विशेष : जेलों पर बढ़ता कैदियों का भारएवं उनकी सुरक्षा में लापरवाही! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 8 जून 2023

विशेष : जेलों पर बढ़ता कैदियों का भारएवं उनकी सुरक्षा में लापरवाही!

अभी हाल ही में आपने पढ़ा होगा कि देश की सबसे सुरक्षित कही जाने वाली तिहाड़ जेल में बहुत ही कम अंतराल में दो कैदियों को उनके विरोधी कैदियों ने पीट-पीटकर मार डाला। यह घटना सिर्फ दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही नहीं हो रही, देश की लगभग सभी जेलों में होती है। और अब यह आम बात होने लगी है, जो अपने आपमें बड़ी चिन्ता का विषय है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के मेरठ मंडल की जेलों के ताजा आंकड़े जरा देखें। मेरठ जेल की क्षमता 1707, निरुद्ध बंदी 3357; गाजियाबाद की क्षमता 1704 व बंदी 3631; बुलंदशहर में बंद हैं तेईस सौ, जबकि क्षमता है 840। भारत की जेलों में बंद लोगों के बारे में सरकार के रिकार्ड में दर्ज आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। अनुमान है कि इस समय कोई चार लाख से ज्यादा लोग देश भर की जेलों में बंद हैं जिनमें से लगभग एक लाख तीस हजार सजायाफ्ता और कोई दो लाख अस्सी हजार विचाराधीन बंदी हैं। देश में दलितों, आदिवासियों व मुसलमानों की कुल आबादी चालीस फीसद के आसपास है, वहीं जेल में उनकी संख्या दो तिहाई यानी सड़सठ प्रतिशत है। इस तरह के बंदियों की संख्या तमिलनाडु और गुजरात में सबसे ज्यादा है। दलित आबादी सत्रह फीसद है जबकि जेल में बंद लोगों का बाईस फीसद दलितों का है। आदिवासी लगातार सिमटते जा रहे हैं व ताजा जनगणना उनकी जनभागीदारी नौ प्रतिशत बताती है, लेकिन जेल में नारकीय जीवन जी रहे लोगों का ग्यारह फीसद वनपुत्रों का है। मुसलिम आबादी चौदह प्रतिशत है लेकिन जेल में उनकी मौजूदगी बीस प्रतिशत से ज्यादा है। उधर, जेलों में कैदियों में आपसी कहासुनी या रंजिश के चलते मारपीट तो पहले से आम बात है, जो हमने कई बार फिल्मों में भी देखी है। ये घटनाएँ फिल्मों से जेलों में गईं या जेलों से फिल्मों में आईं यह अनुसंधान का विषय है।


