फादर्स डे : शरीर की रक्त धमनियां है पापा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 16 जून 2023

फादर्स डे : शरीर की रक्त धमनियां है पापा

मां तो हर बच्चे के जीवन की एकमात्र धुरी है, उसका दिल अपने बच्चे के लिए धड़कता है लेकिन दिल भी तो बिना रक्त प्रवाह के काम नहीं कर सकता न? तो उसी दिल को रक्त पहुंचाती है पिता रुपी रक्त धमनी। पिता हमारे जीवन का वो महान शख्स है जो सपने पूरे करने की कोशिश और फिक्र में अपने खुद के सपनों की जमीन बंजर ही छोड़ देता है। पिता के होने से ही बच्चों के सभी ख्वाब और ख्वाहिशें पूरी होती हैं। पिता प्यार कभी भी हम खुलकर देख नहीं पाते हैं लेकिन अपने बच्चे के जीवन में आई एक हल्की परेशानी पर न जाने कितनी गहरे सिलवटें उभर आती है। जो आंखे कभी आंसू नहीं बहाती उसका दिल जार-जार रोता है, पिता की नमी उसकी आंखों में नहीं दिल में होती है। बेटी की जिंदगी में पहला हीरो उसके पिता ही होते हैं। जिनकी उंगली पकड़कर वो दुनियावी रस्मो-रिवाज सिखती है। पिता पुत्री का रिश्ता दुनिया का सबसे प्यारा रिश्ता होता है।।

Fathets-day
जब एक पति पिता बनता है तब वह एक आपादमस्तक परिवर्तन से गुजरता है। जीवन के कठोर धरातल पर संतान रुपी फूल खिलते ही पिता का रोल एक माली के जैसा हो जाता है, जो अपने बच्चे की जिंदगी को पालता-पोषता है। एक संरक्षक बनकर उसे दुनिया की भूखी नजरों से बचाता है। जब बेटा बड़ा होता है पिता ही उसके रोल मॉडल होते है। भविष्य में वो खुद को अपने पिता के जैसा ही बनाना चाहता है। साइकालजी आफ फ्रायड के अनुसार बेटी के जीवन में पहला पुरुष उसका पिता होता है और वहीं से उसका अवचेतन मन एक धारणा और काल्पनिक चरित्र बना लेता है, जो हूबहू उसके पिता जैसा ही होता है। यह धारणा व काल्पनिक चरित्र किसी भी स्त्री के जीवन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि पिता के बाद हर रिश्ते में वह यही खोजती है। शादी के बाद वही स्त्री अपने पति में भी अपने पिता को ढूंढ़ती है। फिर पति का व्यक्तित्व जितना अधिक पिता से मिलता है उतना ही अधिक उसका अवचेतन मन संतुष्ट रहता है। मतलब साफ है हम सभी सिर्फ एक दिन ‘फादर्स डे‘ मना कर इस दिन से इतिश्री नहीं कर सकते। माता-पिता ही दुनिया की सबसे गहरी छाया होते हैं, जिनके सहारे जीवन जीने का सौभाग्य हर किसी के बस में नहीं होता। इसलिए हम अपने माता-पिता का आशीर्वाद लेकर सिर्फ एक दिन ही उन्हें याद ना करते हुए प्रतिदिन उन्हें नमन कर अपना जीवन सार्थक बनाएं क्योंकि माता और पिता दोनों की सहायता से ही जीवन की नैय्या चलती है। अकेले से नहीं...!  

        

