मौजूदा समय में गांधी के विचारों को खत्म करने की होड़ : राजगोपाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 23 मई 2023

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मौजूदा समय में गांधी के विचारों को खत्म करने की होड़ : राजगोपाल

प्रसिद्ध गांधीवादी और सर्वोदयी नेता व राष्ट्रीय एकता परिषद के संस्थापक, संयोजक राजगोपाल पी.वी. को जापान के विश्व प्रसिद्ध 40वें निवानो शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान राजगोपाल को न्याय और शांति के लिए अहिंसक माध्यमों से उनके असाधारण योगदान के लिए प्रदान किया गया है। नई दिल्ली गांधी शांति प्रतिष्ठान में राष्ट्रीय युवा योजना द्वारा उनका अभिनंदन किया। इस मौके पर उनका दिया गया भाषण मौजूदा समय के लिए प्रासंगिक है। पेश है उनका व्याख्यान –

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नई दिल्ली (निमिषा सिंह ) अब समय आ गया है कि हम सीमाओं की लड़ाई से ऊपर उठकर सोंचे। सोचने की जरूरत है। जिस प्रकार का खतरा हम सबके सामने है, यह लगता है कि, बचना है तो सबको मिलकर बचना है नहीं तो सबको डुबना है। ऐसा नहीं है कि एक देश बच जाएगा और दूसरा देश डूब जाएगा। आज अखबार मे लिखा  है कि किस प्रकार तापमान बढ़ रहा है वो जो टीपींग पॉइंट है जिस कारण से प्लानेट खत्म हो सकता है उस टीपींग पॉइंट मे हम पहुँचने जा रहे है। मैं कुछ दिन पहले जब यूरोप गया और देखा की बड़े बड़े बैनर लगे हुए है और उसमे लिखा है  टेन इयर्स टु गो। अगर इंसान प्रकृति के साथ ठीक व्यवहार करेंगे तो दस साल तक जी सकते है अगर प्रकृति के साथ बेईमानी करेंगे तो दस साल से जुयादा नहीं जी सकते है। जीवन मे आनंद होना चाहिए ,त्योहार होना चाहिए। भारत त्योहारों का देश है इसलिए हम कई त्योहार मना सकते है पर आज की जरूरत है कि जिस प्लानेट पर हम खड़े है उसकी हालत को समझना है। अगर इसको हम हल्के मे लेंगे ,जैसा की अखबारों मे लिखा है कि ग्लेसियर पिघल रहा है और हम सोचते हैं कि हमे क्या करना है, प्लास्टिक से समुन्द्र भर गया है मुझे क्या करना है, दिल्ली के एक किनारे से दूसरे किनारे तक यमुना मर रही है मुझे क्या करना है । अगर हम लोग इन मुद्दों के प्रति जागरूक ना होकर सिर्फ त्योहारों मे फंसे रहेंगे तो यकीन मानिए प्लानेट होने जा रहा है। इसको मज़ाक मे बिलकुल ना ले। इन विषयों पर गंभीरता से सोंचे ।  इस अवार्ड से मुझे  ये उम्मीद है कि हम सब साथ मिलकर इस प्लानेट के साथ जो हिंसा हो रही है, धरती के साथ जो हिंसा हो रही है,मनुस्य के साथ जो हिंसा हो रही है उसे तो रोकना ही रोकना है लेकिन प्लानेट के साथ जो हिंसा हो रहा है उसको रोकने मे हम सब साथ मिलकर प्रयास  करेंगे और यही करने के लिए मेरा यह अवार्ड है  अभी बहुत गंभीरता से सोचने का समय है। लोग कहते हैं कि अलग अलग देश के लोग अलग अलग ढंग से व्यवहार करते है। कई देशो के बारे मे कहा जाता है कि वहाँ एक प्रकार का नॉलेज सीकिंग सोसाइटी है यानि कि ज्ञान तलासने  वाली सोसाइटी। वो लोग सब जगह जाकर देखते है कि कैसे हम ज्ञान बटोर सकते है और उसी ज्ञान का इस्तेमाल करके हम समाज को कैसे बदल सकते हैं। और कुछ ऐसे भी समाज भी  है जो प्लेजर सीखने वाले समाज कि मस्ती कैसे हो सकती है ,मोबाइल फोन नया कैसे आ सकता है, ज्यादा घूमने के लिए कहाँ मिलेगा, पैसे कैसे बरबादी कैसे हो सकता है, कैसे वायुमंडल को बर्बाद कर सकते है, कैसे प्लास्टिक फेंककर नदियों को बर्बाद कर सकते है। यह सब किसलिए ? सिर्फ आनद के लिए।  इस आनंद के लिए हम कितने लोगों को हाशिये पर डाल रहें है इसके बारे मे सोचते नहीं । इसे प्लेजर  सिकिंग सोसाइटी कहते है। इसलिए हमे नए नए ज्ञान प्राप्त करना है कि धरती को बचाया कैसे जा सकता है। अहिंसा उसमे एक हथियार है। एक अहिंसक जीवन पद्धति से प्रकर्ति को कैसे बचाया जा सकता है। अहिंसक जीवन पद्धति का मतलब यह है कि मैं कितना और क्या क्या बर्बाद रहा हूँ ,प्लास्टिक फेक रहा हुं ,कितना पानी बर्बाद कर रहा हूँ मतलब प्लानेट के साथ भी अहिंसक व्यवहार करना है। 


