विशेष : भ्रष्टाचार की बहार... बिहार में नीतीश कुमार! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 6 जून 2023

विशेष : भ्रष्टाचार की बहार... बिहार में नीतीश कुमार!

भ्रष्टाचार की दीमक जब सरकारों पर लगती है तो क्या होता है, इसे बिहार में देखा जा सकता है। 600 करोड़ की लागत वाला पुल 1717 करोड़ का हो गया, लेकिन नौ साल बाद उद्घाटन की तारीख से 10 दिन पहले ही भरभराकर गंगा की में समा गया। या यूं कहें करप्ट ठेकेदारों, कमीशनखोरों व सरकार के भ्रष्टाचार का बोझ नहीं सहन कर पाया। विपक्षी एकता की बैठक नीतीश को टालनी पड़ी तो गंगा पर पुल बनाने की उनकी महत्वाकांक्षी योजना पर पानी फिर गया। भागलपुर अगुवानी-सुल्तानगंज में गंगा नदी पर 1717 करोड़ की लागत से बन रहा पुल रेत की तरह गंगा में बह गया.भ्रष्टचार और लापरवीही की भेंट चढ़ गया। महीने भर बाद निर्माणाधीन पुल के तीन पिलर फिर से ताश के पत्ते की तरह ढह गया. देखा जाएं तो नीतीशराज में बिहार में भ्रष्टाचार रुपी पुलों के ढहने का सिलसिला कोई पहली बार नहीं हुआ है। इसके पहले दिसंबर 2022 में बेगूसराय में पुल ढह गया। इसके ठीक एक दिन बाद सहरसा में पुल ध्वस्त हो गया, जिसमें 3 मजदूरों घायल हो गए, अगस्त 2022 में कटिहार में निर्माणाधीन पुल ढह गया, नवंबर 2022 में नालंदा में निर्माणाधीन पुल का हिस्सा गिरने से एक मजदूर की मौत हो गयी। मतलब साफ है सुशासन राज में भ्रष्टाचार के बोझ से निर्माणाधीन पुल इतने दब गए है कि वो आम आदमी के बोझ को उठाने से पहले भरभरा जा रहे है। पुलों के निर्माण में बिना टेंडर व घटिया मैटेरियल इस कदर हावी है कि जिस देश में विशालकाय संसद भवन 28 महीने में तैयार हो जाते है, उसी देश के बिहार में नौ साल बाद भी पुल बनने से पहले गंगा के गोद में समा जा रहे है। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है भ्रष्टाचार रुपी पुल कब तक लेते रहेंगे आम जनमानस की बलि? खास यह है कि यह पुल नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट का हिस्सा है 


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बिहार के भागलपुर में रविवार को 1717 करोड़ की लागत से बन रहा पुल रेत की तरह गंगा में बह गया. पूरा देश इस पुल के बहने का वीडियो देखकर दंग हो गया. 2014 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पुल का शिलान्यास किया था. लेकिन 9 साल में ये पुल बनकर तैयार नहीं हो पाया. चौंकाने वाली बात ये है कि ये ’कागजी’ पुल दूसरी बार गिरा है. इससे पहले पिछले साल 30 अप्रैल को भी इस निर्माणधीन पुल का हिस्सा गिरा था. तब कहा गया था कि तूफान की वजह से ब्रिज का हिस्सा गिरा. बता दें, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 23 फरवरी 2014 को इसका शिलान्यास किया था. पुल का निर्माण एसपी सिंगला कंपनी कर रही है. करीब तीन किमी लंबे इस पुल के निर्माण का अस्सी फीसदी काम पूरा हो चुका था. इसी साल नवंबर में पुल के उद्घाटन की तैयारी थी. लेकिन उद्घाटन से पांच महीने पहले ही निर्माणाधीन पुल का बड़ा हिस्सा गंगा की लहरों में समा गया. ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या यह पुल भ्रष्टाचार की रेत पर खड़ा था, जो 10 सेकेंड में ही धड़ाम हो गया! वेसे भी इस ब्रिज के निर्माण को लेकर कंपनी पहले ही सवालों के घेरे में है। 600 करोड़ से 1700 करोड़ इसकी लागत हो गई, उसके बावजूद कंस्ट्रक्शन क्वॉलिटी इतनी घटिया थी उसकी गवाही गंगा में समाएं पुल के मलबे दे रहे है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है, के जवाब में नीतीश कह रहे है हमे पहले से मालूम है घटिया निर्माण हो रहा है। कुछ ऐसा ही तेजस्वी भी कह रहे हे, लेकिन वे भूल गए इसका जवाब उन्हीं को देना है। उनका कहना है कि हमारी आशंका सही साबित हुई। मतलब साफ है बिहार में ऐसी गजब परिस्थिति है कि 1717 करोड़ पानी में बह गए और कोई ऐसा व्यक्ति ढूंढे नहीं मिल रहा है जो यह जवाब दे सके कि पुल क्यों गिरा? नीतीश सोच रहे है जो कह देंगे वही सही है।