पिता, यानी वह व्यक्ति जिसने कभी अंगुली थामकर चलना सीखाया। कभी मुश्किल वक्त खुद की सभी परेशानियां भूलकर साथ खड़े नजर आएं। जब एक अच्छे दोस्त की जरूरत लगी तो भी वह पास ही खड़े मिले। हर किसी के जुबान पर सिर्फ एक ही शब्द उनके पापा जैसा कोई नहीं। पापा कहते हैं व्यक्ति की पहचान उसके व्यक्तित्व से होती है। दूसरे के प्रति सरल स्वभाव और मृदुल होने से ही कोई दूसरों पर अपनी छाप छोड़ जाता है। उनकी इस सीख से नए दोस्त बनाता चल रहा हूं। उनके हर खुशी का ख्याल पापा रखते हैं। परिस्थिति चाहे जैसी भी हो बच्चों के प्रति पापा का प्यार मिलता है। यकीनन बचपन तो पापा से ही समृद्ध होता है। बदले दौर के साथ पिता और बेटी का संबंध ज्यादा मुखर हुआ है। परिवार एकाकी हुए हैं और ‘बेटियों‘ को ‘पापा‘ मित्र के रूप में मिले हैं। आज के पिता खुलकर अपने बच्चों के साथ खेलते हैं, उन्हें पढ़ाते हैं और खुद बनाकर खिलाने में भी कोई गुरेज नहीं करते। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी ‘पापा और बेटी‘ की घनिष्ठता मानसिक तौर पर बेटी को मजबूत और स्वस्थ बनाती है। चाहे बच्ची के साथ एक्सलेटर पर उलटा चलना हो या वीडियो गेम्स की माथापच्ची हो, बेटियों की ससुराल की कहानियां हों या कैरियरिस्ट बेटी की उपलब्धियां हों, पापा हर क्षण में शामिल होते हैं...। वाकई बेटियों के पिता ममत्व की पराकाष्ठा तक पहुंचते हैं, अपने संवेदनशील व्यावहारिक परिवर्तन से वह स्वयं भी अचंभित रह जाते हैं। सच है, बेटियां अपनी कोमलता और भावनात्मकता अपने पिता में रोपती हैं। धीर, गंभीर और कठोर से दिखने वाले पुरुष भी बेटियों की संगत में भावविह्वल हो ही जाते हैं। यानी एक पिता सिर्फ पिता की भूमिका में ही अपने सारे दायित्वों का निर्वहन कर सकता है। उसके लिए एक मां की भूमिका निभाना काफी कठिन है दरअसल, पिता-बेटी का रिश्ता स्नेह की उत्कर्षता का पर्याय है, जहां पिता अप्रत्यक्ष तौर पर बेटी के मन में ‘पुरुष‘ का चरित्र गढ़ देता है। बेटी भी पिता द्वारा गढ़े और रचे रेखाचित्र को ही हर रिश्ते में पाना चाहती है। बस यही तो है पिता और बेटी का सर्वोच्च संबंध! जमाना काफी तेजी से बदल रहा है। वर्तमान समय में माता-पिता की अहमियत हमारे जीवन से दूर होता जा रहा है। जिसकी सबसे बड़ी मिसाल ओल्ड ऐज हाउस के रूप में हमारे सामने आ रहे हैं। जो माता-पिता पूरी जिंदगी बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए समर्पित कर देते हैं। परंतु, बच्चों की उम्र के साथ उसी की एक झलक, उसका एक स्नेह पाने तक को तरस जाते हैं। हालांकि सभी के साथ ऐसा नहीं होता, मगर वृद्धों के साथ पुत्रों की बेरुखी की चर्चा हमेशा होते रहती है। पिता जो अपनी छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा करने के बजाए अपने बच्चों की बड़ी से बड़ी इच्छाओं को पूरा करने पर कुर्बान कर देता हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि जो पिता अपने जीवन के अंतिम क्षण तक अपनी बच्चों की खुशहाली के प्रति सदैव चिंतित रहा हो उसके हर दुख-दर्द को दूर करना हरेक संतान का नैतिक धर्म है। लेकिन अफसोस है कि अपनी जीवन भर की कमाई बच्चों पर खर्च करने वाले पिता की उपेक्षा हो रही है, जो विकसित समाज के समक्ष गंभीर चिंता का विषय है। घर के अन्य सदस्यों को अन्यत्र रहने के कारण माता-पिता की देखभाल की समस्या बनी रहती है। हमें फादर्स डे पर अपने पिता के कष्टों को दूर करने का संकल्प लेना चाहिए। पिता के इच्छाओं का ध्यान रखना चाहिए। पिता की आज्ञा का पालन करना हम बच्चों का नैतिक जिम्मेवारी है। बच्चों को पिता की सेवा की कसौटी पर खरा उतरना होगा। पिता की इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमें हरदम सचेष्ट रहना चाहिए। इसका हमेशा ध्यान में रखना चाहिए, कहीं पिता को उनसे कोई तकलीफ तो नहीं हैं। अर्थात पिता के अरमानों को पूरा करने के लिए किसी भी कष्ट को हंसते हुए झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए। पिता की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं।  


अपना क्लोन न बनाएं

पिता को चाहिए कि वह बच्चों को अपना क्लोन न बनाएं। कुदरत के बेमिसाल क्रिएशन की पहचान पर अपनी मानसिकता थोपेंगे तो फिर उनकी खासियत को आप मिटा देंगे। उन्हें संस्कृति, सामाजिकता और नैतिकता का इल्म अवश्य दें लेकिन उनकी पहचान को मोड़ें-तोड़ें नहीं। क्योंकि आपके बच्चे तभी हीरे रह पाएंगे, जब आप अपनी धूल उन पर न लपेटें। खुले आसमान में उन्हें उड़ने दें। गिरने दें। गिरने की चोट और दर्द से वे सीखेंगे। दर्द तराशता है। उन्हें अपाहिज बना देंगे तो आप कब तक बैसाखी बने रहेंगे?


