खाद्य प्रबंधन
लंबे अनुभव के कारण भगवान जी अब मुर्गियों के लिए आवश्यक भोजन चारे का अनुमान लगा चुके हैं। उनका कहना है कि वे बहुत नपे-तुले तरीके से खाना नहीं देते। प्रतिदिन लगभग 10 से 12 किलो स्टार्टर, तीन किलो आटा और बड़ी मात्रा में गेहूं चावल व गर्मी और लू से बचाने के लिए प्याज के छोटे छोटे तुकडे करके खिलाते है और जब भी बाजार जाना होता है तब सब्जी विक्रेताओ से उसके अपशिष्ट के छिलके इत्यादी भी लाते है लहसुन का पानी पिलाते अनाज फूड शेड क्षेत्र में रखा जाता है। इसके अलावा बांध पर चौड़ी पत्ती वाली घास, मेथी घास का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा,समय समय पर वागधारा के आजिविका विषेशज्ञ के परामर्श के अनुसार कैल्सियम की कमी कैसे पूरा किया जा सके उस हेतु समय समय पर मार्गदर्सन मिलाता रहा है । हर महीने 2 से 3 हजार खाने पर खर्च हो जाता है। और कुआं होने के कारण पानी की कोई कमी नहीं रहती।
बिक्री प्रबंधन और अर्थशास्त्र
रोजाना 30 से 40 अंडे मिलते हैं। ग्रामीण होने के कारण इनकी काफी मांग है। बेशक हर दिन बिक्री होती है। दर 15 रुपये प्रति अंडा है। इसलिए प्रतिदिन कम से 600 से , 700 रुपए की आमदनी हो जाती है। इसके अलावा सागोट गांव की आबादी तीन हजार है और इसके आसपास चार गांव हैं। इसलिए ग्राहकों की कमी नहीं है। हर महीने 5 से 10 मुर्गियाँ बिकती हैं। होटल, ढाबे, पेशेवर के साथ-साथ ग्राहक भी मौके पर आकर खरीदारी करते हैं। यह 500रुपये से 600 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। अंडे और मुर्गियों की कुल बिक्री से 10 हजार से 15 हजार रुपये प्रतिमाह आमदनी हो रही हैं । मुक्त संचार मुर्गी पालन किसानों को जलवायु परिवर्तन के कारण संकट में फंसे सीमांत आदिवासी किसानों के लिए को अच्छी खासी आमदनी का पर्याय उपलब्ध हैं । वाग़धारा ने मेरी आजीविका ही नहीं अपितु मेरे परिवार के स्वास्थ्य हेतु भी पोषण वाटिका में मुझे सब्जी किट उपलब्ध करवाया उसमे भिण्डी, चावला, लौकी, तुरई, टमाटर, बेंगन, ग्वारफली, मैथी, पालक , मिर्ची आदि प्रकार की सब्जियों के उत्पादन करके भी मेरी परिवार का पोषण स्तर बढाया | मुझे जैविक खेती के प्रति प्रेरित करकर मेरी आजीविका बढाने में मदद की इसके लिए मै वाग़धारा संस्था का आभारी हूँ |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें