विशेष : ओडिशा बालासोर : हादसा, लापरवाही या साजिश? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 4 जून 2023

विशेष : ओडिशा बालासोर : हादसा, लापरवाही या साजिश?

ओडिशा के बालासोर में बहनागा बाजार स्टेशन के पास हुआ हादसा दिल दहला देने वाला है. दो जून की मनहूस शाम दो-चार नहीं पूर 280 से अधिक लोगों को एक झटके में निगल गयी। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि दो ट्रेनें एक ही समय पर एक ही पटरी पर कैसे आ जाती है? दुसरा बड़ा सवाल यह सिर्फ एक हादसा है या रेल अफसरों व कर्मचारियों की लापरवाही है? या फिर कहीं कोई आतंकी बड़ी साजिश तो नहीं? खास बात यह है कि लापरवाही की भी हद होती है। यहां तो कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी की टक्कर तो समझ में आता है, तीन ट्रेनों का एक साथ टक्कर होना घोर लापरवाही नहीं तो और क्या है? बहरहाल, यह तो जांच का विषय है। जहां तक लापरवाही की बात है तो प्रथम दृष्टया मामला मानवीय भूल या तकनीकी खराबी का सामने आ रहा है। और अगर वाकई में यह हादसा मानवीय भूल या तकनीकी खराबी का है तो क्यों न दोषियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा का दर्ज कर कार्रवाई हो?

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फिरहाल, कटे शरीर, चिपकी बोगियां, चीखते-चिल्लाते लोग, 3 ट्रेनों की भीषण टक्कर में हादसे की जो तस्वीरें सामने आई हैं वह भयावह हैं, उन्हीं से यह अंदेशा हो गया है कि मृतकों का आंकड़ा तीन सौ पार कर लेगा. पहले 30, फिर 50, 70, 120, 207, 233 से बढ़कर 280 तक पहुंच गई है. घायलों की संख्या भी 900 से ज्यादा है। ट्रेन के डिब्बों के मलबे में अभी भी कई शव फंसे हुए हैं. बचाव अभियान में सेना भी शामिल हो गई है. ट्रेन के डिब्बों में खाने-पीने की चीजें, पानी की बोतलें, चप्पल-जूते आदि बिखरें हुए है. बता दें, ओडिशा के बालासोर में जिस समय कोरोमंडल एक्सप्रेस हादसे का शिकार हुई, उस समय ट्रेन में लोग नाश्ता कर रहे थे. हादसे के बाद मौके पर चीख-पुकार मच गई. हादसेके समय पैसेंजर्स ने ट्रेन से बाहर निकलने की कोशिश की. हादसे के बाद बोगियों के परखच्चे उड़ गए. विंडो की कांच को तोड़कर लोगों को बाहर निकाला गया. हादसे के बाद ट्रेन के आगे की कई मीटर तक पटरी गायब हो गई. बोगियां एक-दूसरे पर चढ़ गईं. एक अधिकारी के अनुसार, ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर गए और बगल की पटरियों पर जा गिरे. पटरी से उतरे डिब्बे 12841 शालीमार-चेन्नई सेंट्रल कोरोमंडल एक्सप्रेस से टकरा गए और इसके डिब्बे भी पलट गए. अब तक के जांच में बात सामने आ रही है कि सिग्नल की खराबी की वजह से दो ट्रेनें एक ही पटरी पर आ गई और उन में टक्कर हो गई।


भारतीय रेलवे में सुविधाओं की बढ़ोत्तरी लगातार जारी है. ट्रेन की सेफ्टी और यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेल मंत्रालय लगातार नई-नई तकनीक विकास पर काम कर रहा है. लेकिन सुर्घटना पर फिर भी लगाम नहीं है. साल 2016-17 के बाद इतना बड़ा रेल हादसा हुआ है. पिछले करीब 7 सालों से रेल हादसों पर विराम लग गया था, लेकिन इस हादसे ने रेलवे की सुरक्षा कवच स्कीम पर सवाल खड़े कर दिए हैं. शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस (12841) मालगाड़ी से टकरा गई. जिसके बाद ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर गए. जानकारी के मुताबिक एक्सप्रेस का इंजन मालगाड़ी के डिब्बे के ऊपर चढ़ गया. जिसमें करीब 18 डब्बे पटरी से उतर गए. दरअसल चालक ट्रेन को कंट्रोल रूम के निर्देश पर चलाता है और कंट्रोल रूम के निर्देश परियों पर ट्रैफिक को देखकर किया जाता है। देखा जाए तो हर रेलवे कंट्रोल रूम में एक बड़ी सी डिस्प्ले लगी होती है, जिस पर दिख रहा होता है कि कौन सी पटरी पर ट्रेन है और कौन सी पटरी खाली है। हरे और लाल रंग की लाइटों के माध्यम से इसे दिखाया जाता है। जैसा कि अगर किसी पटरी पर कोई ट्रेन है या चल रही है तो वह लाल दिखाएगा और जो पटरी यानी रेलवे ट्रैक खाली है वह हरी लाइट दिखाता है। इसी को देखकर कंट्रोल रूम से लोग लोकोपायलट को निर्देश दिए जाते हैं। लेकिन इस बार जैसा हादसा हुआ उसे देखकर ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि डिस्प्ले पर ट्रेन का सिग्नल सही नहीं दिखाई दिया और इसकी वजह से यह हादसा हुआ।