पुत्रों से पिता की उम्मींदे

भारत की संस्कृति में दो बातें मिलती हैं। पिता अपनी संतान के लिए कोई भी त्याग करने को तैयार रहते हैं। उसी तरह पुत्र भी पिता के आदेश का पालन करने से नहीं चूकते। बदली स्थिति में एक-दो पक्ष इसमें और जुड़े हैं। आज पिता चाहता है कि उसका पुत्र इस वैश्वीकरण के दौर में जहां तक पहुंच सके, पहुंचे। वहीं दूसरा पक्ष यह है कि इसमें गिरावट आई है। इसकी मुख्य वजह आदमी की आकांक्षाओं की उड़ान, आगे बढ़ने की चाह और एक-दूसरे का इस्तेमाल करना है। भले ही वह पिता ही क्यों न हों। 


फादर्स डे मनाने की अवधारणा

किसी बच्चे के जीवन में उसके पिता की क्या भूमिका होती है शायद ये बताने के लिए एक दिन काफी नहीं है लेकिन पिता के महत्व को सम्मान देने और पिता के स्नेह और समर्पण को सम्मानित करने के लिए पूरी दुनिया में हर साल जून के तीसरी रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है। वैसे तो फादर्स डे को की शुरूआत को लेकर कई कहानियां हैं लेकिन, सबसे प्रसिद्ध कहानी सोनारो की है, जो अमेरिका के वाशिंगटन शहर के स्पोकेन में रहा करती थी। कहा जाता है कि सोनारो और उसके भाई-बहनों को उसके पिता विलियम जैक्सन ने अकेले पाला था। साल 1909 के मई महीने में सोनोरो मदर्स डे के मौके पर एक चर्च में कार्यक्रम आयोजित किया गया था जहां मां के बारे में व्याख्यान दिए जा रहे थे तभी सोनारो के दिमाग में ख्याल आया कि जब मदर्स डे मनाया जा रहा है तो फादर्स डे क्यों नहीं? सोनारो अगले साल 5 जून को अपने पिता के जन्मदिन पर फादर्स डे मनाना चाहती थीं और उन्होंने एक पेटिशन भी डाला था कि राज्य में इस दिन को फादर्स डे घोषित करते हुए छुट्टी घोषित की जाए। सोनारो की अपील पर फादर्स डे घोषित करने की पूरी प्रक्रिया हुई और फिर आधिकारिक तौर पर 19 जून 1910 से फादर्स डे मनाया जाने लगा।

 

