आलेख : जलवायु परिवर्तन, कुपोषण और भुखमरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

आलेख : जलवायु परिवर्तन, कुपोषण और भुखमरी

जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में सबसे बड़ा संकट खाद्य उपलब्धता को रेखांकित किया जाता रहा है। पिछले साल के आंकड़ों को देखते हुुए यह चिन्ता अब और गहरी होने लगी है। पिछले साल पूरी दुनिया में बीस करोड़ पचास लाख लोगों ने गंभीर खाद्य संकट का सामना किया। अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान की ओर से जारी की गई वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट में चिन्ता जाहिर की गई है कि वर्ष 2050 तक खाद्य संकट की वजह से करीब 7.20 करोड़ लोगों के कुपोषित होने की आशंका है। भारत के सामने यह संकट कई वजहों से बड़ा है। एक तो आबादी की दृष्टि से यह दुनिया का सबसे बड़ा देश बन गया है। दूसरी तरफ कृषि उत्पादन के मामले में कमी दर्ज हो रही है। हालांकि खाद्यान्न के मामले में भारत आत्मनिर्भर है, मगर जिस तरह उत्पादन में कमी दर्ज हो रही है और जो उत्पादन होता है, उसका पूरी तरह सुरक्षित भंडारण नहीं हो पाता, उसमें खाद्य सुरक्षा कानून का लंबे समय तक पालन कर पाना चुनौती बनता जा रहा है। पहले ही अस्सी करोड़ से अधिक आबादी को मुफ्त के राशन पर निर्भर रहना पड़ रहा है, उनके पास रोजगार के ऐसे साधन नहीं हैं कि वे अपना भोजन वे खुद जुटा सकें। इस तरह इस आबादी में कुपोषण की गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक भारत में दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले कहीं अधिक कुपोषित बच्चे हैं। केवल एक या दो वक्त पेट भरने के लिए अनाज का प्रबन्ध हो जाने से पोषण की गारंटी नहीं दी जा सकती। समुचित पोषण के लिए फल, दूध, सब्जियों आदि की पर्याप्त उपलब्धता भी जरूरी है। जिसका नितान्त अभाव है। ऐसे में कुपोषण की समस्या यहाँ बढ़ने की आशंका अधिक है। अभी हाल ही के आंकड़ों के अनुसार भारत में अल्प पोषण 16 प्रतिशत है।


पिछले साल समय से पहले गर्मी का मौसम शुरू हो गया, तो गेहंू के दाने सिकुड़ गए। दलहन और तिलहन के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव दिखाई देने लगा। सबसे कमजोर पहलू भंडारण का है। अव्वल तो सरकारी खरीद अपेक्षित लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाती, फिर अनाज को खुले में प्लास्टिक आदि से ढककर रख दिया जाता है और असमय या अत्यधिक बारिश की वजह से हर साल बहुत सारा अनाज बर्बाद चला जाता है। नए गोदाम बनाने की तरफ ध्यान नहीं दिया जाता और पुराने गोदामों की मरम्मत में दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती। ऐसे में खाद्यान्न की सार्वजनिक वितरण प्रणाली अक्सर चरमराती नजर आती है। लाभार्थियों को अनाज उपलब्ध कराया जाता है, उसकी गुणवत्ता स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं मानी जाती। इसलिए दुनिया में खाद्यान्न संकट के मद्देनजर भारत को कुछ अतिरिक्त रूप में सतर्क रहने की आवश्यकता है। पिछले साल चौदह अक्टूबर को वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया गया। उसमें 121 देशों की सूची में भारत 107वें स्थान पर था। अब माना जा रहा है कि देश में भूख और कुपोषण का स्तर ‘गंभीर’ स्तर पर है। अनुमान के मुताबिक आज लगभग 16 फीसद भारतीय कुपोषित हैं। इसी क्रम में यह भी तथ्य है कि प्रत्येक तीन बच्चों में से लगभग एक का कद औसत से कम है। जिसका अर्थ है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की ऊंचाई का अनुपात उम्र के हिसाब से कम है।


भारत दुनिया में दूध, दाल, केले, गेहूं, चावल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है तो मछली और पोल्ट्री जैसे पशुधन उत्पादों के शीर्ष उत्पादकों में से एक है। लेकिन सच यह भी है कि यहां का चालीस फीसद भोजन कूड़ेदान में फंेक दिया जाता है और वह वहीं समाप्त हो जाता है। अगर सिर्फ खाने की बर्बादी को ही रोक लिया जाए तो इससे भारत की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो सकता है। क्या हममें से ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि दुनिया भर में खाने का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है? यह तीन अरब लोगों को खिलाने के लिए काफी है! उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में औसत व्यक्ति प्रतिदिन एक सौ सैंतीस ग्राम भोजन बर्बाद करता है। यानी 0.96 किलोग्राम प्रति सप्ताह या पचास किलोग्राम प्रतिवर्ष। भारत में 40 फीसद भोजन बर्बाद हो जाता है जो एक वर्ष में 92,000 करोड़ रुपये के बराबर है। भारत में कृषि मंत्रालय के अनुसार, हर साल उत्पादित पचास हजार करोड़ रुपये का खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। खाद्य हानि और बर्बादी हमारे सामाजिक ढांचे को कमजोर करती है। जब भोजन खो जाता है या बर्बाद हो जाता है, तो इस भोजन का उत्पादन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी संसाधन-पानी, भूमि, ऊर्जा, श्रम, पूंजी एवं भावना सहित बहुत कुछ बर्बाद हो जाता है।


