पटना. प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने शासन के 9 साल पूरा कर लिए हैं.10 वें साल में आम चुनाव होने वाला है.शासक दल 9 साल में सरकार के द्वारा कृत कार्यों को बूथ स्तर तक जनसंपर्क के माध्यम से जनता तक पहुंचाने को कृतसंकल्प है.वहीं महागठबंधन जनता की चरम तबाही-बर्बादी, लूट-दमन और नफरत का भयावह दौर साबित होने पर 15 जून 2023 को महागठबंधन के बैनर से धरना-प्रदर्शन का आह्वान किया गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार के 9 वर्ष सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण को समर्पित है. इन 9 वर्षों में गरीबों के जीवन स्तर में सुधार आया है तो वहीं सांस्कृतिक वैभव का अभ्युदय हुआ है. 9 वर्षों में देश ने हर मोर्चे पर सफलताएं अर्जित की है. भारतीय जनता पार्टी ने 30 मई से 30 जून के बीच विशेष जनसंपर्क अभियान के माध्यम से मोदी सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों को जन जन तक पहुंचाने का कार्यक्रम तय किया है. महागठबंधन का कहना है कि सरकार के 9 साल में महंगाई की मार से जनता त्रस्त है. यह पहली ऐसी सरकार है जो खाद्य पदार्थों से लेकर पाठ्य पुस्तकों व सामग्रियां पर भी टैक्स (जीएसटी) लगा रही है. रसोई गैस की कीमत 1201 रु. प्रति सिलेण्डर पार कर गई है और लोग एक बार फिर से गोइठा व लकड़ी के युग में लौटने को विवश हैं. उज्जवला योजना के नाम पर लोगों की केवल सब्सिडी छुड़वाई गई. प्रत्येक साल दो करोड़ रोजगार का वादा भी पूरी तरह झूठ साबित हुआ. केंद्र सरकार के कार्यालयों में लाखों पद खाली पड़े हैं, लेकिन सरकार उनपर कोई बहाली नहीं कर रही है. विगत 75 वर्षों में बेरोजगारी की ऐसी भयावह स्थिति कभी सामने नहीं आई थी. लुढ़कते रुपए के बीच विदेशी कर्ज साल-दर-साल बढ़कर 620.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. 2014 के पहले देश की तमाम सरकारों ने कुल मिलाकर 55 लाख करोड़ का कर्ज लिया था. मोदी सरकार ने अपने 9 साल के शासन में अकेले 85 लाख करोड़ का कर्ज लिया है. देनदारियों को निपटाने में इस कर्ज का इस्तेमाल हो रहा है. इसका कोई फायदा आम लोगों को नहीं पहुंच रहा है. उलटे, 2021 में भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के अनुसार देश के हर व्यक्ति के माथे पर करीब 32 हजार रुपये का कर्ज हो चला है. केंद्र सरकार शिक्षा, स्वास्थ्य, सिंचाई, मनरेगा सहित अन्य ग्रामीण विकास और कल्याणकारी योजनाओं के मद में लगातार कटौती कर रही है. उसने मनरेगा में 429 रु. मजदूरी देने से साफ इंकार कर दिया. देश की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रवासी मजदूरों के प्रति केंद्रीय सरकार की चरम उपेक्षा को कोविड और लॉकडाउन ने बेनकाब किया था. फिर भी, आज तक प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया. मोदी सरकार ने 2022 तक सभी गरीबों के लिए आवास उपलब्ध कराने का भी वादा किया था, लेकिन उसने वादा तो पूरा नहीं ही किया उलटे उसके पूरा हो जाने का झूठा दावा कर रही है. जनवितरण प्रणाली और खाद्यान्न योजना को भी खत्म करने की साजिशें कर रही है. वैश्विक भूख सूचकांक की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 121 देशों की सूची में भारत 107 वें स्थान पर पहुंच गया है. देश में चौतरफा भूखमरी का विस्तार हो रहा है. कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) की ईपीएस-95 योजना के दायरे में आने वाले पेंशनभोगियों की न्यूनतम पेंशन 7,500 रुपये मासिक किये जाने के अलावा महंगाई भत्ता यानी डीए दिए जाने की मांग हो रही है.इस मांग को लेकर ईपीएस 95 राष्ट्रीय संघर्ष समिति (एनएसी) विरोध-प्रदर्शन करने की तैयारी में है. 2014 के बाद न्यूनतम 1000 रू.पेंशन भुगतान हो रहा है.महामारी कोरोना काल में भी इजाफा नहीं किया गया.इस निष्ठुर सरकार के विरूद्ध 75 लाख पेंशनर हो गए हैं। नोटबंदी और जीएसटी की मार से छोटे-मझोले व्यवसायी अभी तक उबर भी नहीं पाए थे कि इधर 2000 रु. का नोट बंद कर कालाधन पर हमले का एक बार फिर भ्रम पैदा किया जा रहा है. भाजपा शासन में कॉरपोरेट लूट व उनको हासिल सरकारी संरक्षण अपने चरम पर है. कॉरपोरेटों ने देश की 60 प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा जमा रखा है लेकिन जीएसटी में उनका योगदान महज 3 प्रतिशत है. वहीं, दूसरी ओर देश की 50 प्रतिशत जनता जिनके पास महज 3 फीसदी संपत्ति है, जीएसटी में 60 प्रतिशत से अधिक का योगदान करती है. असामनता की यह खाई लगातार बढ़ती ही जा रही है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी की धोखाधड़ी की पोल खोल दी लेकिन मोदी सरकार बेशर्मी के साथ अडानी के पक्ष में लगातार खड़ी है और विपक्ष द्वारा जेपीसी जांच की मांग को ठुकरा रही है. वह इस मसले पर बहस तक नहीं चाहती है. भाजपा द्वारा दलितों-पिछड़ों के आरक्षण में कटौती की भी साजिशें अनवरत जारी