- 'अभियान संस्कृतिक मंच' ने किया विवान सुंदरम व सुनीत चोपड़ा की स्मृति सभा का आयोजन
माकपा से जुड़े नेता अरुण मिश्रा ने सुनीत चोपड़ा के साथ अपने संबंधों को याद करते हुए कहा " सुनीत चोपड़ा पटना तब आया करते थे ज़ब छात्र हुआ करते थे. उनका अपनी पत्नी से अलगाव वैचारिक मतभेद के कारण हुआ. वे खाने के भी बड़े शौक़ीन थे . जिस दिन मृत्यु हुई वे 5 अप्रैल को होने वाली रैली में शामिल होने जा रहे थे . सुनीत चोपड़ा से जो सीखने की बात है कि आपक भले ज्ञानी हैं लेकिन यदि जनता से जुड़ाव नहीं है तो फिर उस ज्ञान का कोई मतलब नहीं है . विवान सुंदरम से मेरा रिश्ता तब ना ज़ब हम यूथ डेलीगशन में हवाना जा रहे थे. तब के प्रधानमंत्री ने कहा था कि आप हवाना मात्र 50 डॉलर ले जा सकते थे. हमारा कोई खर्च न थे. एक दिन हम लोगों कहा गया कि विवान को मैकसिको जाना था जिसमें हमलोगों ने मदद किया था. विवान 1968 में फ्रांस में जो क्रांतिकारी उभार था उससे उनका जुड़ाव था. माच्चू -पिच्चू के शिखर प्र कविता लिखी थी. उनके जो विद्वता थी लिखने पढ़ने की वह हमलोगों को बड़ी विरासत छोड़ गए हैं. " सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्ण ने अपने संबोधन में कहा " सुनीत चोपड़ा ने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय का संविधान ड्राफ्ट किया था. उन्होंने ऐसे छात्र संघ की कल्पना की जिसके बारे में लिंगड़ोह कमिटी भूल कर गई. यदि भारत को देखना हो तो यहाँ की विविधता से परिचित होना है तब जे.एन.यू को देखना चाहिए. भारत में छात्र संघ के मॉडल का निर्माण किया सुनीत चोपड़ा ने. 2014 में क़ृषि कानून को अध्यादेश के जरिये जमीन अधिग्रहण किया जाए. उस आंदोलन के निर्माताओं में थे सुनीत चोपड़ा. विवान सुंदरम ने प्रगतिशील दुनिया बनाने के जो चिन्ह छोड़े हैं वे मिटाये नहीं जा सकते. "
बिहार म्यूजियम के डायरेक्टर अशोक कुमार सिन्हा ने दोनों को याद करते हुए कहा " ज़ब सुनीत चोपड़ा के बारे में ज़ब बात हो रहे थे तो मुझे लोहिया जी की याद रहे थे ज़ब वे जर्मनी से पढ़कर आये तो उनके पास पैसा न था. तब वे इंडियन एक्सप्रेस जाकर एक आलेख लिखा और उसी पैसे से घर गए. ठीक ऐसे ही हाल कर्पूरी ठाकुर के पास बस का भाड़ा नहीं था. लेकिन इनके पास किताबें रहती थी. उन्होंने किताबों को भेजा तब लौटे. विवान सुंदरम से मेरी दो मुलाक़ातें हुई. 2012 में ज़ब मेरी पोस्टिंग उपेंद्र महारथी में हुई. वहां एक बार केदार नाथ सिंह से पूछा कि किसको कला समीक्षक के रूप में बुलाएं तब विनोद भारद्वाज, प्रयाग शुक्ला, प्रभु जोशी वगैरह आये. विवान सुंदरम नहीं आ पाए थे. एक बार ज़ब मैं इंदौर गया तो प्रभु जोशी के घर पर विवान सुंदरम से मुलाकाट हुई. लगभग दो ढाई घंटे तक बात होती रही. प्रभु जोशी और विवान सुंदरम की बातचीत से समकालीन कला के बारे में बहुत कुछ पता चला. चार -पांच साल पहले अंजनी कुमार सिंह के अतिथि के रूप में आमंत्रित थे. मैंने विवान सुंदरम से पूछा था कि यहां के लोककला का भविष्य है या नहीं. तब विवान सुंदरम ने बताया था कि बिहार के कलाकार जिन विषम परिस्थितियों में बिहार के कलाकार काम कर रहे हैं उसमें यदि कला की दुनिया में कुछ बढ़िया हुआ तो बिहार से होकर ही गुजरेगा. " युवा चित्रकार ने जसम के पूर्व महासचिव अजय सिंह का विवान सुंदरम पर लिखे आलेख का पाठ किया. इस मौके पर बिहार के चर्चित कलाकार वीरश्वर भट्टाचार्य की पत्नी श्रद्धा भट्टचार्य की स्मृति को श्रद्धांजलि अर्पित किया गया. रंगकर्मी राजू कुमार ने अपनी कविता का पाठ किया. सभा में मौजूद प्रमुख लोगों में थे लेखक अरुण सिंह, अर्चना सिंह, फोटोग्राफ़र शैलेन्द्र, मूर्तिकार रामू कुमार, कमल किशोर, राखी, बिट्टू भारद्वाज , मुकेश, अभिषेक, पुष्पेंद्र शुक्ला, अक्षय, गगन गौरव, प्रमोद, रविशंकर उपाध्याय, गौतम ग़ुलाल, मधु, अंकिता, समप्रीत, प्रेम प्रतिज्ञा आदि.
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