- बलि और हिंसा समय के साथ बदली और यह अब नारियल फोड़कर होती है, राजा का काम संचालन को होता है, उनके कामों का फल चुनाव में देते हैं
उन्होंने कहा कि समाज में धर्म चक्र परिवर्तन के आधार पर सृष्टि चलती है. शरीर, मन और बुद्धि को पवित्र करके ही आराधना होती है. उन्होंने कहा कि मंदिर हमारी सनातनी परंपरा का अभिन्न अंग हैं। पूरे समाज को एक लक्ष्य लेकर चलाने के लिए मठ-मंदिर चाहिए। क्येंकि मंदिर हमारी प्रगति का सामाजिक उपकरण हैं. मंदिर में आराधना के समय आराध्य का पूर्ण स्वरूप होना चाहिए. शिव के मंदिर में भस्म और विष्णु के मंदिर में चंदन मिलता है. संघ प्रमुख ने कहा कि पहले बलि परम्परा थी किंतु जब पता चला कि यह काल संगत नहीं है तो अब नीबू और नारियल की बलि देते है. समाज प्रकृति और परंपरागत राजा पर निर्भर नहीं है. राजा का काम संचालन है. इसके लिए हम सत्ता देकर सो नहीं जाते, बल्कि उनके कामों का फल चुनाव में देते हैं. उन्होंने कहा कि मंदिर भक्तों के आधार पर चलते हैं. पहले मंदिर में गुरुकुल चलते थे. कथा प्रवचन और पुराण से नई पीढ़ी शिक्षित होती थी. संस्कार होता है कि मनुष्य को जहां धन, वैभव आदि मिलता है, वह वहां आता है. मोहन भागवत ने कहा कि मंदिर सत्यम-शिवम-सुंदरम की प्रेरणा देते हैं. मंदिर की कारीगरी हमारी पद्धति को दिखाते हैं. मंदिर को चलाने वाले धर्म होने चाहिए. अपने यहां कुछ मंदिर सरकार और कुछ समाज के हाथ में है. लेकिन सरकार के हाथ में ऐसे मंदिर भी हैं जो अच्छे चल रहे हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर देखकर आइए उसका स्वरूप कैसा हो गया। करने वाले सरकार के लोग हैं, लेकिन वह भक्ति के साथ कर रहे हैं। या यूं कहे काशी विश्वनाथ का स्वरूप बदला, ये भक्ति की शक्ति है. परिवर्तन करने वाले लोग भक्त हैं और इसके लिए भाव चाहिए.
उन्होंने कहा कि मंदिर केवल पूजा नहीं, मोक्ष और चित्त सिद्धि का स्थल है। उन्होंने कहा कि देश के छोटे स्थान पर छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध बनाना है। हमें हर गली की छोटी-छोटी मंदिरों की सूची बनानी चाहिए। वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाएं। मिलकर सभी आयोजन करें। संगठित बल साधनों से संपूर्ण करें। समय आ गया है, अब देश और संस्कृति के लिए त्याग करें। कई जगहों पर मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं, उनको कैसे जोड़ा जाएं, उस पर भी सोचना चाहिए. इतिहास में कई बार ऐसा समय आया कभी हम गिरे, कभी किसी ने धक्का मारकर गिराया, लेकिन हमारे मूल्य नहीं गिरे। हमारे जीवन का लक्ष्य एक ही है हमारा कमारा कर्म और धर्म। महासम्मेलन के उद्घाटन सत्र में केंद्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता और सार्वजनिक वितरण मामलों के राज्यमंत्री अश्विनी चौबे ने कहा कि हर सनातनी का घर एक मंदिर है। मंदिर ही ऊर्जा है। इन मंदिरों को जोड़कर भारत को हम दोबारा विश्वगुरु बनाएंगे। मंदिरों को जोड़कर भारत को हम दोबारा विश्वगुरु बनाएंगे। मंदिरों को जोड़कर मानस को सांस्कृतिक रूप से एक करेंगे। मंदिर जुड़ेंगे तो मन भी जुड़ेंगे। हमारी संस्कृति भी जुड़ेगी। उन्होंने कहा कि देश में मंदिर केवल पूजा स्थल ही नहीं सेवा, चिकित्सा, शिक्षा का भी बड़ा केंद्र रहे हैं। अतीत में आतताइयों ने हमारे मंदिर और संस्कृति को क्षति पहुंचाई, उनके संसाधनों को क्षीण किया, लेकिन हमारा इतिहास हमेशा ऊंचा रहा। इस दौरान उन्होंने वाराणसी के सांसद और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का संदेश पढ़कर सुनाया गया। बताया गया कि काशी समेत देश के मंदिरों में विकास और विरासत का उन्होंने संकल्प लिया। वाराणसी में काशी विश्वनाथ धाम, गंगा घाट समेत तमाम सौंदर्यीकरण देश और दुनियाभर के लिए उदाहरण है। सभी मंदिर मिलकर ही ’एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सपना साकार करेंगे। इसके पहले इंटरनेशनल टेंपल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो के चेयरमैन गिरेश कुलकर्णी, महाराष्ट्र विधायक श्री प्रसाद लाड व मेयर अशोक तिवारी ने मोहन भागवत व अश्विनी चौबे व अन्य अतिथियों का स्वागत किया। महासम्मेलन मे 41 देशों के हिन्दू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लगभग 750 प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं।
हर तीन साल में मंदिरों के महासम्मेलन की घोषणा
आयोजन समिति के अध्यक्ष प्रसाद नारायण ने हर तीन साल में इसी तरह मंदिरों के महासम्मेलन कराने की बात कही। उन्होंने कहा, कामन मैन का पैसा कामन मैन तक पहुंचाया जाए। मंदिर के पैसों से मंदिरों का जीर्णोद्धार हो। जो लंगर गुरुद्वारे में चलता है, वो मंदिरों में भी चले। लंगर में भक्त प्रसाद और भूखे को भोजन मिलेगा। बुक बैंक, मेडिकल हेल्प, लंगर मैनेजमेंट करना होगा। स्वच्छता मंदिरों की प्राथमिकता होगी, फूल प्रसाद समेत सामग्री निस्तारण का फुल प्रूफ प्लान बनाया गया है जो परिवर्तन लाएगा।
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