जंगल में लगने वाली आग से परेशान गांव की एक किशोरी पूजा का कहना है कि 'जंगल में आग लगने से जो धुआं निकलता है उससे पूरा वातावरण दूषित होता जा रहा है. हमें सांस लेने में दिक्कत होने लगी है. आग की वजह से पूरे गांव में कोहरे की चादर छाने लगी है. लोगों में नई नई बीमारियां पैदा हो रही हैं. जंगल के पेड़ पौधों में लगी आग करोना महामारी की तरह फैलती जा रही है.' गांव की एक अन्य किशोरी नेहा बताती है कि 'धुएं के कारण पूरा जंगल तबाह हो रहा है. कभी कभी लगता है जंगल पूरी राख में ही तब्दील न हो जाए.' नेहा के अनुसार 'धुएं की वजह से न केवल इंसान परेशान है बल्कि जानवरों में भी एक एक कर कई बीमारियों ने डेरा डाल लिया है. उस बिमारी का नाम भी हमें पता नहीं है जो बैलों में फैल रही है. यह बीमारी आग लगने पर गर्मी ज्यादा होने के कारण होती है. गांव की एक 47 वर्षीय महिला शांति देवी का कहना है कि धुएं की वजह से जानवरों को छोटे छोटे दाने होते हैं और फिर वह दाने फूट जाते हैं. जिसके बाद उनमें से खून निकलने लगता है. आज कल धान बोने का समय है और जानवर बीमार हो रहे हैं. ऐसे में खेती को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. इसके अलावा खाना पकाने के लिए लकड़ियों की भी कमी हो रही है. पहले जंगलों में महिलाओं का झुंड जाया करता था जहां आसानी से चारा, फूल फल और लकड़ी इत्यादि आसानी से प्राप्त हो जाया करती थी. लेकिन इस साल जंगल में आग लगने से सब राख बन गया है. एक अन्य महिला नेहा देवी कहती हैं कि 'पिछले वर्ष तक हमें अपने पालतू जानवरों के लिए जंगल से चारा आसानी से मिल जाया करता था. परंतु अब हरी हरी घास की जगह केवल जली हुई काली काली धरती नजर आती है.' वह कहती हैं कि 'लोगों को सब पता है कि जंगल में आग लगाने से क्या क्या नुकसान हो सकते हैं? मगर अब किसी को अपनी प्रकृति से लगाव ही नहीं रहा है. जिस जंगल के कारण हम जिंदा हैं, आज लोग उसी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं. अगर हमारा वातावरण स्वच्छ और प्रकृति चारो तरफ से साफ रहेगी, तभी हम स्वच्छ और कम बीमारियों की शिकार होंगे.
वहीं गांव की 65 वर्षीय बुजुर्ग खखौती देवी बताती हैं कि "दरअसल जंगल में आग वही लोग लगाते हैं जिनके घर में बहुत ज्यादा गाय, भैंस और बकरी है. इनकी सोच है कि जंगल जलने के बाद नई घास आएगी जिससे मवेशियों को अधिक मात्रा में चारा उपलब्ध हो सकेगा." उनका यह भी कहना है कि कई बार आग लगने के पीछे मुख्य कारण महिलाओं का धूम्रपान करना भी होता है. वह चारा या लकड़ी लेने जंगल जाती हैं और फिर वहीं पर धूम्रपान करना शुरू कर देती हैं. फिर वहीं पर जलती हुई माचिस की तीली या बीड़ी फेंक देती हैं. जिससे जंगलों में आग लग जाती है. इस संबंध में गांव की प्रधान पुष्पा देवी का कहना है कि "पोथिंग, कपकोट ब्लॉक का सबसे बड़ा गांव है. यहां सभी जाति के लोग रहते हैं और यहां के जंगल से हर प्रकार से लाभ उठाते हैं. लेकिन उसी जंगल और उसके नियमों का पालन नहीं करते हैं. जिसकी वजह से न केवल जंगल सिकुड़ रहा है बल्कि आग लगने की घटना के कारण लोगों की तबीयत भी खराब हो रही है. आग की वजह से गांव में वायु प्रदूषण भी तेज़ी से फ़ैल रहा है. शहरों की तरह यहां भी प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है. जो न केवल प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है बल्कि इससे मनुष्यों के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है. जागरूकता के अभाव में लोग अनजाने में अपने हाथों से जंगल को बर्बाद कर रहे हैं. वह इसके दुष्परिणाम से वाकिफ नहीं हैं."
डॉली गढ़िया
कपकोट, उत्तराखंड
(चरखा फीचर)
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