राजस्थान निवासी माधव नागदा हिंदी के सुपरिचित कहानीकार हैं और बहुत पहले यानी सत्तर के दशक में सेठ मथुरादास बिनानी राजकीय कॉलेज, नाथद्वारा में मेरे विद्यार्थी रहे हैं। पिछले दिनों उनको कहीं से मेरा नंबर मिला और बातचीत हुई। नाथद्वारा की बातें, सहपाठियों के हालचाल, गुरुजनों की बातें---कुल मिलाकर सत्तर के दशक की सारी बातें मेरी आँखों के सामने तिरने लगीं। अच्छा लगा उन से वार्तालाप कर के। लगभग 50 वर्षों के बाद शिष्य अपने गुरु को याद रखे, यह बहुत बड़ी बात है। मैंने भी उन्हें दिल की गहराइयों से आशीर्वाद दिया। बातों ही बातों में उन्होंने यह समाचार भी दिया कि नाथद्वारा कॉलेज में पढ़े छात्रों ने एक एसोसिएशन बनाई है और साल में तीन-चार बार मिलते भी हैं। कुछ समय पूर्व ये सारे उत्साही पूर्व-विद्यार्थी/महानुभाव कॉलेज परिसर में मिले भी थे। सुना है मेरी चर्चा भी इन मेधावी विद्यार्थियों ने की। जितने ये गौरवान्वित हैं, उतना मैं भी हूँ। इस अवसर पर लिए कुछ चित्र नागदा जी और एक अन्य विद्यार्थी ने मुझे भी भेजे हैं। “प्रतिबिम्ब” नाम से पिछले दिनों इन पूर्व-विद्यार्थियों ने एक स्मारिका निकाली है जिसके सम्पादक नागदाजी हैं। कई प्रतिष्ठित महानुभावों के इस में सन्देश हैं,रचनाएं हैं और सूचनाएं-समाचार हैं।मेरा एक संस्मरण "यादों के गलियारे में चहलकदमी" भी इस स्मारिका में छपा है। कुल मिलाकर ‘स्मारिका’ प्रभु श्रीनाथजी की पावन नगरी में स्थित इस उच्च शिक्षण संस्था की गौरवशाली परम्परा का बखूबी रूपायन करती है।कहना न होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत कम संस्थाएं इस तरह का सुंदर अकादमिक-कार्य अपने हाथ में लेती हैं। इसे मैं प्रभु श्रीनाथजी की नगरी का पुण्य-प्रताप ही मानता हूँ कि नाथद्वारा के पूर्व-विद्यार्थियों ने ऐसा कर दिखाया। “प्रतिबिम्ब” स्मारिका से जुड़े सभी गुणी,धर्मप्रिय और विद्या-व्यसनी सज्ज्नों को मेरा अभिवादन।
—डॉ० शिबन कृष्ण रैणा—
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