अध्यक्षता भाषा विज्ञान विद प्रो. कृष्ण कुमार शर्मा ने की। मुख्य अतिथि प्रसिद्ध आलोचक डॉ.माधव हाड़ा एवं विशिष्ट अतिथि संगीतकार डॉ.प्रेम भंडारी थे। द्वितीय सत्र में श्रोताओं जगवीर सिंह,तरुण दाधीच, प्रो.माधव हाड़ा, अशोक जैन मंथन, डॉ. मंजू चतुर्वेदी आदि ने विषय से सम्बंधित प्रश्न किये जिनके बड़ी शालीनता और साम्यता के साथ डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने संतुष्टि पूर्ण उत्तर दिए। संस्था की सदस्य आराध्या चौहान ने बताया कि दो सत्र में आयोजित कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ। इस अवसर पर नगर के गणमान्य प्रबुद्धजन डॉ.लक्ष्मीनारायण नंदवाना,श्रीनिवास अय्यर,डॉ. इंद्रप्रकाश श्रीमाली, डा.ज्योतिपुंज, हेमेंद्र एवं प्रमिला चंडालिया,रामदयाल मेहरा, राजेश मेहता,रामदयाल मोदी, श्रेणीदान चारण, विजयलक्ष्मी देथा, संतोष दतिया, लव वर्मा ,सूर्य प्रकाश सुहलका, शुभम जैन,मोहन सेतु, दुर्गेश नंदवाना, सागरमल सर्राफ, खुर्शीद शेख, गोविंद ओड, बिलाल पठान, सुनील टांक, अनिता भाणावत, अमृता एवं पूर्णिमा बोकाडिया, कुसुम माथुर,चेतन औदिच्य,मनमोहन मधुकर, किरण आचार्य,बिलाल पठान,रीना मेनारिया,अशोक आचार्य आदि उपस्थित थे। अकादमी के प्रतिनिधि डॉ.प्रकाश नेभनानी ने सभी का आभार व्यक्त किया। संचालन स्वाति शकुंत ने किया।
उदयपुर। लेखन जीवन से उपजता है। जहां जीवन गौण है वहां लेखन भी कमजोर होगा। हमारी परंपरा के सभी लेखको का साहित्य इसका प्रमाण है। सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल ने राजस्थान साहित्य अकादमी और राज राजेश्वरी फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित सृजन संवाद में कहा कि लेखक जो भी रचता है उसमें आलोचना का महत्वपूर्ण स्थान होता है। डॉ.अग्रवाल ने बताया कि साहित्यकार विभिन्न विधाओं में अभिव्यक्ति भाषा के माध्यम से करता है। उन्होंने रचना प्रक्रिया की बारीकियों पर भी अपने विचार व्यक्त किए। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मलय पानेरी ने संवादकर्ता के रूप में साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर उतरोत्तर श्रेष्ठ संवाद किया।
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