सभी लोगों को आत्मीय रूप से आभार व्यक्त - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

मंगलवार, 13 जून 2023

सभी लोगों को आत्मीय रूप से आभार व्यक्त

pv-rajgopal
नई दिल्ली. प्रख्यात गांधीवादी पी.व्ही.राजगोपाल को इंटरनेशनल हाउस, टोक्यो, जापान में आयोजित समारोह में 40वां निवानो शांति पुरस्कार मिला.इस अवसर पर निवानो शांति पुरस्कार समारोह में सम्मानित पी.व्ही.राजगोपाल ने अपने सम्मान भाषण में कहा कि सर्वप्रथम माननीय अतिथियों और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ अन्य देशों के मित्रों और इस 40वें वार्षिक निवानो शांति पुरस्कार समारोह में भाग लेने वाले सभी लोगों को आत्मीय रूप से आभार व्यक्त करता हूं। उन्होंने कहा कि आप लोगों ने मेरे काम को सराहने और उसे मान्यता देकर मुझे इस पुरस्कार के लिए चयन किया है.इसके लिए निवानो फाउंडेशन को धन्यवाद देता हूं. मैं इसके अध्यक्ष, बोर्ड के सभी सदस्यों और ज्यूरी को धन्यवाद देना चाहता हूं, जिन्होंने मुझे यह सम्मान दिया है. मैं इस बात से अवगत हूं कि समारोह में आए अतिथियों में कुछ वे साथी भी हैं, जिन्हें यह पुरस्कार पहले ही मिल चुका है.पुरस्कार प्राप्त उन साथियों की बिरादरी में शामिल होने पर मुझे गर्व महसूस हो रहा है और मैं शांति के पथ पर ऐसे दिग्गजों के साथ चलने के लिए तैयार हूं. आगे कहा कि अब आपके सामने उन अनुभवों को रखना चाहता हूं, जिन्होंने अहिंसा और शांति के प्रति मेरे विचारों को ज्यादा ठोस बनाया.मैंने अपनी शांति यात्रा की शुरुआत एक भयानक संघर्ष वाले क्षेत्र से की.भारत की राजधानी दिल्ली से लगभग 300 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में चंबल घाटी है. वहां सर्वोदय के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के साथ काम करने के दरम्यान मेरा सामना डकैतों की हिंसा से हुआ. उन्हें वहां विद्रोही कहा जाता है.आज उनके समूह को एक आतंकवादी समूह करार दिया जाता.मैं कुछ समय तक उनके बीच रहा और काम किया. काम के दरम्यान उन्हें हथियार छोड़ने के लिए राजी किया.  उन्होंने अहिंसा के विचारों से प्रभावित होकर आत्मसमर्पण किया और जेल की सजा काटकर समाज की मुख्यधारा में वापस आ गए. हमने पिछले साल उनके आत्मसमर्पण की 50वीं वर्षगांठ मनाई थी और हमने देखा कि कैसे सबसे कठोर हिंसक व्यक्ति भी शांति के उपासक बन सकते हैं.578 डकैतों में से अधिकांश के लिए हिंसा के मार्ग को छोड़कर शांति के मार्ग को अपनाने का यह परिवर्तन अहिंसा के प्रति लगाव से ही संभव था.

कोई टिप्पणी नहीं: