राजस्थान : मुर्गी पालन से रूका पलायन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 मई 2023

राजस्थान : मुर्गी पालन से रूका पलायन

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जनजातीय बहुल्या दक्षिण राजस्थान के बांसवाडा  जिले के  तहसील कुशलगड गाव आमलीपाडा  के  कुलदीप कलसिंग डामोर उम्र  25 साल ईनके पास 6 बीगा  का खेत है। इनके कृषि क्षेत्र में वाकडी नाम की नदी है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सूखे के कारण वह सूखी पड़ी है। उनके पास पानी का स्थायी और सुनिश्चित स्रोत नहीं है। उनकी खेती बारिश और नदी के पानी पर निर्भर है। वे कपास और मक्के की खेती करते हैं।  अपने परिवार के साथ कुलदीप कृषि की देखभाल करते हैं। कुलदीप ने इलेक्ट्रॉनिक  डिप्लोमा  तक की पढ़ाई की है। अपने विगत दिनों के बारे में कुलदीप बताते है कि पढ़ाई पूरी होने के बाद वह उदयपूर के एल अँन्ड टी कंपनी में कुशल श्रमिक के रुप में कार्य करने लगे पर औद्योगिक मंदी और पर्याप्त मात्रा में वेतन नहीं मिलने के कारण वो मात्र 6 माह में वापस गाव आये और उन्होंने सोचा कि  इधर उधर भटकने से अच्छा खेती करके को परिवार के लिए आर्थिक रूप से कुछ योगदान देना चाहिए। और वह वागधारा गठित ग्राम स्वराज समुह में सदस्य के रूप में शामिल हुआ और वहा गाव के विकास के मायने और उद्योग के तौर तरीके सरकारी योजनाओं में लाभान्वित करना, सरकारी जनकल्याणकारी योजनाओं में जुडाव आदी के बारे में चर्चा एवम प्रशिक्षण में सम्मिलित होने लगे और मासीक बैठक में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे कुलदीप बताते हैं कि वागधारा के आजिविका बढाने हेतु समय समय पर मिलनेवाले प्रशिक्षण के बाद उनके दिमाग में शुरू से ही लघु उद्योग का विचार आ रहा था। इसी से उन्होंने एक साल पहले घरेलू पोल्ट्री व्यवसाय शुरू किया और वागधारा संस्था द्वारा आजिविका बढाने हेतू 28 प्रतापधन मुर्गियाँ दि गई आज कुलदीप मुर्गीया  बेचकर एक अच्छा नाम बन गया है। इस सारे काम में उनके परिवार कि पत्नी, पिताजी, माँ  सभी उनकी मदद करते हैं। कुलदीप अपने आमलीपाडा गांव के वागधारा गठित ग्राम स्वराज समुह के अध्यक्ष के  रूप में जिम्मेदारी संभालता  हैं। इस समस्त कार्य के लिए वागधारा संस्था के आजिविका विषेशज्ञ परमेस पाटीदार का मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे है । 28 मुर्गियों के साथ पोल्ट्री व्यवसाय शुरू करने के बाद,वागधारा विशेषज्ञों से चर्चा की। फार्म बंदोबस्त और पोल्ट्री की मार्केटिंग को देखते हुए कुलदीप  ने देसी मुर्गियां ही रखने का फैसला किया। शुरुआत में उन्हें 28 देशी मुर्गियां वागधारा से मिली । पहले दो महीनों में ही उन्हें अंडे बेचने से अच्छे पैसे मिलने लगे। उनका उत्साह बढ़ गया। । वर्तमान में उनके पास 70 मुर्गियां  हैं। बाजार में मांग को देखते हुए अब देशी नस्ल के  नए छुझे खरीद नेका ईरादा हैं । मुर्गियों की सुरक्षा के लिए पूरे  मुर्गी पालन क्षेत्र की घेराबंदी कर दी गई है। इसलिए कोई मुर्गी बाड़े से बाहर नहीं जा सकती। दिन भर ये मुर्गियां खाना खाने और पानी पीने के लिए संरक्षित क्षेत्र में खुलेआम विचरण करती हैं।  मुर्गियों के खाने का समय दिन में दो-तीन बार निश्चित होता है। चिकन फीड में गेहूं, मक्का, चावल का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही कुलदीप डामोर  ने मुर्गे के चारे के लिए अजोला का उत्पादन शुरू कर दिया है। एजोला का उपयोग मुर्गे के चारे में किया जाता है। मुर्गियां अज़ोला  खाना पसंद करती हैं। यह प्रोटीन में उच्च है। अजोला मुर्गियों के वजन को बढ़ाता है और उनके आकार को भी बढ़ाता है। जाहिर है, अंडे के उत्पादन और मुर्गियों के वजन में भी सुधार होता है। आर्थिक आय में वृद्धि के लिए यह शुभ है।


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गांव में बढ़ रही अंडे, मुर्गियों की मांग ग्रामीण के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी देशी मुर्गियों और अंडों की अच्छी मांग है. कुलदीप गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों में मुर्गियां और अंडे बेचता है। अब उन्हें चिकन या अंडे बेचने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है, ग्राहक सीधे उनके घर आ जाता है. बाजार में  15 रुपये प्रति देशी अंडा,  और 500 रुपये प्रति मुर्गी मौके पर ही मिल जाती है। दरें बाजार से भिन्न होती हैं। मुर्गियां प्रति सप्ताह 50 अंडे देती हैं। मांग के हिसाब से प्रति माह पांच मुर्गे बिकते हैं। मुर्गे के चारे और रख-रखाव का खर्च घटाने के बाद उन्हें मुर्गे और अंडे की बिक्री से प्रति माह औसतन छह हजार का शुद्ध मुनाफा होता है. बैकयार्ड गार्डन , वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन ,कुलदीप वागधारा की सच्ची खेती प्रणाली से जुडे हैं जो जैवीक खेती को प्रमोट करती हैं एक कृषक के रूप में वे अन्य  लोगों को भी मार्गदर्शन करता हैं, कुलदीप ने अपने ही खेत में 15 गुणा 15 फीट की जगह में बाग लगाया है। इसमें धनिया, हरी मिर्च, लौकी , ग्वार, भिंडी, टमाटर , चवला की खेती की जाती है। कुलदीप खेती के लिए स्वदेशी किस्मों का उपयोग करते हैं। और  सभी फसलें जैविक रूप से उगाई जाती हैं। उन्होंने अपने  की फसलों के लिए वर्मीकम्पोस्ट बनाना शुरू किया। इसके साथ ही जीवामृत, दशापर्णी अर्क का इस्तेमाल करते हैं। इस साल सोयाबीन की फसल के लिए वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल किया गया। इसका अच्छा फायदा हुआ है। कुलदीप ने मुर्गीपालन के अलावा दुग्ध उत्पादन व्यावसाय करता है उसके पास दो भैस है और  पिछले साल  दुध बेचकर 20,000 रुपये कमाए। इस साल भी उन्हें 30 से 40 हजार के आसपास आमदनी की उम्मीद है।

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