विशेष : खतरे में है पहाड़ का पर्यावरण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 20 जून 2023

विशेष : खतरे में है पहाड़ का पर्यावरण

Climate-on-hill
समय पूर्व तैयारियों ने हमें चक्रवाती तूफ़ान 'बिपरजॉय' से होने वाले नुकसान से तो बचा लिया लेकिन यह अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है. सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या हमारा पर्यावरण असंतुलित हो रहा है? भयंकर गर्मी, बेमौसम बारिश, चक्रवात, सूखा, ओलावृष्टि और जंगलों में लगने वाली आग जैसी घटनाएं कुछ इसी तरफ इशारा भी कर रही हैं. कम से कम उत्तराखंड के घने जंगलों से ढंके पहाड़ों में लगी आग तो यही संदेश दे रहे हैं कि इस प्रकार की घटनाएं पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही हैं. लेकिन सवाल उठता है कि क्या इसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं? क्योंकि उत्तराखंड के जंगलों में लगने वाली ज्यादातर आग मानव निर्मित होती हैं, जो अक्सर लोग अवैध रूप से लगाते हैं. इसे सीजन में घास के बेहतर विकास को बढ़ावा देने के लिए लगाई जाती है. इनके अलावा जंगल में आग लगाने के लिए कई बार लोगों की लापरवाही भी जिम्मेदार होती है जैसे धूम्रपान करके जलता हुई सिगरेट अथवा बीड़ी को इधर उधर फेंक देना, जिससे सूखी घास में तेज़ी से आग पकड़ लेती है और देखते ही देखते पूरा जंगल तबाह हो जाता है. इस आग से ग्रामीणों को काफी आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है, क्योंकि जंगल से ही लोग ईंधन, इमारती लकड़ी, भोजन और फल उत्पाद प्राप्त करते हैं. इसका एक उदाहरण उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट ब्लॉक से 25 किलोमीटर की दूरी पर बसा पोथिंग गांव है. जो पहाड़ों की घाटियों में बसा हुआ है. यहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है. इसे पहाड़ों की हरियाली और शुद्ध हवाओं के लिए ही जाना जाता है. इस गांव की आबादी लगभग 2 हजार से ज्यादा है. लेकिन कुदरती संसाधनों से भरपूर इस गांव को खुद इंसानों की नज़र लग गई है. लगातार जंगलों में आग लगने से लोगों को तो परेशानी हो ही रही है, जानवर भी बीमारियों का शिकार होते जा रहे है. जंगलों से उठने वाला धुआं लोगों के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो रहा है. एक ओर जहां इससे लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं वहीं धुंए से वातावरण भी खराब होता जा रहा है. इसके कारण धीरे धीरे यह गांव धुंए का चिमनी बनता जा रहा है.


जंगल में लगने वाली आग से परेशान गांव की एक किशोरी पूजा का कहना है कि 'जंगल में आग लगने से जो धुआं निकलता है उससे पूरा वातावरण दूषित होता जा रहा है. हमें सांस लेने में दिक्कत होने लगी है. आग की वजह से पूरे गांव में कोहरे की चादर छाने लगी है. लोगों में नई नई बीमारियां पैदा हो रही हैं. जंगल के पेड़ पौधों में लगी आग करोना महामारी की तरह फैलती जा रही है.' गांव की एक अन्य किशोरी नेहा बताती है कि 'धुएं के कारण पूरा जंगल तबाह हो रहा है. कभी कभी लगता है जंगल पूरी राख में ही तब्दील न हो जाए.' नेहा के अनुसार 'धुएं की वजह से न केवल इंसान परेशान है बल्कि जानवरों में भी एक एक कर कई बीमारियों ने डेरा डाल लिया है. उस बिमारी का नाम भी हमें पता नहीं है जो बैलों में फैल रही है. यह बीमारी आग लगने पर गर्मी ज्यादा होने के कारण होती है. गांव की एक 47 वर्षीय महिला शांति देवी का कहना है कि धुएं की वजह से जानवरों को छोटे छोटे दाने होते हैं और फिर वह दाने फूट जाते हैं. जिसके बाद उनमें से खून निकलने लगता है. आज कल धान बोने का समय है और जानवर बीमार हो रहे हैं. ऐसे में खेती को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. इसके अलावा खाना पकाने के लिए लकड़ियों की भी कमी हो रही है. पहले जंगलों में महिलाओं का झुंड जाया करता था जहां आसानी से चारा, फूल फल और लकड़ी इत्यादि आसानी से प्राप्त हो जाया करती थी. लेकिन इस साल जंगल में आग लगने से सब राख बन गया है. एक अन्य महिला नेहा देवी कहती हैं कि 'पिछले वर्ष तक हमें अपने पालतू जानवरों के लिए जंगल से चारा आसानी से मिल जाया करता था. परंतु अब हरी हरी घास की जगह केवल जली हुई काली काली धरती नजर आती है.' वह कहती हैं कि 'लोगों को सब पता है कि जंगल में आग लगाने से क्या क्या नुकसान हो सकते हैं? मगर अब किसी को अपनी प्रकृति से लगाव ही नहीं रहा है. जिस जंगल के कारण हम जिंदा हैं, आज लोग उसी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं. अगर हमारा वातावरण स्वच्छ और प्रकृति चारो तरफ से साफ रहेगी, तभी हम स्वच्छ और कम बीमारियों की शिकार होंगे.


वहीं गांव की 65 वर्षीय बुजुर्ग खखौती देवी बताती हैं कि "दरअसल जंगल में आग वही लोग लगाते हैं जिनके घर में बहुत ज्यादा गाय, भैंस और बकरी है. इनकी सोच है कि जंगल जलने के बाद नई घास आएगी जिससे मवेशियों को अधिक मात्रा में चारा उपलब्ध हो सकेगा." उनका यह भी कहना है कि कई बार आग लगने के पीछे मुख्य कारण महिलाओं का धूम्रपान करना भी होता है. वह चारा या लकड़ी लेने जंगल जाती हैं और फिर वहीं पर धूम्रपान करना शुरू कर देती हैं. फिर वहीं पर जलती हुई माचिस की तीली या बीड़ी फेंक देती हैं. जिससे जंगलों में आग लग जाती है. इस संबंध में गांव की प्रधान पुष्पा देवी का कहना है कि "पोथिंग, कपकोट ब्लॉक का सबसे बड़ा गांव है. यहां सभी जाति के लोग रहते हैं और यहां के जंगल से हर प्रकार से लाभ उठाते हैं. लेकिन उसी जंगल और उसके नियमों का पालन नहीं करते हैं. जिसकी वजह से न केवल जंगल सिकुड़ रहा है बल्कि आग लगने की घटना के कारण लोगों की तबीयत भी खराब हो रही है. आग की वजह से गांव में वायु प्रदूषण भी तेज़ी से फ़ैल रहा है. शहरों की तरह यहां भी प्रदूषण का स्तर बढ़ने लगा है. जो न केवल प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है बल्कि इससे मनुष्यों के जीवन पर भी खतरा मंडराने लगा है. जागरूकता के अभाव में लोग अनजाने में अपने हाथों से जंगल को बर्बाद कर रहे हैं. वह इसके दुष्परिणाम से वाकिफ नहीं हैं." 





Dolly-gariya-charkha-features

डॉली गढ़िया

कपकोट, उत्तराखंड

(चरखा फीचर)

कोई टिप्पणी नहीं: