गांव की किशोरी कांता कहती है कि हमें कच्चे घर में रहना अच्छा नहीं लगता है लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि हम पक्के मकानों में रह सकें. वह बताती है कि हमें बार बार इसकी लिपाई करनी पड़ती है और उसके लिए मिट्टी लेने बहुत दूर जाना पड़ता है. बारिश के दिनों में हमारे घरों में पानी टपकता रहता है और पूरा घर गीला हो जाता है. हम परिवार के लोग किसी प्रकार रात काटते हैं. यदि कभी रात में तेज़ आंधी तूफ़ान और भारी बारिश होती है तो वह हमारे लिए सबसे मुश्किल का समय होता है. उस समय हमारे लिए उस घर का होना और नहीं होना, सब बराबर हो जाता है क्योंकि बारिश का पूरा पानी घर में बहता रहता है. वहीं गर्मी के दिनों में चलने वाली लू से भी हमारी दिनचर्या अस्त व्यस्त हो जाती है. तेज़ लू के कारण हमें खाना बनाने में बहुत दिक्कत होती है. कांता बताती है कि बारिश के मौसम में हमें कई दिनों तक भूखा भी रहना पड़ता है क्योंकि उन दिनों बारिश में हम बाहर खाना नहीं बना सकते हैं और घर के अंदर भी हर जगह पानी टपकने के कारण हमें खाना बनाने में काफी कठिनाई होती है. एक अन्य किशोरी सोनिया बताती है कि हमारा गांव आर्थिक और सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ा हुआ है. इस गांव में अधिकतर आदिवासी समाज के लोग ही कच्चे घरों में रहते हैं. सोनिया भी आदिवासी समाज से है और उसका परिवार आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है. इस समाज में साक्षरता की दर भी बहुत कम है. अधिकतर पुरुष दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम करते हैं. वहीं महिला साक्षरता की बात करें तो यह चिंताजनक स्थिति में है. इस समाज में लड़कियों की शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, उन्हें पढ़ाई से ज़्यादा घरेलू कामों में लगा दिया जाता है. ऐसे में इस समाज को इंदिरा आवास योजना जैसी महत्वपूर्ण जानकारी का अभाव दिखता है. यही कारण है कि वर्षों से यह समाज कच्चे घरों में रहने पर मजबूर है. सोनिया बताती है कि कच्चे घर होने के कारण हमें शादी ब्याह जैसे उत्सवों में भी कई तरह की दिक्कतों सामना करना पड़ता है.
कच्चे घरों में सबसे ज्यादा तकलीफ महिलाओं को होती है क्योंकि सबसे ज्यादा काम उन्हें ही करना पड़ता है. अपनी परेशानी बयां करते हुए कविता देवी कहती हैं कि कच्चे घर होने से हमें बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. बारिश के समय में पूरा घर टपकता है, पूरे घर में पानी भर जाता है. कई बार पानी के काटने वाले विषैले जंतु भी बहकर घर में आ जाते हैं. ऐसे मुश्किल समय में छोटे बच्चों को उनसे बचाना बहुत बड़ी चुनौती हो जाती है. न हम उन्हें घर में रख पाते हैं और न बारिश में खुले छोड़ सकते हैं. कविता बताती है कि गांव में शराब की लत की वजह से कई लोगों के मकान पक्के नहीं बन सके हैं क्योंकि घर के पुरुष इंदिरा आवास योजना के तहत मिलने वाले पैसे से शराब पी जाते हैं. इन सबका खामियाज़ा केवल महिलाओं, किशोरियों और बच्चों को ही भुगतनी पड़ती है. ज्ञात हो कि इंदिरा आवास योजना का उद्देश्य यह है कि जो देश में आर्थिक रूप से कमजोर लोग हैं, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है और वह अपनी जिंदगी झुग्गियों का बस्तियों में रहकर गुजारा करते हैं. इसके अंतर्गत जिनके पास घर खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते हैं, ऐसे लोगों को इंदिरा आवास योजना के तहत ग्रामीण इलाकों में पक्के मकान उपलब्ध कराना होता है. साल 2020 तक इस योजना के तहत 1,57,70,485 रजिस्ट्रेशन हुए हैं जिसमे केंद्र सरकार की ओर से 1,42,77,807 मकान हेतु आवेदन स्वीकृत किये जा चुके हैं. इसमें 1,00,28,984 मकान का कार्य पूर्ण रूप से पूरा हो गया है. अब तक इंदिरा गांधी आवास योजना के तहत नागरिकों को 144745.5 करोड़ रुपये की मदद राशि भी प्रदान की जा चुकी है. ऐसे में स्थानीय प्रशासन , जनप्रतिनिधि और समाज के जागरूक लोगों का फ़र्ज़ बनता है कि वह मालपुर गांव के आदिवासी समाज को इस योजना के महत्त्व के बारे में जागरूक करें ताकि इस समाज की महिलाएं भी पक्के छत के नीचे अपना जीवन बसर कर सकें.
भावना कुमारी मीणा
उदयपुर, राजस्थान
(चरखा फीचर)
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