फिलहाल यह हमारी कानून व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़ा करती हैं। कई बार तो आपने सुना होगा कि कई लोग योजना बनाकर जेल से बाकायदा भागने में भी सफल हो जाते हैं। आपने यह भी सुना एवं पढ़ा होगा कि कई बार कैदी पुलिस सुरक्षा में न्यायालय परिसर में उनके दुश्मनों द्वारा मार दिये जाते हैं और पुलिस कुछ भी नहीं कर पाती है। अतीक अहमद और जीवा का मामला ज्वलन्त उदाहरण हैं। यानी कि हिरासत में जो कैदी है, उसे पुलिस नहीं बचा पाती है। ये सभी वारदातें हमारी कानून व्यवस्था एवं सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े करती हैं। साथ ही हमारी इन संस्थाओं की विश्वसनीयता पर गहरी आशंका पैदा करती है। यदि ऐसा ही होता रहा तो वकीलों और पत्रकारों का पेशा तो बदनाम होगा ही, गैंगवार के खतरे भी बढ़ जाएंगे। अगर ऐसा हुआ तो पुलिस के लिए कैदियों की सुरक्षा करना बड़ी चुनौती बन जाएगा। ऐसा लगता है पुलिस एवं कानून व्यवस्था सिर्फ शरीफ लोगों को परेशान करने एवं उन्हें भयभीत करने के लिये ही कार्य कर रही है। हमारी न्याय व्यवस्था सिर्फ गैरकानूनी काम करने वाले लोगों को ही सजा दिलाने या यातना देने का काम कर रही है। इस व्यवस्था में गम्भीर अपराधी तो सुरक्षित हैं, इन्हें  इनके दुश्मन मार दें तो मार दें वर्ना वे तो जेल में सुरक्षित हैं। यह भी जानकारी मिलती रहती है कि ऐसे गम्भीर अपराधियों को यानी हत्यारों, बलात्कारियों आदि को जेल में सभी सुविधाएँ उपलब्ध हो जाती हैं। परेशान सिर्फ शरीफ आदमी ही रहते हैं। जिसमें कोई गलती से गैरकानूनी काम हो गया या कोई सरकारी नियम की अवहेलना हो गई। मसलन कोई आर्थिक अनियमितता या कोई कर को कम देना या न देना या कोई रिश्वत लेना या दहेज में गलत या सही पकड़े जाना या महिलाओं एवं अनुसूचित, दलित या जनजाति के लोगों द्वारा दुर्व्यवहार की शिकायत पर पकड़े गये लोग ये ही यातना झेलते हैं एवं जेल में सजा भुगतते हैं। बाकी लोग तो जेल में मस्ती करते हैं। एक तबका और है जो जेल में भी अपना व्यापार पूरी मुस्तैदी से चलाता है। वह है नशे का व्यापारी, प्रॉपर्टी डीलर एवं टोल माफिया। ये अपने पैसों के बलबूते सभी को भ्रष्ट कर अपना व्यवसाय जेल से ही चलाते हैं। इन सभी विडम्बनाओं एवं विसंगतियों पर यदि गहराई से विचार किया जाए तो पाएंगे कि जेल प्रशासन एवं पुलिस सुरक्षा व्यवस्था की कमियाँ कई कारण से हैं।


पहला कारण है पुलिस एवं जेल प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार, दूसरा कारण है पर्याप्त संसाधनों की कमी, तीसरा सबसे बड़ा कारण है जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों का होना। हमारी न्याय पालिका एवं विधायिका 75 वर्षों में भी अपराध एवं गैरकानूनी कार्यों में अन्तर नहीं कर पाई है। जिसका किया जाना नितान्त आवश्यक है। दूसरा न्याय पालिका बेवजह विचाराधीन कैदियों को जेल में रखे रहती है जबकि इन पर अभी मुकदमे की शुरुआत ही नहीं हो पायी। एफ.आई.आर. होने पर गिरफ्तार किया गया। इसे आरोप पत्र आने पर जमानत होनी ही चाहिये। जब तक वह इन्सान कानून द्वारा दोषी नहीं ठहराया जाता तब तक उसे कैसे आप जेल में रख सकते हैं। दूसरा किसी खतरनाक अपराधी के साथ गैरकानूनी काम करने वाले लोगों को एक साथ एक ही बैरक में कैसे रख सकते हो। ऐसे शरीफ लोगों का बैरक में कितना उत्पीड़न होता है, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। एक तर्क यह भी दिया जाता है कि कुछ दुर्दांत अपराधी यदि बाहर रहेंगे तो समाज में हिंसा फैलाएंगे तो इन्हें जेल में ही रखा जाना चाहिये, तो समाजहित में ऐसे लोगों के लिये अलग व्यवस्था की जानी चाहिये पर ऐसे अपराधियों को किसी भी सूरत में गैरकानूनी काम करने वाले लोगों के साथ नहीं रखना चाहिये। इस व्यवस्था पर विधायिका, न्याय पालिका एवं कार्य पालिका को अविलम्ब ध्यान देना चाहिये, वर्ना समाज में लोग न्याय फिर सड़कों पर ही करने लगेंगे।




Ashok-kumar-gadiya

-डॉ. अशोक कुमार गदिया

(लेखक मेवाड़ विश्वविद्यालय के चेयरमैन हैं।)

कोई टिप्पणी नहीं: