- 75 दिन में बिकीं 13000 प्रतियाँ
- हिंदी का पहला बेस्टसेलर आत्मकथात्मक उपन्यास बना ‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’
ज़िंदगी और जज़्बे की बेमिसाल कहानी
‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’ में पीयूष मिश्रा ने अपने जीवन संघर्ष और ख़ुद को साबित करने की बेमिसाल कहानी लिखी है। बतौर अभिनेता उनके जीवन का अब तक का सफ़र किस तरह के उतार-चढ़ाव, संघर्ष-सफलता का रहा है, उसे यह किताब पहली बार मुकम्मल ढंग से सामने लाती है। उपन्यास विधा में लिखी गई इस आत्मकथा से हम पीयूष मिश्रा के जीवन से जुड़े शहरों — ग्वालियर, दिल्ली और मुम्बई की फ़िल्मी दुनिया के सुनहरे-अंधेरे क़िस्सों के साथ उनकी भीतरी दुनिया, उनके मन के अब तक ढँके कोनों-अंतरों को भी बहुत करीब से जान और महसूस कर पाते हैं। यह किताब एक अभिनेता, गीतकार, नाटककार, कवि, गायक के जीवन की कहानी मात्र नहीं है बल्कि यह एक हौसले के टूटकर बिखर जाने से बचने और खुद को साबित करने की बेमिसाल प्रेरक कथा भी है। इसकी भाषा और कहन के अंदाज़ में एक ताजगी है।
दिग्गज लेखकों, निर्देशकों से लेकर युवाओं तक की पसंद
इस आत्मकथात्मक उपन्यास के बहाने पीयूष मिश्रा की लेखनी का लोहा एक तरफ़ ममता कालिया जैसी दिग्गज कथाकार और अनुराग कश्यप जैसे चर्चित फ़िल्मकार अनुराग कश्यप ने माना है तो दूसरी तरफ़ आम युवा पाठकों की बड़ी तादाद उनकी मुरीद बन रही है। जानी-मानी कथाकार ममता कालिया कहती हैं, "जिस अंदाज़ में पीयूष मिश्रा ने अपनी यह किताब ‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’ लिखी है, इसे आत्मकथा के बजाय संघर्ष-कथा कहना माक़ूल होगा। कहन ऐसी कि किताब छोड़ी न जाय। किताब में हमारी देखी हुई दुनिया का चुम्बक है। सफलता का संघर्ष यहां गहरे रंगों में उभरा है। आधे पन्ने पढ़ते-पढ़ते हम मनाने लगते हैं—या खुदा, इसका हीरो कामयाब हो जाये। उसे हारने न देना।" पीयूष मिश्रा को बेहद करीब से जानने वाले फ़िल्म निर्माता-निर्देशक अनुराग कश्यप लिखते हैं, "इस आदमी ने ज़िन्दगी जी है। एक बेचैन और प्रेरक ज़िन्दगी। लेखन का बेहद ईमानदार और नंगा टुकड़ा, एक आत्मकथा; जिसे उपन्यास की शक्ल में लिखा गया है। उनकी यह किताब मेरे भीतर इस तरह प्रतिध्वनित हुई कि मैं अकेला नहीं रह गया। एक किताब जिसे वही लिख सकता है जो क्रूरता की हद तक ईमानदार हो। एक किताब जिसकी तुलना मैं जेम्स ज्वायस की ‘ऐ पोट्रेट ऑफ द आर्टिस्ट एज़ ए यंग मैन’ से कर रहा हूँ। किताब जो एक लीजेंड के बनने के बारे में है, उसके भीतर के शैतान, अपराधबोध, अहंकार और संगीत और लेखन की उसकी प्रतिभा के बारे में हैं। उस आदमी के बारे में जिसने जिन्दगी की समूची सरगम को जिया। यह किताब हर उस आदमी के लिए है जो इस मुल्क में कलाकार बनना चाहता है। हर उसके लिए जिसने अपनी कला की क़ीमत चुकाई है, या जो जानना चाहता है कि पीयूष मिश्रा होने के लिए क्या कुछ चुकाना पड़ता है।" वहीं, नोएडा में रहने वाले पाठक दुर्गेश तिवारी ने इस किताब पर अपनी राय साझा करते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि, नाट्य जगत का सीन और सिनेमा के कट-टू-कट अंदाज में लिखी गई यह किताब कहानी में कहानी कहती है। कई सारे ठहराव और भटकाव आते हैं, लेकिन ऊर्जा हर बार संभाल लेती है। पीयूष मिश्रा जी का यह उपन्यास कहानी को कुछ यूं बयां करता है, जिससे आभास होता है कि आम जीवन में भी अभिनय के चटख क्राफ्ट की ज्वाला लिए उछलते, धधकते, उबलते; शीर्ष की गहरी शांति की ओर बढ़ते जाना ही यथार्थ है, नियति है। यह क्राफ्ट ही है कि कहानी कभी मुकम्मल नहीं होती...क्योंकि जीवन ही कहानी है....! राजकमल प्रकाशन ने ‘तुम्हारी औक़ात क्या है पीयूष मिश्रा’ से पूर्व पीयूष मिश्रा के कविता संग्रह, गीत संग्रह और नाटक भी प्रकाशित किए हैं। 'कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया', 'तुम मेरी जान हो रज़िया बी'; 'मेरे मंच की सरगम; और 'आरम्भ है प्रचण्ड’ उनके चर्चित कविता और गीत संग्रह हैं। जबकि ‘जब शहर हमारा सोता है’, ‘गगन दमामा बाज्यो’, 'वो अब भी पुकारता है' और ‘सन् 2025 उर्फ़ इन्सीडेंट एट ट्वाइलाइट’ उनके बेहद लोकप्रिय नाटक हैं।
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