मौजूदा समय मे यहाँ तक सोचा जा रहा है  कि गांधी को कैसे खत्म किया जाए,। जैसे हर घर मे एक बुजुर्ग होता है जो बच्चो को गलत करने से रोकता है ,टोकता है तो हम क्या चाहते है कि इस बुड्ढे से मुक्ति मिल जाएँ ताकि हम मनमानी कर सके। ठीक वैसे ही इस देश को गांधी से मुक्ति चाहिए ताकि गलत काम करने की छूट मिल जाए, झूठ बोल सके,उल्टा सुल्टा कमा सके, देश को लूट सकें, बर्बाद कर सकें इसलिए इस बुड्ढे से मुक्ति चाहिए। आज जब भारत के कई लोग बापू से छुट्टी पाने की कोशिश मे हैं, ऐसे मे दुनिया के लोग कह रहे हैं की गांधी ही एक रास्ता है। ये एक बहुत बड़ी स्टेटमेंट है। जापान समेत कई देशों को ऐसा लगता है की यह अहिंसा का समय है ,उन्हे लगता है की भारत जहां बुद्ध ,महावी,र महात्मा गांधी हुए शायद ये देश दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ा सके।  ये तो अंदर की बात है जो सिर्फ हम जानते हैं की हमारा देश अहिंसा के बदले हिंसा के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। दादागिरी के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। लेकिन अहिंसा के रास्ते पर चलने का एक जो कोशिश हो रहा है जन संगठनो और सामाजिक संगठनो के माध्यम से, निवानो उनका सम्मान है जो अंतर्राष्ट्रीय कमिटी ने मुझे दिया है। यह गांधी के विचारों का सम्मान है। अहिंसा का सम्मान है।  इसीलिए इस समय हमे यह सोचना है कि अगर सामाजिक काम का महत्व है, गांधी के विचार का महत्व है तो हम अपने देश को कैसे तैयार करे क्यूंकी  कई देशो के लोग यहाँ आना चाहते हैं। जापान के लोग आना चाहते है इस लिए मैंने जापान मे फोर फ़ोल्ड अप्रोच के बारे मे बताया। फोर फ़ोल्ड अप्रोच फॉर बिल्डिंग नॉन बायलेंस सोसाइटी का चार प्रकार का क्या काम करना होगा जिससे एक अहिंसात्मक समाज की रचना की जा सके। अहिंसात्मक समाज सिर्फ भाषण या नारा लगाने से तो होने वाला नहीं है। अहिंसात्मक समाज के लिए अलग अलग प्रकार के कदम उठाना पड़ता है। जब मुझे यह अवार्ड मिला तो मैंने सोचा कि यह भारत के सामाजिक संगठनो को ,सामाजिक काम करने वाले लोगों के लिए  है। ,भारत मे इसे लोग एन जी ओ नहीं कहते है बल्कि अपने स्वेक्षा से काम करने वाला एक समाज है जिसे वोलेंट्री  समाज कहते है। हम सबने देखा है कि हमारे समाज मे एक समय था जब वोलेंटेरिसम का बहुत सम्मान था। जब विनोबा भावे अपने स्वेक्षा से भूमि सुधार के काम मे लग गए ,14 साल, पैदल यात्रा किया  ,पूरे देश को इकट्ठा किया तब जवाहरलाल नेहरू उनके काम के अनुकूल कानून बनाते थे दिल्ली मे बैठकर। क्यूंकी एक समझ था कि हम कुछ लोग जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व मे का सरकार को ठीक से चलाने का काम करेंगे और कुछ लोग विनोवा जी के नेतृत्व मे समाज को ताकतवर बनाने का काम करेंगे। इसलिए जब बिनोवा जी भूमिदान का काम कर रहे  थे तो नेहरू जी को पता कि जब तक  ग्रामदान भूदान ऐक्ट नहीं बनाएँगे तब तक विनोवा जी का भूदान आंदोलन शास्वत नहीं होगा। इसलिए भूदान ग्रामदान ऐक्ट बनाया गया ताकि जिनको जमीन मिले, कानूनी रूप से उसका मालिकाना हक हो उस जमीन पर। 