बच्चों की सुरक्षा कवच है पापा

ऋग्वेद में ‘पिता’ शब्द शिशु पालन कर्ता के रूप में माना गया है। पिता जीवन की बगिया के रखवाले हैं। उनकी छत्रछाया में ही पलकर पुत्र आसमां की बुलंदियों को छू पाते हैं। पिता डग भरना सिखाते हैं। जीवन के पथरीले रास्ते पर चलते हुए गिरने के बाद उठना और मंजिल पाने तक चलते रहने की सीख देते हैं। बुरे-भले की शिक्षा देने वाले पिता ही होते हैं। बचपन में सिखाए अनुशासन भले ही उस दौरान कड़वे लगते हो, लेकिन सफलता की सीढ़ी चढ़ने के साथ ही उसका बेहतर परिणाम देखने को मिलता है। अर्थात पिता न केवल अभिभावक की भूमिका निभाते हैं बल्कि एक दोस्त की तरह भी होते हैं, जो समय-समय पर बेटे या बेटियों को उनकी जरूरतों के मुताबिक कठिन डगर में राह दिखाने का काम करते हैं। कोई भी व्यक्ति पिता के ऋण से उऋण नहीं हो सकता। बच्चों की जिंदगी पर पापा का बहुत बड़ा कर्ज होता है। हम जिंदगी देकर भी उनका कर्ज नहीं चुका सकते। पापा ने अपनी उंगली पकड़ हमें चलना सिखाया। पहली बार जब हम बोले तो सबसे ज्यादा खुश पापा हुए। बीमार हम होते हैं परेशान पापा हो जाते हैं। जिंदगी के हर मोड़ पर हमें पापा की जरूरत है। उनके बिना एक कदम भी चलना मुश्किल है। मेरी खुशी में ही उनकी खुशी बसती है। पापा, वो अनमोल रिश्ता है, जिन्होंने औलाद की खुशी पर अपनी खुशी लुटा दी। खुद तकलीफों की आंधी झेली, मगर हम तक उसका एक झोंका तक नहीं पहुंचने दिया। हमारी जरूरत पूरी करने के लिए कभी चिलचिलाती धूप में जिस्म को झुलसाया तो शीतलहर और मूसलाधार बारिश झेली। अपनी जिंदगी को हमारी जरूरतों पर कुर्बान कर दिया। जिंदगी की जंग से जब उदास हुए तो आकर सिर पर हाथ रखकर कहा, मैं हूं ना..। पापा वो कवच हैं जो बच्चों को सुरक्षित करते हैं। हमारी हर जरूरतों को पूरा के लिए वे कई तकलीफ सहते हैं। पापा के रूप में भगवान ने हमें बहुत बड़ा तोहफा दिया है। हमारी हर छोटी, बड़ी जरूरत के लिए पापा पूरी कोशिश करते हैं। हमारी पूरी जिंदगी पर पापा का अहसान है। वो अगर नहीं होते तो हमारा वजूद नहीं होता। वो हमारे लिए पूजनीय है। अगर पिता के प्रेम को जानना चाहते हैं तो आप कितने भी बड़े क्यों न हो गए हों, एक बार अपने बचपन में लौट आइए और देखिए कि कैसे पिता ने आपको साइकल चलाना सिखाया था, कैसे आपके हर उस सवाल का उन्होंने बड़े ही रोचक ढंग से जवाब दिया था जिन्हें अब सुनकर आप शायद चिढ़ जाते हैं और उनकी बात का जवाब देना.जरूरी नहीं समझते। कैसे वे आपके सामने झुककर घोड़ा या हाथी बन जाया करते थे और आपकी मुस्कान से उनकी पीठ का वह दर्द भी गायब हो जाता था, जो आपके वजन के कारण हुआ था, कैसे आपकी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे अपनी जरूरतों से समझौता कर लिया करते थे, आपके होमवर्क और प्रोजेक्ट के लिए कैसे आपके साथ वे भी देर तक जागते और उसे पूरा करवाते थे, कैसे वे आपकी छोटी-सी सफलता को भी जहान की सबसे बड़ी खुशी के रूप में मनाते थे। कैसे वे आपको स्कूल छोड़ने और लेने जाया करते थे और रास्ते में आपकी हर फरमाइश पूरी हुआ करती थी। हर शाम ऑफिस से लौटते हुए कई बार, बिन मांगे ही वे आपकी पसंद की चीजें ले आया करते थे। उनके लिए केवल आपकी खुशी अनमोल थी। अब जरा वापस लौटकर आइए इस दुनिया में और सोचिए कि पिता क्या है। सिर्फ एक पिता या आपको समझने वाला सच्चा दोस्त, आपका सहायक, पालक या फिर खुदा की नेमत। 


भावनाएं

एक पिता के अंतस मन में अपने बच्चों के भविष्य और उनके सपनों को पूरा करने को लेकर क्या चल रहा होता है। इस बात की गहराई अब समझ आई जब मैं खुद पिता बना। यह कहना है, मिड डे मील बिजनेस से जुड़े शिखर मेहता का। वह कहते हैं, वैसे तो मैं अपने पिता को बहुत प्यार करता हूं। मगर उनकी भावनाओं की अब और ज्यादा कद्र करने लगा हूं। मेरा बेटा बहुत छोटा है। वह अभी मुझे गिफ्ट नहीं दे सकता पर मेरे लिए वही मेरा ईश्वर का दिया अनमोल उपहार है। अब मुझे फादर्स-डे और भी ज्यादा अच्छा लगने लगा है क्योंकि मुझे ईश्वर ने पिता का दर्जा देकर इस शब्द की अहमियत बताई है।

“पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः।

पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्व देवताः।।“

    

यदि माता दैहिक-सांसारिक यात्रा के आविर्भाव पर प्राण को चेतना प्रदान करती है तो उस प्राथमिक आविर्भाव हेतु जड़ स्वरूप को पोषित करने वाले पिता ही हैं। मां यदि आंगन की पूज्य वृंदा हैं तो पिता उसी आंगन को संरक्षित करने और समृद्ध रखने वाले वट-वृक्ष हैं। दुनिया आज ’फ़ादर्स डे’ मना रही है। यूं तो सनातनी सभ्यता में माता-पिता का दर्जा ईश्वर से भी ऊंचा है! लेकिन सांस्कृतिक सहिष्णुता और हमारी समृद्ध सभ्यता में हर प्रकार के उत्सव हेतु स्थान है और पिता तो स्वयं में उत्सव हैं। अतः लौकिक-यात्रा के तमाम रास्तों पर अपने मज़बूत कंधों का सहारा देने और मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाले पिताजी को इस विशेष अवसर पर असंख्य प्रणाम! सृष्टि के तमाम सिंहासनों से उच्च मेरा यह स्थान, अनवरत यूं ही बना रहे! 




Suresh-gandhi

सुरेश गांधी 

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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