ग्रेजुएट चायवाली के नाम से मशहूर प्रियंका गुप्ता
ग्रेजुएट चायवाली के नाम से मशहूर प्रियंका गुप्ता बिहार के पूर्णिया जिले की रहने वाली है. प्रियंका ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने सामान्य प्रतियोगिता के क्षेत्र में कई प्रतियोगी परीक्षाओं में भी भाग लिया था. पटना की ग्रेजुएट चायवाली प्रियंका गुप्ता आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. प्रियंका बताती हैं कि उसे पहचान दिलाने में मीडिया का अहम योगदान है. वे बताती है कि जब उन्होंने चाय का स्टॉल लगाया तो मीडिया ने उसे जमकर कवर किया. इसका परिणाम यह हुआ कि उसे दूर-दूर तक के लोग जानने लगे. लेकिन उसकी चाय के कार्ट को अतिक्रमण विरोधी अभियान के तहत निगम ने कई बार उठा लिया. इसके बाद वह सोशल मीडिया पर रोती हुई भी नजर आई थी. लेकिन एक बार फिर वह नए क्लेवर में वापस आ गई है. पटना के वीमेंस कॉलेज के सामने कभी चाय का स्टॉल लगाती थी. बाद में उसने अपना स्टॉल बोरिंग रोड में लगाया. अब ग्रेजुएट चाय वाली सिर्फ चाय ही नहीं बल्कि स्वादिष्ट पकवान भी खिला रही है. ग्रेजुएट चाय वाली ने कार्ट छोड़कर अब अपना एक रेस्त्रा खोल लिया है. इस नई जगह पर सिर्फ फ्लेवर्ड चाय ही नहीं, बल्कि खाने-पीने की कई और लजीज चीजें भी मिलती है। प्रियंका ने पटना के बोरिंग रोड में हरिहर चैंबर के सामने पंडूई पैलेस के बेसमेंट में अपना रेस्त्रा खोला है. शेफ बैजू कुमार की माने तो इस रेस्त्रा में फ्लैवर्ड चाय के अलावा मोमोज, बर्गर, रोल और बिरयानी जैसे तमाम फूड आइटम्स भी खिलाए जा रहे हैं. इस बार तिजोरी भी रखी गई है. दावा किया जा रहा है कि अगर किसी ग्राहक को खाना पसंद नहीं आया तो शत प्रतिशत पैसा वापस कर दिया जाएगा. शेफ बैजू कुमार इस रेस्त्रा के पार्टनर भी हैं. वे बताते हैं कि वे अपने फूड आइटम्स में विदेशी वेजिटेबल्स मिलाते हैं, जिससे स्वाद बढ़ जाता है.
पत्रकार ददन विश्वकर्मा ने नोएडा फिल्म सिटी में पोहे का ठेला लगा
ज़ी न्यूज़ से नौकरी से निकाले जाने के बाद पत्रकार ददन विश्वकर्मा ने नोएडा फिल्म सिटी में पोहे का ठेला लगा लिया है. तीन महीने पहले तक इसी फिल्म सिटी में ददन विश्वकर्मा ज़ी न्यूज़ में बतौर असिस्टेंट न्यूज़ एडिटर कार्यरत थे. फिलहाल उन्होंने फिल्म सिटी में आज तक के ऑफिस के ठीक सामने ठेले पर पोहा-जलेबी बेचने का नया व्यवसाय शुरू किया है. ददन विश्वकर्मा ने बताया, "दिसंबर 2022 में छटनी और ऑफिस पॉलिटिक्स की वजह से नौकरी से निकाल दिया गया. तीन महीने तक नौकरी ढूंढने के बावजूद जब नौकरी नहीं मिली तो आर्थिक मजबूरियों के कारण मैंने यह ठेला लगाया है." ददन विश्वकर्मा ने हमें बताया कि उन्हें 13 सालों का पत्रकारिता का अनुभव है. भारतीय जनसंचार संस्थान से वर्ष 2010-11 में हिंदी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद वह दैनिक भास्कर के साथ जुड़े. 2011 से लेकर 2014 तक दैनिक भास्कर में काम करने के बाद उन्होंने नवभारत टाइम्स के साथ काम किया. यहां 2014 से 2016 तक काम करने के बाद वे आज तक चले गए. यहां उन्होंने चार सालों तक काम किया. इसके बाद 2020 में उन्होंने ज़ी न्यूज़ ज्वाइन कर लिया. हालांकि दिसंबर 2022 में ऑफिस पॉलिटिक्स और छंटनी का शिकार होने के कारण उन्हें अपनी नौकरी गंवानी पड़ी. ददन बताते हैं कि उन्होंने पत्रकारिता के जरिए समाज को कुछ देने के मकसद से बीएससी छोड़कर पत्रकारिता की पढ़ाई की थी. लेकिन आज आर्थिक मजबूरियों के चलते उन्हें ठेला लगाना पड़ रहा है. वह कहते हैं यह मत सोचिए कि पत्रकार ठेला लगा रहा है. ये ठेला कोई पत्रकार नहीं लगा रहा है बल्कि मजबूरियों और परिस्थितियों में जकड़ा हुआ इंसान ठेला लगा रहा है. पत्रकारिता छोड़ने के सवाल पर ददन कहते हैं कि एक पत्रकार हमेशा पत्रकार होता है, चाहे वह किसी संस्थान से जुड़ा हो या न जुड़ा हो. उन्होंने बताया कि ठेला इसलिए शुरू किया है ताकि परिवार गुजारा का हो सके. वे सोशल मीडिया के जरिए पत्रकारिता जारी रखने की बात कहते हैं. वह कहते हैं कि जब उन्हें जरूरत महसूस होगी कि तो मुद्दों पर बोलेंगे भी और लिखेंगे भी. ददन विश्वकर्मा ने अपने ठेले का नाम ‘पत्रकार पोहा वाला’ रखा है. उनके पास कुल दो तरह के पोहा हैं, एक रिपोर्टर स्पेशल और एक एडिटर स्पेशल.
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