कलुआही/मधुबनी, पूरी के पीठाधीश्वर मज्जद गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती मंगलवार की शाम कलुआही प्रखंड के हरिपुर बक्शी टोल गांव स्थित एनएच के किनारे एक धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मानव जीवन के लिए वेदों का अध्ययन जरूरी है। उन्होंने कहा कि सभी मनुष्य का मन ईश्वर रूपी परमात्मा का स्वरूप है, ईश्वर की असीम कृपा से मानव जीवन मिला है, मानव जीवन को सार्थक बनाने के लिए वेदों का अध्ययन जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज तक ऐसा कोई भौतिकवादी नहीं हुआ है जिसको सभी सम्यक विषयों का ज्ञान हो उन्होंने कहा कि भूत वर्तमान भविष्य तीनों कालों में इंद्रियों की गति निहित नहीं रहती है लेकिन मन की गति भूत वर्तमान भविष्य तीनों कालों में सन्निहित रहती है। इसीलिए मन को नियंत्रित करने के लिए वेदों का अध्ययन जरूरी है। उन्होंने कहा कि सितोपनिषद का मैथिली और हिंदी में अनुवाद जरूरी है। शंकराचार्य ने कहा कि सभी हिंदुओं को दिन में 5 बार भगवान का नाम लेना चाहिए 15- 15 मिनट 5 बार भगवान का नाम लेने से भगवान की असीम कृपा बनी रहती है, ऐसा करने से अध्यात्म की उन्नति होगी और सनातन धर्म मजबूत होगा। उन्होंने कहा कि पूरे विश्व में मिथिलांचल राज्य सम्पन्न रहा है। यहां 22 पीढ़ी तक राजाओं ने शासन किया। सनातन धर्म को बरकरार रखने से ही हिंदू राष्ट्र निर्माण का निर्माण होगा। सनातन धर्म को बरकरार रखने के लिए युवाओं को सनातन धर्म के प्रति लोगों को जागरूक करने की अपील किये। धर्मसभा में बेनीपट्टी विधानसभा के विधायक विनोद नारायण झा, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति, आनंदम ग्रुप के प्रबंधक आलोक प्रकाश, निभा प्रकाश, ट्रस्टी चंदन कुमार झा,नथुनी साह कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी सुजीत कुमार झा सहित हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता ट्रस्ट के संस्थापक सचिव इंदिरा झा ने किया।
अपने जीवन लीला के गीत सुनकर भावुक हो गए शंकराचार्य
पूरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती मंगलवार को 7:30 बजे हरिपुर बक्सी टोल स्थित एनएच के किनारे धर्म सभा को संबोधित करते हुए करने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में एवं जयघोष के साथ मंच पर पहुंचे, मंच पर पहुंचने के बाद उन्हें भव्य स्वागत किया गया उनके स्वागत में उनके जीवन लीला का गीत ललना रे गीता के कोखि सँ जनम लेल बालक घूरन रे, ललना रे धन्य भेल जगत और हरिपुर बक्सी टोल रे। ललना रे गृह त्याग गुरु के सुमारी रे। ललना रे गृह त्याग घूरन सं नीलांबर, नीलांबर सँ निश्चलानंद सरस्वती रे। ललना रे जगतगुरु शंकराचार्य बनि कैलनि जगत कल्याण रे।आई धन्य भेल हरिपुर बक्सी टोल रे। अपने जीवन लीला की यह गीत सुनकर मंच पर शंकराचार्य भावुक हो गए और बचपन से लेकर अभी तक की अपनी जीवन लीला गीत के माध्यम से सुनकर रोने लगे तो उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि मुझे मिथिलांचल और मातृभूमि से बहुत प्रेम है ये गीत सुनकर मैं अपने आप को रोक नहीं पाया। उन्होंने कहा की मुझे मातृभूमि एवं मिथिलांचल से बहुत प्रेम होने के कारण ही मुझे गृह त्याग करना पड़ा।
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