आईएएस का दादा-दादी मजबूरी में दी जान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 2 अप्रैल 2023

आईएएस का दादा-दादी मजबूरी में दी जान

  • और उन्होंने घर मरने के बाद आर्य समाज को दे दी

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हरियाणा. हरियाणा के चरखी दादरी के बाढ़ड़ा की शिव कॉलोनी में अपने बड़े बेटे वीरेंद्र आर्य के पास जगदीश चंद्र आर्य (78 साल )और उनकी पत्नी भागली देवी  (77 साल ) रहते थे.इनके एक बेटे का नाम वीरेंद्र आर्य है. वीरेंद्र आर्य के बेटे का नाम विवेक आर्य है. विवेक आर्य साल 2021 बैच के आईएएस अफसर हैं. ये हरियाणा कैडर के आईएएस हैं और अभी अंडर ट्रेनी हैं.वर्तमान में वह करनाल में ट्रेनी काम कर रहे हैं. ट्रेनी आईएएस विवेक आर्य के दादा जगदीश चंद्र आर्या और दादी का नाम भागली है. इन दोनों ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर ली है. वजह दो वक्त की रोटी का नहीं मिलना. जबकि संपत्ति 30 करोड़ से ज्यादा ही है. दोनों की मौत 29 मार्च की रात में हुई.  सूचना पाकर पुलिस मौके पर पहुंची और बाढ़ड़ा थाने से भी पुलिस टीम को मौके पर बुलाया गया. वहीं, पुलिस को जगदीश चंद ने सुसाइड नोट भी सौंपा. हालत बिगड़ने पर बुजुर्ग दंपती को पहले बाढ़ड़ा के निजी अस्पताल ले जाया गया और वहां हालत गंभीर होने के चलते उन्हें दादरी सिविल अस्पताल भेजा गया. दादरी अस्पताल में चिकित्सकों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया. पुलिस ने सुसाइड नोट के आधार पर परिवार के 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.वहीं मृतक के बेटे वीरेंद्र ने बताया कि उम्र के इस पड़ाव में दोनों बीमारी के चलते परेशान थे, जिसके कारण उन्होंने यह कदम उठाया है.जानकारी के मुताबिक, मूलरूप से गोपी निवासी जगदीश चंद और भागली देवी अपने बेटे वीरेंद्र आर्य के पास बाढ़ड़ा के शिव कालोनी में रहते थे. एक आईएएस अफसर के दादा-दादी के पास बुढ़ापे में खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती थी. दोनों कई साल से एक बड़ी उम्मीद के इंतजार में थे. आंखें पथरा रहीं थीं. भूख गला घोंट रही थी. लेकिन जान जाती नहीं थी. आखिरकार दोनों ने दुख भर कहानी को कागज के पन्नों में सुसाइड नोट के रूप में उकेर दिया. मैं जगदीश चंद आर्य आपको अपना दुख सुनाता हूं. मेरे बेटों के पास बाढ़ड़ा में 30 करोड़ की संपत्ति है, लेकिन उनके पास मुझे देने के लिए दो रोटी नहीं हैं. मैं अपने छोटे बेटे के पास रहता था. 6 साल पहले उसकी मौत हो गई. कुछ दिन उसकी पत्नी ने उसे रोटी दी, लेकिन बाद में उसने गलत काम धंधा करना शुरू कर दिया. मेरे भतीजे को अपने साथ ले लिया. मैने इसका विरोध किया तो उनको यह बात अच्छी नहीं लगी. क्योंकि मेरे रहते हुए वह दोनों गलत काम नहीं कर सकते थे. इसलिए उन्होंने मुझे पीटकर घर से निकाल दिया. सुसाइड नोट में आगे जगदीश चंद आर्य जो लिखते हैं वो और भी दर्द भरा है..आगे लिखते हैं.. कि मैं दो साल तक अनाथ आश्रम में रहा और फिर आया तो इन्होंने मकान को ताला लगा दिया. इस दौरान मेरी पत्नी को लकवा मार दिया और हम दूसरे बेटे के पास रहने लगे. अब उन्होंने भी रखने से मना कर दिया और मुझे बासी आटे की रोटी और दो दिन का दही देना शुरू कर दिया. आगे लिखा कि ये मीठा जहर कितने दिन खाता, इसलिए मैंने सल्फास की गोली खा ली. मेरी मौत का कारण मेरी दो पुत्रवधु, एक बेटा व एक भतीजा है. जितने जुल्म इन चारों ने मेरे ऊपर किए, कोई भी संतान अपने माता-पिता पर न करें. मेरी प्रार्थना है कि इतना जुल्म मां-बाप पर नहीं करना चाहिए और सरकार और समाज इनको दंड दें. तब जाकर मेरी आत्मा को शांति मिलेगी. मेरी जमा पूंजी बैंक में दो एफडी और बाढ़ड़ा में दुकान है वह आर्य समाज बाढ़ड़ा को दी जाए. इन बुजुर्ग मां-बाप कहें या दादा दादी पर इनके सुसाइड नोट ने आज के बदलते रिश्तों में दरकती उम्मीदों को ऐसा तोड़ा है जिसे पढ़कर आंखों में आंसू और रिश्तों से भरोसा उठ जाएगा. हर मां-बाप का ये सपना होता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर खूब पैसा कमाए.इसके लिए अच्छी शिक्षा देने के लिए खुद दिन रात काम करते हैं, लेकिन कभी-कभी वही बच्चा अपने मां-बाप को ही भूल जाता है.जो वीरेंद्र आर्य का बेटा विवेक आर्य 2021 बैच का आईएएस अधिकारी भूलने वालों में शामिल हैं. मगर उन्होंने सोशल मीडिया फेसबुक पर विवेक आर्य ने पोस्ट में अपील कर रखा है.सबका साथ-सबका बचाव घर पर रहें,सुरक्षित रहें.स्वयं को,परिवार को व अपने देश को बचाएं.देश के नेतृत्वकर्ता की बातों को गंभीरता से लें.उनके द्वारा कही गयी हर एक बात दृढ़ता से पालन करें.स्टे होम,स्टे सेफ.मगर स्टे होम में आईएएस ने अपने दादा और दादी को अपने गांव हरियाणा के चरखी दादरी में रखा,परंतु स्टे होम में स्टे सेफ नहीं रख सका.उन दोनों ने सल्फास खाकर आत्महत्या कर लिया. उन्होंने सुसाइड नोट में लिखा कि मेरा पोता आईएएस है  30 करोड़ की जायजाद है लेकिन कोई मुझे दो रोटी नहीं देता और बुजुर्ग दंपत्ति ने आत्महत्या कर लिया.यह घर मेरे मरने के बाद आर्य समाज को दे दी. ऐसे अनेक है मोदी सरकार से उपेक्षित हैं.जो केवल एक हजार न्यूनतम पेंशन लेकर जीवन बीता रहे हैं.उनकी मांग 9 हजार को पूरी करने की दिशा में बापू जी के तीन बंदर बन बैठे है.शीघ्र मांग पूरी करने के इंतजार में पेंशनभोगी बैठे हैं.

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