काम की बात करनी नहीं।
मोबाइल में लग जाती हो।
युवा कवि कुछ व्यथित भी लगता है, तभी तो विरह की आवाज कुछ ज्यादा ही मुखरित प्रतीत होती है:-
कुछ ज्यादा ही पास होती हो तुम मेरे,
जो तुम आवाज सुन नहीं पाती हो।
कवि मध्यम वर्गीय जीवन की छटपटाहट को इस प्रकार वयां करता है :-
गुमशुदा जिंदगी यूं ही गुम रहती है
कभी अपनों के पीछे तो कभी कर्तव्यों के पीछे।
वर्तमान दौर में परदे के पीछे से चली जानेवाली कुटिल चालों से रुबरू होकर इस प्रकार से कटाक्ष भी करते हुए कवि लिखता है :-
विचार लिखे नहीं लिखवाए जाते हैं।
मैं नहीं तो कोई और सही।
जीवन की भटकन को कवि कुछ इस प्रकार वयां करता है:-
इतना भी मुश्किल न था अंधेरों से हाथ मिलाना।
हम बेवजह नूर तलाशते रहे।
कवि अपने असफल प्रयासों को बिना लाग-लपेट के स्वीकार करते हुए लिखता है :-
मैं ही हूं
कभी जिंदगी के हाथों की,
कभी अपनों के जज्बातों की,
कठपुतली, मैं ही हूं।
आज की भागमभाग जीवन में वर्चुअल संसार से इतर वास्तविक सकून किसी स्थूल वस्तु में पाने की चाह हो तो आप सही जगह पर है.... 'रंगीन जिंदगी के ब्लैक एंड वाइट रंग' अपने उदात्त हाथों से आपको अपने आगोश में लेने को आतुर है... अभिजीत सिंह यादव 'सिकंदर ' को साधुवाद....उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं....
समीक्षक
कैप्टन सन्तोष चंद
प्रवक्ता राजनीति विज्ञान
सी.सी.एस. खटीमा.
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