किसानों को हल्दी की खेती करने से बहुत ही कम लागत में और कम खेती लायक जमीन में अच्छा मुनाफा किसान भाई प्राप्त कर सकते है | हल्दी का उपयोग हजारों वर्षों से औषधि उपचार के लिए होता आ रहा है | इसमें कुरकमीन तत्व होता है | जिसके कारण हल्दी का पीला रंग होता है | इसका उपयोग अल्सर , पेट सम्बन्धी तकलीफे बिमारियों के उपचार हेतु किया जाता है | इसके अलावा घर में हर इसका उपयोग होता है | अत: इसकी मांग पुरे साल भर रहती है | इसका उत्पादन करके किसान अपनी आजीविका में वृद्धि कर सकता है | भगवान जी बताते है कि ये पारम्परिक फसल के अलावा अपने खेत में प्रयोगात्मक खेती करने का इरादा मेरे जहन में बहुत दिनों से था | वाग़धारा संस्था के ट्रेंनिग सच्ची खेती के बारे में जाना सिखा उसमें मुझे जैविक खेती क्या है और कैसे फायदेमंद कैसे हो सकती है एवं आज के दौर में जैविक खेती कितनी महत्वपूर्ण और आवश्यक है इसके बारे में सिखकर मुझे सच्ची करने के लिए प्रेरित किया |साथ ही सफल किसान भगवान जी बताते हैं कि हल्दी की अच्छी उपज के लिए वे अपने खेत में गोबर खाद का उपयोग करते हैं ! वहीं जरूरत अनुसार दसपरनी की छिड़काव करते रहते हैं ! साथ ही किसान ने अपने खेत में हल्दी के साथ मक्का , स और गेहूं की भी खेती करते हैं, जिससे उन्हें हल्दी की खेती से अलग मुनाफा भी मिला है ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए उन्होंने अब हल्दी पाउडर बनाकर ! इससे पैकिंग करके वे हल्दी बाजारों में अच्छ दामों में बेचते हैं, जिससे उन्हें प्रति किलो 400 रुपये मिलते हैं मैंने 10 किलो हल्दी 4000/- रूपये तक बेचीं है |
मुक्तसंचार खुला मुर्गीपालन व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार युवाओं के साथ-साथ सिमांत भूमि एवं वाडी बाग वाले किसानों के लिए उपयोगी हो सकता है। शुरुआत में सीमित संख्या में मुर्गियां रखने से एक साल में बड़ी संख्या में अंडे का उत्पादन किया जा रहा है। इसके अलावा, यदि वर्ष में दो बार चूजों का उत्पादन किया जाता है और तीन से चार महीने तक उनकी देखभाल करने के बाद बाजार में मांस मुर्गियों के रूप में बेचा जाता है, तो लाभ में वृद्धि की जा सकती है इसी कडी में आजिविका बढाया जा रहा है । इस का बेजोड उदाहरण डुंगरपुर जिले के साबला तहसील गाव सागोट के आदिवाशी सिंमात किसान भगवान जगला रौत ने मुक्तसंचार मुर्गी पालन का भगवानजीने एक माँडल विकसित किया हैं क्षेत्र के किसान भी ऐसे मॉडल देख सकते हैं। 55 वर्षीय भगवान रौत ने अपने खेत में एक मुक्तसंचार खुला पैटर्न स्थापित किया है। उनके पास करीब तिन बीघा खेत है। उसकी देखभाल भगवानजी और उनकी पत्नी करते है! रौत अपने विगत दिनों के बारे में बताते हैं कोई काम न मिलने के कारणवश मैं गुजरात के गोधरा शहर में भवन निर्माण मजदूर के रूप में कार्य करने लगा पर उम्र बढने और भारी काम होने से एक साल भर मै वापस गाव लौट आया और तीन मुर्गों के साथ कारोबार की शुरुआत की थी। परंतू कुछ लाभांश नहीं हो रहा था और पर्याप्त मात्रा में जानकारी ली नहीं थी, तब वागधारा के क्षेत्रीय सहजकर्ता नरेश बुनकर ने मुझे वागधारा संस्था से जुडणे का अनुरोध किया वागधारा संस्था जो जनजातिय क्षेत्र के जलवायु परिवर्तन के कारण स्थायी टिकाऊ आजिविका एवं बच्चो के लिए शिक्षा स्वास्थ्य एवं अधिकारो और भागीदारी को सुनिश्चित करती हैं! मै 2019 में वागधारा संस्था के साथ स्वराज मित्र के रूप में कार्य करने लगा और फिर मुझे संस्था द्वारा