बरसात का मौसम आया,
सबके मन को भाया,
कुछ लोगों को छोड़ो भाई,
मैं भी हूं एक प्रेयसी तुम्हारी।
तुम्हें देखते मैं हुई बावरी,
सुनो, बरसात आई रे,
सबके मन को भायी रे।
तुम गरीब, किसानों की हो उम्मीद,
तुम फसलों के लिए प्यार की बूंदे,
बूंदों की प्रेमिल फुहार से किसान का मन हर्षाती हो,
सबके मन को भाती हो,
सुनो बरसात आयी रे,
सबके के मन को भायी रे।
जब तुम आ जाती हो, सबके मन को हर्षाती हो,
प्रकृति बन जाती है निराली, सबके मन को भानी वाली,
सर्वत्र हरियाली छा जाती है, सुंदरता जो बरसाती हो,
चिड़िया भी सुमधुर स्वर में प्रकृति में रस घोलती है,
प्रकृति का गाना सुनाती हो, सर्वत्र खुशियां छा जाती है,
सुनो बरसात आई रे !
सबके मन को भायी रे !
अंजली शर्मा
मुजफ्फरपुर, बिहार
चरखा फीचर
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