सेंगोल जिसे नए संसद भवन में रखेंगे मोदी जिसकाआजादी और नेहरू से है संबंध - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 24 मई 2023

सेंगोल जिसे नए संसद भवन में रखेंगे मोदी जिसकाआजादी और नेहरू से है संबंध

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नयी दिल्ली : 28 मई से भारत की नई संसद में कामकाज शुरू हो जाएगा और सदन का सत्र इसी बिल्डिंग में संचालित होगा। 28 मई को पीएम मोदी इसका उद्घाटन करेंगे और वे इस दिन स्पीकर की कुर्सी के बगल में सेंगोल को स्थापित करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने सेंगोल के महत्व और इसकी ऐतिहासिकता के बारे में विस्तार से बताया। सेंगोल आजाद भारत को प्रतीक स्वरूप अंग्रेज हुकूमत से मिला वह राजदंड है जो भारत की स्वतंत्रा की गारंटी के तौर पर आजादी के समय वायसराय ने सौंपा था।


आजादी मिलने के बाद जब सत्ता हस्तांतरण की बात सामने आई तो लॉर्ड माउंट बेटन ने जवाहरलाल नेहरू से पूछा कि किस प्रतीक के साथ स्वराज्य को सौंपा जाए। नेहरू ने स्वतंत्रता सेनानी सी राजा गोपालचारी से सुझाव मांगा, तब उन्होंने नेहरू को सेंगोल के बारे में जानकारी दी। तमिलनाडु में चोल साम्राज्य के राजा सत्ता का हस्तांतरण सेंगोल सौंपकर करते थे। भगवान शिव का आह्वाहन करते हुए राजा को इसे सौंपा जाता था। नेहरू को राजा गोपालचारी ने इसी परंपरा के बारे में बताया। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सेंगोल परंपरा के तहत सत्ता हस्तांतरण की बात को स्वीकार किया और तमिलनाडु से इसे मंगाया गया। सबसे पहले सेंगोल को लॉर्ड माउंट बेटन को दिया गया और फिर सत्ता हस्तांतरण के तौर पर इसे नेहरू के आवास ले जाया गया जहां गंगाजल से शुद्धिकरण के बाद सेंगोल को मंत्रोच्चारण के साथ नेहरू को सौंपा गया।


ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से भारत को हस्तांतरित किए गए सत्ता के प्रतीक ऐतिहासिक ‘सेंगोल’ को नए संसद भवन में पीएम मोदी स्थापित करेंगे। फिलहाल यह राजदंड सेंगेाल अभी इलाहाबाद में एक संग्रहालय में है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों से सत्ता के हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर सेंगोल प्राप्त किया था। नया संसद भवन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शिता का उदाहरण है। संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री संसद भवन के निर्माण में योगदान देने वाले 60,000 श्रमिकों को भी सम्मानित करेंगे। बतौर अमित शाह सेंगोल स्थापित करने का उद्देश्य तब भी स्पष्ट था और अब भी है। सत्ता का हस्तांतरण महज हाथ मिलाना या किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करना नहीं, बल्कि इसे आधुनिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय परंपराओं से जुड़ा रहना चाहिए। सेंगोल आज भी उसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है जो जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 में महसूस की थी।

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