जब नागालैंड मे बहुत अशांति हुई तो नेहरू जी और लोगों के पास नहीं गए ,जयप्रकाश जी  के पास गए और कहा कि आप शांति लाने मे मदद करें। सामाजिक काम करने वाले लोगों का इतना महत्व था कि सरकार को भी पता था की ये काम हम नहीं कर सकते। ये तो वही कर सकते है। जयप्रकाश जी नागालैंड मे जाकर शांति प्रयास मे लग गए और हम लोग भी वहाँ जाकर उनकी मदद मे लग गए। जब चंबल मे डाकुओं की समस्या बढ़ गई तो पुलिस के डी जी को बुलाकर नहीं कहा बल्कि जयप्रकाश जी और सुब्बा राव जी को कहा गया की किसी भी तरह देश को इस समस्या से छुटकारा दिलाइए । हम वादा करते हैं की आत्मसमर्पण करने वाले किसी भी डाकू को फांसी पर नहीं चढ़ाएँगे ,उनके बच्चो को उचित शिक्षा दी जाएगी, उन सबको जीवन जीने लायक जमीन देंगे। ये निवेदन सरकार ने जयप्रकाश जी से, सुब्बा जी से किया, बड़े गांधी नेतृत्व से किया। उत्तरप्रदेश मध्यप्रदेश और राजस्थान मे डाकुओं ने समर्पण किया। यहाँ तक कि जब पंच वर्षीय योजना बनती थी तो पहले विनोबा जी से पूछा जाता था की यह योजना सही है या नहीं। मैं यह कहना चाहता हूँ की एक समय था जब सामाजिक काम करने वालों का महत्व था लेकिन आज एकदम उल्टा है। आज सामाजिक काम करने वालों को देशद्रोही करार कर दिया जा रहा है। पिछले 75 सालों मे सामाजिक कामो का महत्व बहुत कम हो गया है । हम सब अपनी जगह ढूंढ रहे है कि सामाजिक काम  कैसे होगा। उसको तलासने मे लगे हैं हम सब ।  75 साल की आजादी मे महात्मा गांधी के देश मे जब सरकार को हम अहिंसात्मक नहीं बना सके तो अहिंसात्मक समाज की रचना भला कैसे होगी? सरकार का भरोसा अभी भी पुलिस पर है आर्मी पर है। उनको आज भी भी बातचीत या संवाद पर भरोसा नहीं है। पिछले कई दिनो से आंदोलन करने वाले लोग वहाँ बैठे है (पहलवान) जंतर मंतर पर। इतने शिक्षित होते हुए भी कोई भी प्रशासनिक अधिकारी वहाँ बातचीत के लिए नहीं जा रहे। बस पुलिस की घेराबंदी लगा दी गई है। पुलिस से, आर्मी से शांति आएगी ऐसा सोचने के बदले ये सोंचे कि बातचीत से शांति आएगी। क्यूंकी दारू की दुकान बंद करने के लिए आंदोलन करने वालों को पुलिस की क्या जरूरत उन्हे तो बातचीत की जरूरत है। पीने का पानी के लिए आंदोलन करने वालों के लिए पुलिस की क्या जरूरत उन्हे तो चापाकल की जरूरत है। छोटे छोटे बात के किए भी पुलिस के भरोसे पर जीना और ए सी कमरों मे बैठकर शासन चलाना। इस पद्धति से जब तक देश मुक्त नही होगा तब तक अहिंसात्मक समाज की रचना मुमकिन नहीं। लोगों को संगठित होकर अहिंसात्मक आंदोलन करना चाहिए। जो शिक्षा पद्धति सिर्फ कॉम्पटिशन और नौकरी पर टिका हुआ है उसको अहिंसात्मक कैसे बनाना है और गवर्नेन्स को, सरकार चलाने के तरीके को कैसे अहिंसात्मक बनाना है इस विषय पर काम करने की जरूरत है। है। आज दुनिया को थोक मे अहिंसा की जरूरत है। दुनिया के कई देश जल रहे है,यूक्रेन जल रहा है। फिलिस्तीन मे मुहल्ले के  मुहल्ले जल रहे है। हिंसा से सब जगह लोग परेशान है तो ऐसी स्थिति मे दुनिया भारत की और देखती है।  मैं उम्मीद करता हूँ की हमसब लोग मिलकर सोचे कि भारत का विशेष योगदान दुनिया के लिए क्या हो सकता है। उसको करने के लिए हम सब तैयार हो जाएँ तो आज की स्थिति मे एक अहिंसक दुनिया की रचना मे हमारी मदद होगी और शायद इस प्लानेट को बचाने मे भी हमारी मदद होगी। जय जगत ।

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