बिहार : मणिपुर हिंसा के बीच सामान्य जनजीवन की प्रक्रिया का प्रयास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 1 जुलाई 2023

बिहार : मणिपुर हिंसा के बीच सामान्य जनजीवन की प्रक्रिया का प्रयास

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पटना. पटना महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष सेबेस्टियन कल्लूपुरा हैं. महाधर्माध्यक्ष सेबेस्टियन कल्लूपुरा कारितास  इंडिया के अध्यक्ष भी हैं.हाल के दिनों में 3 मई 2023 से मणिपुर राज्य में हिंसा भड़क गया है. मैतेई  और कुकी जातीय के लोग अशांत होकर हिंसात्मक आंदोलन करने पर उतारू हैं. सैकड़ों लोगों की हत्या हो गयी है. बताया गया कि मैतेई एक जाति, जो पूर्वोत्तर भारत में मणिपुर राज्य में निवास करती है. राज्य में उनकी बहुसंख्यक आबादी है.इन्हें ‘मणिपुरी‘ भी कहा जाता है।.इनकी अर्थव्यवस्था का आधार सिंचित खेतों में धान की कृषि है. मैतेई रीति-रिवाजों के मिश्रण से बड़ी कट्टरता से दूर रहते हैं और गाय को पूजनीय मानते हैं. मणिपुर का अधिकांश क्षेत्र कभी पूरी तरह उन लोगों से बसा हुआ था, जो नागा और मिज़ो पर्वतीय जाति से मिलते-जुलते थे. परस्पर विवाह संबंधों और अपने राजनीतिक वर्चस्व के कारण धीरे-धीरे अन्य प्रभावशाली जातियों के इनके साथ विलीन होते जाने से मैतेई जाति बनी, जिसकी आबादी अब लगभग 7,80,000 है. मैतेई  लोग ऐसे कुलों में बंटे हुए हैं, उनमें परस्पर विवाह संबंध नहीं होते हैं. वंशागत रूप से मंगोल नस्ल के होने और तिब्बती-बर्मी भाषा बोलने के बावजूद हिन्दू परंपराओं का पालन करने के कारण मैतेई आसपास की पहाड़ी जातियों से भिन्न हैं. हिन्दू धर्म में परिवर्तित होने के पूर्व वे मांसाहार करते थे, पशुबलि और नरबलि भी देते थे, लेकिन अब वे मांसाहार, और मदिरा पान से परहेज़ करते हैं.मैतेई रीति-रिवाजों के मिश्रण से बड़ी कट्टरता से दूर रहते हैं और गाय को पूजनीय मानते हैं. ये लोग उच्च वर्ण का होने का दावा करते हैं. हिन्दू देवी-देवताओं, खासतौर से कृष्ण के उपासक होने के अलावा, वे हिन्दू बनने से पूर्व के अपने पंथ विशेष के देवी-देवताओं और भूत-प्रेतों की पूजा भी करते हैं. इनकी अर्थव्यवस्था का आधार सिंचित खेतों में धान की कृषि है. वे अश्वपालन में निपुण हैं.पोलो इन लोगों का राजकीय खेल है. हॉकी, नौका दौड़, नाटक और भारत भर में मशहूर मणिपुरी नृत्य इनके मनोरंजन के अन्य साधन हैं.

 