ऐसे में सवाल यह है कि नीतीशराज में कब तक जर्जर सड़के व पुल लोगों की जान लेते रहेंगे? उन्हें समझना होगा जब जनता बचेगी तभी आपकों चुनेंगी। आंकड़े बताते है कि भ्रष्टाचार में बिहार कुछ इस तरह संलिप्त है कि घटिया निर्माण के चलते दर्जनों पुल ढह चुके है। इसके बावजूद उसी एजेंसी को बार-बार ठेका क्यों दिया जा रहा है? क्या निर्माण ईकाई की कमीशन रुपी दौलत इतनी भा रही है कि उसके आगे जनता की जान छोटी हो गयी है? ऐसा इसलिए क्योंकि इस निर्माण ईकाई द्वारा बनाएं जा रहे दर्जनों पुल निर्माणसे पहले ध्वस्त हो गए। आप खुद कह रहे है कि दो महीने पहले पुल के कुछ हिस्सा ढहने के बाद मौके गया और निर्माण ईकाई को निर्देशित किया था कि खराब मटेरियल से बने इस पुल को ढहाकर नए सिरे से काम किया जाएं। लेकिन निर्माण ईकाई अपना काम जारी रखा और परिणाम सामने है कि पुल देखते ही देखते गंगा में दफन हो गया। जनता जानना चाहती है कि उसके दिन रात की हाड़तोड मेहनत की कमाई से बन रहे इस पुल के ठेकेदार को चेतावनी या आदेश सिर्फ कमीशन बढाने के लिए दिया गया था। क्योंकि पुल का जो मलबा इस वक्त बिखरा पड़ा है वो खुद चीख-चाख कर गवाही दे रही है मटेरियल मैटेरियल व सीमेंट की जगह बालू का इस्तेमाल किया जा रहा था। वरना 9 साल से बन रहा पुल 9 सेकेंड में बहती गंगा में समाहित नहीं होती।


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फिरहाल, पुल गिरने के बाद बिहार की सियासत गरमा गई है. बीजेपी ने इस मामले में महागठबंधन सरकार पर भ्रष्टचार का आरोप लगाते हुए नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगा है. केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने राज्य सराकर पर निशाना साधते हुए कहा कि पुल गिरने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए चाचा-भतीजा (नीतीश-तेजस्वी) को इस्तीफा दे देना चाहिए. बता दें कि कुछ ही महीनों के अंतराल पर दूसरी बार यह पुल गिरा है. उधर, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कहना है कि पुल ठीक से नहीं बनाया जा रहा तभी यह बार-बार गिर जा रहा है. उन्होंने मामले में जांच के आदेश दे दिए हैं. प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि ब्रिज गिरने से करीब दो किमी दूर तक आवाज आई. इतना ही नहीं इतना बड़ा स्ट्रक्चर गिरने से गंगा नदी में कई फीट ऊंची लहरें उठीं. गंगा में करीब  500 मीटर में मलबा बिखर गया था. वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे 1700 करोड़ से ज्यादा की लागत से तैयार हो रहा पुल जमींदोज हो गया. ब्रिज देखते ही देखते ताश के महल की तरह गिर गया. पहले निर्माणाधीन पुल का ये छोटा सा हिस्सा गिरता है, इसके चंद सेकेंड के भीतर 200 फीट का लंबा स्लैब गंगा नदी में समा जाता है. गंगा में पुल का हिस्सा समाते ही धड़ाम की आवाज आती है. हालांकि यह पहली घटना नहीं है, बिहार में को चूहे भी नदियों पर बने बांध कुतर देते हैं। चूहे इतना बदनाम हैं कि पुलिस थाने के मालखाने में रखी शराब भी पी जाते हैं। नहर पर बना लोहे का पुल चोरी हो जाता है। 



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सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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