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मतलब साफ है अगर यह वाकई लापरवाही है तो कर्मचारियों व अफसरों पर हत्या का मुकदमा तो दर्ज होना ही चाहिए। सीपीआई सांसद बिनोय विश्वम ने कहा है कि, ’सरकार का फोकस सिर्फ लग्जरी ट्रेनो पर है. आम लोगों की रेलगाड़ियों और पटरियों की उपेक्षा की जाती है. ओडिशा में मौतें उसी का परिणाम हैं. उन्होंने कहा कि रेल मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए. देखा जांएं तो हत्याएं और मौतें बहुत तरह की होती हैं। कुछ करवाई जाती हैं, कुछ हो जाती हैं और कुछ जानबूझ कर कर ली जाती हैं। इसमें जाने, अनजाने, भगवान की मर्जी इत्यादि इत्यादि जैसे शब्द फटाफट सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन लापरवाही से हुई हत्याओं को या तो दबा दिया जाता है या फिर आंसू बहा, शोक वक्त कर, श्रद्धांजलि देकर भुला दिया जाता है। ओड़िसा में जो हादसा हुआ है और तीन सौ लोगों ने न सिर्फ जान गवाई है, बल्कि 900 से अधिक लोग अस्पतालों में जीवन और मौत से जुझ रहे है। ऐसे में क्या इसे हम एक दुर्घटना मानकर भूल जायेंगे? जी, बिल्कुल नहीं, इस मामले को सरकार को गंभीरता से लेना ही होगा। लेकिन इन सभी में जो मुख्य बात है वह कभी नहीं होगी न सामने आएगी। लीपापोती में धीरे धीरे फाइलों में दफन हो जायेगी। सजा या तो चालक को मिलेगी या स्टेशन अफसर को या ट्रेन के कल पुर्जों को, या बेचारे ईश्वर को, उसे कभी नहीं जो वास्तव में इस हत्या या हादसे या मौत के पीछे होगा? रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में प्रचंड गर्मी भी एक बड़ी समस्या है. उनके मुताबिक जब पारा 40 डिग्री के पार जाता है तो  पटरियों का विस्तार होता है. जबकि रात में मौसम ठंडा होने से पटरियां सिकुड़ती है. इस विस्तार और संकुचन के कारण रेल की पटरी में दरार आ जाती हैं. यह एक पहला संभावित कारण हो सकता है. जबकि दूसरा बड़ा कारण कवच फेल्योर हो सकता है. भारतीय रेल ट्रैक में उपयोग किया जाने वाला यह एक डिवाइस है, जो एक ट्रेन को निश्चित दूरी पर रुकने में मदद करता है. खासकर जब दूसरी ट्रेन उसी ट्रैक पर आ जाती है तो यह  डिवाइस की मदद से स्वतः ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम लागू हो जाता है और ट्रेन रुक जाती है. शायद यहां ऐसा नहीं हुआ होगा. यह दूसरा बडा कारण हो सकता है. इसके अलावा सिग्नल मे तकनीकी खराबी भी एक वजह हो सकता है. सिग्नल फेल होने से  दोनों ट्रेनें एक ही लाइन पर आ सकती हैं. जैसे ही लोको पायलट दूसरी ट्रेन देखता है. वह इमरजेंसी ब्रेक लगाता है. और हाई स्पीड ट्रेन में होने के कारण दुर्घटना हो जाती है. चौथा बडा कारण फिशप्लेट एक प्लेट है, जो दोनों को जोड़ती है. अगर यह फ्री रहती है या फिश प्लेट का खुला रहता है. तो दुघर्टना का कारण बन सकता है.  पांचवा बड़ा कारण आतंकी साजिश भी हो सकता हैमश. उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ माओवादी प्रभावित क्षेत्र है. अगर कोई फिशप्लेट खोल देता है तो ट्रेन पटरी से उतर जाएगी और दुर्घटना का कारण बनेगी और संपत्ति का नुकसान होगा. ऐसा  गणेश्वरी ट्रेन दुर्घटना में हो चुका है, उसमें 100 लोगों की जानें गई थी...


सिर्फ प्लानिंग बनते है, अमल नहीं

घटना के बाद रेल मंत्री रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने रेल सुरक्षा और नई तकनीकों को अपनाने पर जोर दिया जायेगा. उन्होंने अधिकारियों से 30,000 आरकेएम के लिए ट्रेन की गति को 160 किमी प्रति घंटे तक बढ़ाने पर विचार करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि वे सालाना 1100 करोड़ यात्रियों की जरूरतों को पूरा करने के तरीके और भीड़भाड़ निपटने की तकनीक पर काम कर रहे हैं. जबकि रेल मंत्री ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि भारतीय रेलवे की दुर्घटना रोधी प्रणाली ‘कवच’ को चरणबद्ध तरीके से देश भर में लागू किया जा रहा है. आरडीएसओ यानी रिसर्च डिजाइन एंड स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइजेशन के प्लान के तहत दक्षिण मध्य रेलवे पर 1,455 रूट किलोमीटर पहले ही कवर किए जा चुके हैं. देश भर में इस संगठन की तरफ से तेजी से चल रहा है. दरअसल देश में रेल मार्गों पर दुर्घटनाओं से बचने के लिए रेलवे बोर्ड ने 34,000 किलोमीटर रेल मार्ग के साथ कवच प्रौद्योगिकी को मंजूरी दी थी. इसका लक्ष्य मार्च 2024 तक देश की सबसे व्यस्त ट्रेन लाइनों पर कवच प्रौद्योगिकी स्थापित करना है. कवच की अनूठी विशेषता यह है कि इसका उपयोग करने से ट्रेनें आमने-सामने या पीछे से नहीं टकराती. कवच ऐसी परिस्थितियों में ट्रेन को अपने आप पीछे की ओर ले जाता है.




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सरेश गांधी 

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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