कविता : सुनो, बरसात आयी रे ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 9 जुलाई 2023

कविता : सुनो, बरसात आयी रे !

बरसात का मौसम आया,

सबके मन को भाया,

कुछ लोगों को छोड़ो भाई,

मैं भी हूं एक प्रेयसी तुम्हारी।

तुम्हें देखते मैं हुई बावरी,

सुनो, बरसात आई रे,

सबके मन को भायी रे।

तुम गरीब, किसानों की हो उम्मीद,

तुम फसलों के लिए प्यार की बूंदे,

बूंदों की प्रेमिल फुहार से किसान का मन हर्षाती हो,

सबके मन को भाती हो,

सुनो बरसात आयी रे,

सबके के मन को भायी रे।

जब तुम आ जाती हो, सबके मन को हर्षाती हो,

प्रकृति बन जाती है निराली, सबके मन को भानी वाली,

सर्वत्र हरियाली छा जाती है, सुंदरता जो बरसाती हो,

चिड़िया भी सुमधुर स्वर में प्रकृति में रस घोलती है,

प्रकृति का गाना सुनाती हो, सर्वत्र खुशियां छा जाती है,

सुनो बरसात आई रे !

सबके मन को भायी रे !




Anjali-bharti-charkha-features


अंजली शर्मा

मुजफ्फरपुर, बिहार

चरखा फीचर

कोई टिप्पणी नहीं: