा रही है. यह लेख संजय घोष मीडिया अवार्ड्स 2022 के तहत लिखा गया है.
शेफाली मार्टिन्स
राजस्थान
(चरखा फीचर)
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