- बिहारशरीफ को सांप्रदायिक उन्माद के लिए सोच समझकर चुना गया, एक पहचान गिराने की कोशिश हुई : दीपंकर भट्टाचार्य
- एआइपीएफ के बैनर से पटना में ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष का बिहार माॅडल’ पर परिचर्चा
- रामनवमी की आड़ में हुए सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं की कड़ी भर्त्सना
डाॅ. विद्यार्थी विकास ने कहा कि भारत में फासीवाद का आधार ब्राह्मणवाद है. भाजपा शासन में इतिहास की पाठ्य पुस्तकों से बहुत से अध्यायों को हटा दिया गया है. दूसरी ओर देश की 70 करोड़ आबादी आज भी भुखमरी के कगार पर है. लगातार मानवाधिकारों का हनन हो रहा है. बिहार की धरती से इन फासीवादियों को मुकम्मल जवाब मिलेगा. सामाजिक कार्यकर्ता सरफराज ने कहा कि देश में मुसलमानों को डर के साए में जीना पड़ रहा है. मदरसों को तहस-नहस किया जा रहा है. नमाज पढ़ते वक्त मस्जिदों पर हमला किया गया. राम के नाम पर दंगा-फसाद की इस राजनीति के खिलाफ हम सबको एकजुट होना होगा. मीना तिवारी ने कहा कि बिहार की महिलाओं ने काफी जदोजेहद के बाद अपने अधिकार पाए और अपनी पहचान हासिल की है. बिहार में जो संघर्ष चला है, उसमें बिहार की महिलाओं का बराबर का योगदान रहा है. आशा, रसोइया आदि स्कीम वर्करों की दावेदारी और उनकी मांगों को पूरी करने की जरूरत है. इसके पहले एआइपीएफ के उद्देश्यों को विस्तार से परिचर्चा में संतोष सहर ने रखा. बिहार में शांति सद्भावना की बहाली, सांप्रदायिक उन्माद के पीड़ितो को मुआवजा व सुरक्षा, एपीएमसी ऐक्ट की पुनर्बहाली की मांग पर चल रहे आंदोलनों, बागमती पर तटबंध बनाने के खिलाफ चल रहे आंदोलन,स्कीम वर्करों, फुटपाथ दुकानदारों, अतिथि सहायक प्राध्यापकों आदि के प्रति एआइपीएफ की ओर से एकजुटपा प्रकट की गई और आने वाले दिनों में इसे मजबूत बनाने का भी संकल्प लिया गया. अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गालिब ने कहा कि सांप्रदायिक उन्माद के खिलाफ एआइपीएफ शांति की अपील के साथ जनता के बीच जाएगा. कार्यक्रम से 41 सदस्यीय संयोजन समिति का भी गठन किया गया. एक सलाहकार मंडल का भी गठन किया गया, जिसमें प्रो. भारती एस कुमार, प्रो. संतोष कुमार, केडी यादव, पीएनपी पाल और संतोष सहर के नाम शामिल हैं. आज के कार्यक्रम में उपर्युक्त वक्ताओं के अलावा रामेश्वर चैधरी, रामलखन चैधरी, कुमार किशोर, विकास यादव, संतोष आर्या, विजयकांत सिन्हा, मंजू शर्मा, गजेन्द्र मांझी, फैयाज हाली, गुलाम सरवर आदि बड़ी संख्या में उपस्थित थे.
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