बताते चले कि कुकी भारत और म्यांमार के बीच की सीमा की मिज़ो पहाड़ियों पर रहने वाले दक्षिण-पूर्वी एशियाई लोग है. इस जनजाति की जनसंख्या 1970 के दशक में लगभग 12,000 थी. ये मुख्यतः अधिक संख्या वाले मिज़ो लोगों में उनकी प्रथाएँ व भाषा अपनाकर घुलमिल गए हैं. इसके बोंजुंग कुकी, बायटे कुकी, खेलमा कुकी आदि कई कुलवाची भेद हैं.ये बलिष्ठ एवं ठिंगने होते हैं और नागा लोगों की अपेक्षा अधिक खूंखार समझे जाते हैं. आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व लुशाई और कुकी लोगों में युद्ध हुआ जिसमें कुकी लोगों की हार हुई और वे अपना निवास छोड़कर काचार में आ बसे. उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने प्रश्रय दिया और 200 कुकियों को सीमांत रक्षार्थ सैनिक शिक्षा दी. कुकी लोग अपने सरदार की आज्ञा का पालन अपना धर्म समझते हैं सरदार उनका एक प्रकार से राजा होता है और समझा जाता है कि वह दैवी अंश है.इस कारण वे लोग उसका कभी अनादर करने का साहस नहीं करते वरना वह जो आदेश देता है उसका आँख मूंदकर पालन करते हैं. विशेष अवसर आने पर सरदार संकेत द्वारा आदेश जारी करता है. यदि कोई व्यक्ति सरदार का भाला सुसज्जित रूप में लेकर गाँव में घूमता है तो उसका अर्थ होता है कि सरदार ने सब लोगों को अविलम्ब बुलाया है. इस वर्ग का प्रत्येक व्यक्ति अपने सरदार को प्रति वर्ष कर स्वरूप एक टोकरी चावल, एक बकरी, एक कुक्कुट और अपने शिकार का चौथा भाग प्रदान करता है और चार दिन की कमाई देता है.सरदार की सहायता के लिए एक मंत्रिमंडल होता है जिसकी सहायता से वह न्याय करता है. कुकी लोगों में विश्वासघात की सजा मृत्यु है. खून के अपराध में खूनी और उसके परिवार को गुलामी करनी होती है.स्त्रियों को किसी प्रकार की स्वतंत्रता नहीं है उन पर सरदार का आदेश लागू होता है. कुकी लोग उथेन नामक देवता की पूजा करते हैं.

    

परंपरागत रूप से कुकी जंगलों में छोटी बस्तियों में रहते थे, जिनमें प्रत्येक उसके अपने प्रमुख द्वारा शासित होती थी.मुखिया का सबसे छोटा पुत्र अपने पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी होता था, जबकि अन्य पुत्रों का गाँव की लड़कियों से विवाह करवाकर उन्हें स्वयं अपने गाँव स्थापित करने के लिए भेज दिया जाता था. कुकी बांस के जंगलों में एकाकी जीवन व्यतीत करते हैं, जो उन्हें निर्माण व हस्तकला सामग्रियां उपलब्ध कराते हैं. ये जंगल को जलाकर भूमि साफ़ करके चावल उगाते है, जंगली जानवरों का शिकार करते हैं और कुत्ते, सूअर, भैंस, बकरी व मुर्गियां पालते हैं. इस बीच 3 मई, 2023 से, मणिपुर दो जातीय समूहों के बीच जातीय संघर्ष के कारण जबरदस्त उथल-पुथल में है. यह हिंसा मैतेई लोगों द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की लंबे समय से चली आ रही मांग को लेकर भड़की थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 100 से ज्यादा लोगों की जान चली गई और 47,914 लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली. कारितास  इंडिया के अध्यक्ष सेबेस्टियन कल्लूपुरा, और कार्यकारी निदेशक फादर (डॉ.) पॉल मूनजेली ने 13 जून 2023 को मणिपुर के जातीय संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया. कारितास इंडिया प्रबंधन की यात्रा का उद्देश्य मणिपुर में मौजूदा हिंसक स्थिति के आधार पर स्थिति का आकलन करना और पुनर्वास कार्यक्रम की योजना बनाना है. यात्रा की शुरुआत इंफाल पूर्व की उपायुक्त सुश्री डायना देवी के साथ बैठक से हुई. डीएसएसएस के सहायक निदेशक, फादर. सोनी ने कारितास  प्रबंधन टीम का परिचय उपायुक्त से कराया. फादर पॉल ने मणिपुर के इम्फाल पूर्व और कांगपोकपी जिलों में आपातकालीन प्रतिक्रिया के दौरान कारितास इंडिया टीम को उनके बहुमूल्य और सकारात्मक समर्थन के लिए उपायुक्त के प्रति आभार व्यक्त किया.

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