—डाo शिबन कृष्ण रैणा—
उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने गुरुवार को झांसी में माफिया-गुरु अतीक अहमद के फरार बेटे असद और उसके साथी गुलाम को मुठभेड़ में मार गिराया। दोनों पर 5 लाख रुपये का इनाम था और ये उमेश पाल हत्याकांड में मोस्ट वॉन्टेड अपराधी थे। एसटीएफ की ओर से बताया गया कि इन लोगों की घेराबंदी हुई तो असद और गुलाम फायरिंग करने लगे। इस पर जवाबी कार्रवाई की गई, जिसमें दोनों मारे गए। दोनों ही बाइक पर सवार थे। कहा जाता है कि इन के पास से विदेश में बने हथियार बरामद हुए हैं। ‘भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है’ पहले मैं इस उक्ति की सार्थकता और सत्यता को शक की निगाह से देखता था।मगर, जब से हमारे सामने भ्रष्टाचार से जुड़े विभिन्न आर्थिक घोटाले,पापाचार-जनित कुकृत्य,दलगत-राजनीति से प्रेरित सामाजिक अपराध,नारी-उत्पीडन से जुड़े प्रकरण आदि उजागर हुए हैं या हो रहे हैं और उनपर अदालतों अथवा अन्य जांच-एजेंसियों द्वारा संज्ञान लिए जाने लगे हैं, तो मुझे लगने लगा है कि इस ‘सुभाषित’ में दम है।यह अलग बात है कि कुछ प्रकरण अब भी ऐसे होंगे जो काल के गर्भ में विलीन हो गए हों या फिर उनकी सही ढंग से पैरवी नहीं हो पायी हो।सत्ता-सुख के नशे में डूबने वाले अधिकारी,देश को नयी दिशा देने का दम भरने वाले नेतागण या फिर सामान्य-जन भी यदि उक्त ‘सुभाषित’से मिलने वाली नसीहत को अपने जीवन में उतार लें, तो निश्चित ही हमारे समाज और जीवन में ‘विकृति’ नाममात्र को भी नहीं रहेगी। हमारी संस्कृति कहती है कि किसी को मन, वचन और कर्म से दुख नहीं पहुँचाना चाहिए,सच्चा मानव-धर्म यही है और अगर पहुंचाते हैं तो उस ज़िल्लत और दुर्गति को भोगने के लिए भी तैयार रहना होगा जो,इधर,पछले कुछ समय से दुर्जन और अधम-जन भोग रहे हैं।
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