कैसे कम करें खाने की बर्बादी-

खाने की बर्बादी रोकने के तीन अहम सूत्र हैं, रीयूज़, रिड्यूस और रिसाइकलिंग। खाद्य पदार्थों को दोबारा उपयोग में लाने, उनकी बर्बादी रोकने के साथ ही रिसाइकलिंग पर ध्यान देने की ज़रूरत है। इसके अलावा इन तरीक़ों से भी आप अपने घर से निकलने वाला खाद्य अपशिष्ट घटा सकते हैं।


1. ताजा और ज़रूरी ही ख़रीदें-

इस सरल नियम से आप अतिरिक्त खाद्य पदार्थ नहीं लेंगे। सुपरमार्केट या किराना स्टोर से वही सामान ख़रीदें, जिसकी ज़रूरत है। हफ़्तेभर की सब्ज़ियां स्टॉक करके रखने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा करने से सब्ज़ियों की शेल्फ़ लाइफ़ कम होगी और उनमें से ज़्यादातर कचरे के डिब्बे में जाएंगी। ताज़ा सब्ज़ियां व फल ख़रीदें। खाना पकाते समय भी ध्यान रखें ताकि फेंका कम जाए।


2. फ्रीज़र का उपयोग करें-

बचे हुए खाने को दोबारा उपयोग किया जा सकता है, फिर से उपयोग करने के लिए उसे हवाबंद डिब्बे में भरकर फ्रीजर में रख दें।


3. भूखे लोगों को खिलाएं-

अक्सर हम जो खाना फेंकते हैं उनमें से ज़्यादातर खाने योग्य होता है। अपने आसपास के भूखे या असहाय लोगों को अतिरिक्त खाना पहुंचाएं। इसके लिए स्थानीय स्तर पर सक्रिय संगठनों की मदद ली जा सकती है। व्यक्ति खुद अपने आसपास या सोसायटी में मिलकर ऐसा संगठन बना सकते हैं, जो घरों से निकलने वाले अतिरिक्त खाद्य पदार्थों को ख़राब होने से पहले ज़रूरतमंदों तक पहुंचा सके।


4. जानवरों को खिलाएं-

बचे खाद्य पदार्थ को जानवरों को खिलाना भी अच्छा विकल्प है। इस तरह वह खाना लैंडफिल में जाकर समाप्त नहीं होगा।


5. खाद बनाना-

यह हर व्यक्ति अपने स्तर पर कर सकता है। खाद बनाना यानी कंपोस्टिंग न केवल खाद्य अपशिष्ट को लैंडफिल में प्रवेश करने से रोकता है, बल्कि मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में भी सुधार करता है जो बदले में भविष्य की फ़सलों को बढ़ने में मदद करेगा। चावल, अनाज, बचा या खराब हुआ खाना, उपयोग की गई चाय पत्ती, अंडों के छिलके, सीफूड, पेपर टॉवेल जैसी चीज़ें खाद बनाने के काम में लाई जाती हैं।


6. औद्योगिक उपयोग-

कुछ खाद्य अपशिष्टों का उपयोग जैव ईंधन और जैव-उत्पाद बनाने के लिए किया जा सकता है। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा हमारे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत हैं। अमेरिका जैसे कई देश कुछ खाद्य अपशिष्टों की मदद से जैव ईंधन बनाने में जुटे हैं। सच यह है कि आज हम जिस खाद्यान्न की समस्या का सामना कर रहे हैं, उसके लिए केवल सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परम्पराएं भी इस स्थिति में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इसलिए भोजन की बर्बादी को रोकना एक अकेला कदम है जो हमारे देश को रहने के लिए एक बेहतर जगह बना सकता है। यह एक बहुत ही आसान आदत है, जिसके लिए हमारी मौजूदा आदतों में थोड़ा-सा बदलाव करने की आवश्यकता है कि हम अपने भोजन का उपभोग और भंडारण ठीक से करें। इस समस्या के समाधान के लिये घर, परिवार, समाज एवं सरकार को इकट्ठा आना पड़ेगा।





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डॉ. अशोक कुमार गदिया

(लेखक मेवाड़ ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन हैं।)

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