दिल्‍ली अध्‍यादेश पर नप सकते हैं राज्‍यसभा उपसभापति हरिवंश - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 26 जून 2023

दिल्‍ली अध्‍यादेश पर नप सकते हैं राज्‍यसभा उपसभापति हरिवंश

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राज्‍य सभा के उपसभापति हैं हरिबंस नारायण सिंह उर्फ हरिवंश। 2017 में भाजपा के साथ जदयू के आने के बाद सर्वाधिक और दीर्घावधिक लाभ में हरिवंश ही थे। वे दूसरी बार राज्‍य सभा के उपसभापति चुने गये। यह सब भाजपा और जदयू के गठबंधन के दौरान हुआ। लेकिन करीब एक साल पहले जदयू ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ लिया। संसद में वह विपक्षी दल की हैसियत में आ गया और बिहार में राजद के साथ सरकार में लौट आया। यह सब सामान्‍य राजनीतिक प्रक्रिया थी। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे बड़ी पेंच बन गये हैं हरवंश यानी राज्‍यसभा के उपसभापति। वे सदन में विपक्षी दल के सदस्‍य होकर भी उपसभापति बने हुए हैं। यह संवैधानिक प्रावधान है कि उनका कार्यकाल तब तक है, जब तक वे राज्‍यसभा के सदस्‍य हैं। तकनीकी रूप से बहुत असहज स्थिति नहीं है। सरकार के साथ मिलकर चलना किसी भी सदन के प्रमुख या उपप्रमुख का दायित्‍व है। लेकिन विपक्षी दल का कोई सदस्‍य सरकार के साथ मिलकर चले, यह बहुत भरोसेमंद स्थिति नहीं है। यह भी उतना ही सच है कि हरिवंश भाजपा सरकार के खिलाफ जाएंगे, असंभव है। क्‍योंकि भाजपा के भरोसे ही उनकी कुर्सी सुरक्षित है।


अब हरिवंश की कुर्सी पर पेंच आ गयी है। दिल्‍ली अध्‍यादेश पर संसद का विश्‍वास हासिल करने लिए सरकार अध्‍यादेश को पहले लोकसभा में रखेगी, जहां पारित हो जाना आसान है। इसके बाद अध्‍यादेश को राज्‍यसभा में लाया जाएगा, जहां भाजपा और उनके वर्तमान सहयोगी दलों का बहुमत नहीं है। अध्‍यादेश को पारित कराने के लिए अन्‍य पार्टियां का सपोर्ट भी चाहिए। वैसी स्थिति में एक-एक वोट का महत्‍व है। जदयू सदस्‍य के रूप में हरिवंश को भी एक वोट देने का अधिकार है। यही वोट उनके लिए गले की हड्डी बन जाएगा। दिल्‍ली अध्‍यादेश के खिलाफ जदयू राज्‍यसभा में ह्वीप जारी करता है तो हरिवंश को अध्‍यादेश के खिलाफ मतदान करना होगा। यदि वे अध्‍यादेश के पक्ष में मतदान करते हैं तो दल विरोधी गत‍विधि के आरोप में उनकी सदन सदस्‍यता पर संकट आ जाएगा और उनको सदस्‍यता गंवानी पड़ सकती है। यह जदयू नेतृत्‍व पर निर्भर करता है कि उनके खिलाफ क्‍या कार्रवाई करता है। पिछले एक साल में ऐसी स्थिति पैदा नहीं हुई है कि हरिवंश की सदस्‍यता पर संकट आए, लेकिन दिल्‍ली अध्‍यादेश उनके लिए संकट बनकर आएगा। केंद्र सरकार की अनुकंपा साथ बनी रही तो हर संकट टल सकता है, लेकिन नीतीश कुमार भी विरोधियों को माफ करने वाले नहीं हैं। आरसीपी सिंह से लेकर शरद यादव तक इसके उदाहरण हैं। अब देखने का वक्‍त आ रहा है कि हरिवंश उपसभापति पद छोड़कर जदयू के साथ खड़े होंगे या दिल्‍ली अध्‍यादेश का विरोध करके भी भाजपा की अनुकंपा का आनंद उठाते रहेंगे।    





— बीरेंद्र यादव न्यूज —

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