हैं. सरकारी योजनाओं में सभी समुदाय के लिए न्यायसंगत व समावेशी विकास के लिए महागठबंधन ने केंद्र सरकार से जाति आधारित सर्वे की मांग की थी, जिसे उसने नकार दिया. केंद्र सरकार के इंकार के बाद बिहार सरकार ने अपनी पहलकदमी पर जाति सर्वे का काम शुरू किया था. भाजपा को यह भी नागवार गुजरा और वह इसके खिलाफ हाथ धोकर पीछे पड़ गई. आखिर भाजपा जाति सर्वे से क्यों भाग रही है? किसानों की आय दुगुनी करने का वादा था, लेकिन मोदी सरकार किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर कॉरपोरेटों के हाथों में जमीन सौंप देने का कानून लेकर आई. उन कानूनों को वापस कराने के लिए किसानों को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और उसेे एमएसपी पर कानून बनाने का वादा करना पड़ा. लेकिन अपने चरित्र के मुताबिक वह एक बार फिर अपने वादे से मुकर गई. संघ-भाजपा के फासीवादी उन्माद भी आज अपने चरम पर है. 28 मई को वैदिक मंत्रोच्चार के बीच जिस प्रकार से एक राजा के राज्याभिषेक की तरह नरेन्द्र मोदी ने संसद के नए भवन का उद्घाटन किया, वह पिछले 9 सालों में मोदी शासन के वास्तविक चरित्र और उसके भविष्य को सबसे ज्यादा स्पष्टता के साथ प्रकट करता है. संसद के नए भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति श्रीमति द्रौपदी मुर्मू को बुलाया तक नहीं गया. यह ने केवल संसदीय लोकतंत्र की परंपराओं का घोर अपमान है बल्कि आदिवासी समुदाय और महिलाओं का भी अपमान है. विदित हो कि संसद भवन के शिलान्यास कार्यक्रम में भी तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीरामनाथ कोविन्द को नहीं बुलाया गया था. दलितों के प्रति घड़ियाली आंसू बहाने वाली भाजपा का दलित विरोधी चेहरा उस समय भी खुलकर सामने आया था. उसी प्रकार, जगजीवन राम छात्रावास अनुदान योजना को बदलकर प्रधानमंत्री योजना कर देना दलित समुदाय के एक बड़े नेता के प्रति उसकी घृणा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है. जिस समय नरेन्द्र मोदी जी संसद के नए भवन का उद्घाटन कर रहे थे, ठीक उसी समय, उसी दिल्ली में, यौन उत्पीड़क बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी की मांग कर रहीं महिला पहलवानों को सड़कों पर घसीटा गया, उनके आंदोलन स्थल को तोड़ दिया गया और महिला पहलवानों व उनके साथ प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नागरिक समुदाय के लोगों की अपमानजक तरीके से गिरफ्तारी की गई. मोदी सरकार, संवैधानिक लोकतांत्रिक गणराज्य के मौलिक सिद्धांतों के खिलाफ अब खुलकर सामने आ गई है. विपक्ष के नेताओं को लगातार निशाना बनाया जा रहा है. उनके पीछे ईडी और सीबीआई लगा दिया जा रहा है. देश के संघीय ढांचे और लोकतंत्र को केंद्रीय एजेंसियों के जरिए नेस्तनाबूद करने के हर प्रयास हो रहे हैं. संघ-भाजपा के मुख्य निशाने पर मुस्लिम, दलित-गरीब और महिलाएं हैं. बिहार में सांप्रदायिक उन्माद और डा. अंबेडकर की मूर्तियों व दलितों पर हमले साथ-साथ चल रहे हैं. डा. अंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र के प्रति दलित समुदाय को आगाह करते हुए इसे बड़ी विपत्ति के रूप में चिन्हित किया था. लेकिन भाजपा दलित-गरीबों की धार्मिक भावना का इस्तेमाल उन्हें सांप्रदायिक उन्माद-उत्पात की राजनीति और ध्रुवीकरण में खींच लाने की लगातार साजिश रच रही है. दूसरी ओर, मुस्लिम समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित कर उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना कर दलितों की एक नई श्रेणी बनाने की भी कोशिश कर रही है. सत्ता से बाहर होने के बाद बौखलाई भाजपा बिहार की न्यायसंगत हिस्सेदारी में कटौती करके बिहार के विकास में अवरोध पैदा कर रही है. बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने से भागने वाली भाजपा को सबक सिखाने की जरूरत है. महागठबंधन ने 2024 में भाजपा के वापस लौटने का मतलब समझाने का प्रयास किया है. संविधान और लोकतंत्र का खात्मा! आरक्षण व्यवस्था की समाप्ति! ऐसी सरकार को आने वाले चुनावों में सत्ता से बाहर कर देना ही देश की जनता और सभी लोकतंत्र व अमन पसंद नागरिकों का पहला कार्यभार होना चाहिए. जातीय गणना, महंगाई, बेरोजगारी, संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग, किसानों की आय दुगुनी करने, उन्माद-उत्पात की राजनीति पर रोक, दलित-गरीबों की आवास एवं खाद्यान्न योजना बंद करने की साजिश, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा जैसे कुछ प्रमुख सवालों पर राज्य के सभी प्रखंडों पर आगामी 15 जून 2023 को महागठबंधन के बैनर से धरना-प्रदर्शन का आह्वान किया गया है. देश को भाजपा रूपी विपदा से मुक्ति दिलाने के लिए आइए, हम सब एक होकर आगे बढ़ें!
शनिवार, 3 जून 2023
बिहार : भाजपा सरकार की 9 साल की तबाही ही है : महागठबंधन
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