प्रशिक्षण दिया मेरी आजीविका बढाने हेतू संस्था ने समय समय पर प्रशिक्षण तो दिया और तकनिकी जानकारी प्रदान कि और 30 प्रतापधन मुर्गियाँ दि एवं उन्नत खेती हेतू दशपर्णी दवाई, कंपोस्ट बेड और खेती के लिए औजार दिये ! मुक्तसंचार प्रणाली अपनाने से आज मेरे यहा 120 मुर्गियाँ तक संख्या पहुच गई हैं! भगवान रौत कहते हैं की खुला मुक्त संचार का वातावरण रखने से उनका स्वास्थ्य अच्छा बना रहा। और बेशक, मुर्गियाँ मृत्यु दर में कमी आई है। अपने घर के पास खेत में 30x 10 फीट साइज का शेड बनाया गया है। मुर्गियों के लिए रैन बसेरा की व्यवस्था की गई है। शेड के चारों ओर 40 फीट जगह को 5 फीट ऊंची तार की जाली से घेरा गया है। बाड़ के अंदर कुछ पेड़ हैं, और शेड के पीछे बड़े पेड़ों की छाया लगातार बनी हुई है। शेड के अंदर अंडे सेने के लिए मुर्गियों को कतार में रखने की व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा बोरियों में अंडे देने की भी व्यवस्था की गई है। उसके नीचे ऊंचे बैठने के लिए चादर की छत और लकड़ी के खंभों की भी व्यवस्था की गई है।
खाद्य प्रबंधन
लंबे अनुभव के कारण भगवान जी अब मुर्गियों के लिए आवश्यक भोजन चारे का अनुमान लगा चुके हैं। उनका कहना है कि वे बहुत नपे-तुले तरीके से खाना नहीं देते। प्रतिदिन लगभग 10 से 12 किलो स्टार्टर, तीन किलो आटा और बड़ी मात्रा में गेहूं चावल व गर्मी और लू से बचाने के लिए प्याज के छोटे छोटे तुकडे करके खिलाते है और जब भी बाजार जाना होता है तब सब्जी विक्रेताओ से उसके अपशिष्ट के छिलके इत्यादी भी लाते है लहसुन का पानी पिलाते अनाज फूड शेड क्षेत्र में रखा जाता है। इसके अलावा बांध पर चौड़ी पत्ती वाली घास, मेथी घास का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा,समय समय पर वागधारा के आजिविका विषेशज्ञ के परामर्श के अनुसार कैल्सियम की कमी कैसे पूरा किया जा सके उस हेतु समय समय पर मार्गदर्सन मिलाता रहा है । हर महीने 2 से 3 हजार खाने पर खर्च हो जाता है। और कुआं होने के कारण पानी की कोई कमी नहीं रहती।
बिक्री प्रबंधन और अर्थशास्त्र
रोजाना 30 से 40 अंडे मिलते हैं। ग्रामीण होने के कारण इनकी काफी मांग है। बेशक हर दिन बिक्री होती है। दर 15 रुपये प्रति अंडा है। इसलिए प्रतिदिन कम से 600 से , 700 रुपए की आमदनी हो जाती है। इसके अलावा सागोट गांव की आबादी तीन हजार है और इसके आसपास चार गांव हैं। इसलिए ग्राहकों की कमी नहीं है। हर महीने 5 से 10 मुर्गियाँ बिकती हैं। होटल, ढाबे, पेशेवर के साथ-साथ ग्राहक भी मौके पर आकर खरीदारी करते हैं। यह 500रुपये से 600 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। अंडे और मुर्गियों की कुल बिक्री से 10 हजार से 15 हजार रुपये प्रतिमाह आमदनी हो रही हैं । मुक्त संचार मुर्गी पालन किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में फंसे सीमांत आदिवासी किसानों के लिए को अच्छी खासी आमदनी का पर्याय उपलब्ध हैं । वाग़धारा ने मेरी आजीविका ही नहीं अपितु मेरे परिवार के स्वास्थ्य हेतु भी पोषण वाटिका में मुझे सब्जी किट उपलब्ध करवाया उसमे भिण्डी, चावला, लौकी, तुरई, टमाटर, बेंगन, ग्वारफली, मैथी, पालक , मिर्ची आदि प्रकार की सब्जियों के उत्पादन करके भी मेरी परिवार का पोषण स्तर बढाया | मुझे जैविक खेती के प्रति प्रेरित करकर मेरी आजीविका बढाने में मदद की इसके लिए मै वाग़धारा संस्था का आभारी हूँ |
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