बातचीत के दौरान सुधा रंजनी के प्रश्न– "कबीर की नारी निंदा से अलग कबीर के जीवन में स्त्री की उपस्थिति है क्या?" को लोगों ने बहुत सराहा। इसके जवाब में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कबीर की पुत्री का प्रसिद्ध दोहे उद्धरित किए और उस किंवदंति के बारे में बताया जिसमें दो स्त्रियां उन्हें लुभाने आती हैं और वे उनमें एक को मां और दूसरी को मौसी बनकर साथ चलने का आग्रह करते हैं। ग्रंथावली की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए शुभा मुद्गल ने कहा कि "पुरुषोत्तम अग्रवाल जी के व्याख्यान, लेख, पुस्तक आदि किसी खजाने से कम नहीं है। इसी खजाने में 'कबीर ग्रंथावली' का नवीन व परिमार्जित संस्करण जोड़ कर पुरुषोत्तम अग्रवाल जी हम जैसे विद्यार्थियों को उदारता पूर्वक अवसर दे रहे हैं कि लो, कबीर के शब्दों को ठीक से पढ़ो और सुरों में ढालो। कबीर गायन में बहुत समय से मेरी रुचि रही है और गायन व साहित्य, दोनों ही के अध्ययन में इस ग्रंथावली से मुझे अपूर्व लाभ मिलेगा।" लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल हुईं राज्यसभा सांसद महुआ माजी ने कहा, "कबीर को लेकर हमेशा विमर्श चलता रहता है और वे अब भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उन पर अनेक शोध हुए हैं या हो रहे हैं। आजकल युवाओं में भी कबीर को लेकर रुचि देखी जा रही है। ऐसे में कबीर को जानने, समझने और पढ़ने के लिए यह ग्रंथावली बेहद उपयोगी साबित होगी।" गौरतलब है कि श्यामसुंदरदास द्वारा सम्पादित 'कबीर ग्रंथावली' पहली बार सन 1928 ई. में प्रकाशित हुई थी। यह संकलन श्यामसुंदरदास ने कबीर की रचनाओं की सदियों पुरानी हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर तैयार किया था। कबीर-पंथियों में जो स्थान ‘बीजक’ का है, अकादमिक हलक़ों में वही स्थान श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित ‘कबीर ग्रंथावली’ का है। तमाम विवादों और असहमतियों के बावजूद आज भी कबीर की रचनाओं के प्रामाणिक पाठ के लिए अध्येता ‘ग्रंथावली’ का ही सहारा लेते हैं। प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने इस ग्रंथावली को संशोधित और परिमार्जित करके इसे और प्रामाणिक और उपयोगी बना दिया है।
नई दिल्ली. 05 जून 2023, सोमवार। कबीर जयंती के अवसर पर रविवार (04 जून) को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में 'कबीर ग्रंथावली' के परिमार्जित पाठ का लोकार्पण हुआ। करीब एक सदी पूर्व श्यामसुंदरदास द्वारा संपादित की गई 'कबीर ग्रंथावली' का पाठ परिमार्जन प्रतिष्ठित आलोचक और भक्ति-साहित्य के विशेषज्ञ प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल ने किया है। 'ग्रंथावली' का यह परिमार्जित और संशोधित रूप राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। लोकार्पण कार्यक्रम की शुरुआत में विख्यात गायिका शुभा मुद्गल ने कबीर के पदों 'अलह राम जीऊँ तेरे नाँइ', 'दुलहनी गावहु मंगलाचार' और 'साधो, देखो जग बौराना' आदि का गायन किया। इसके बाद हिंदी के विद्वान और कवि अशोक वाजपेयी ने वक्तव्य दिया। फिर अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास (ऑस्टिन) में एशियाई अध्ययन विभाग के प्राध्यापक दलपत सिंह राजपुरोहित एवं एम.एम.महिला कॉलेज, आरा से हिंदी की विभागाध्यक्ष डॉ. सुधा रंजनी ने प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल से 'ग्रंथावली' पर बातचीत की। इसके बाद राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने लोकार्पण कार्यक्रम में शामिल हुए सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का समापन प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल द्वारा पाठकों की प्रतियों पर हस्ताक्षर करने के साथ हुआ। अपने वक्तव्य में अशोक वाजपेयी ने कहा कि "यह कबीर सजगता का समय है। इतिहास से मुगलों को तो हटा दिया गया, लेकिन कबीर को हटाना सम्भव नहीं है।" आगे उन्होंने कहा, "ग्रंथावली का परिमार्जित संस्करण एक ऐतिहासिक कबीर-घटना है। अब हमें कबीर का अबतक का सबसे प्रामाणिक पाठ उपलब्ध हो गया है। इस ग्रंथावली में कबीर के जीवन और उनके पाठों के इतिहास के बारे में, विद्वानों के मतों-मतान्तरों के बारे में सबसे सटीक और सतथ्य व्याख्या की गई है। एक लंबी शोधपरक और बेहद रोचक भूमिका में पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कबीर के 600 वर्षों की यात्रा की अद्भुत कथा कही है।"
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