विशेष : महादेव को प्रसन्न करने के लिए रुद्रभिषेक है सबसे अचूक उपाय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 30 जुलाई 2023

विशेष : महादेव को प्रसन्न करने के लिए रुद्रभिषेक है सबसे अचूक उपाय

शिव केवल शुभ्रतनु ही नहीं, बल्कि उनका सारा शरीर ज्योतिर्मय है। वे मानो अज्ञानता से भरे जगत में मर्कतमणि की चकाचौंध कर देने वाली ज्योति हैं। विविध मणियों की ज्योति से जैसी चमक निकलती है, शिव की शुभ्र देह से उसी प्रकार की चमक झलकती है। इसी कारण कहा गया है- शिव का माधुर्यमय, सुगंधमय कोमल शरीर इस वर्ण की उज्जवलता से और भी अधिक मनोरम व मनोहर बन गया है। पुराणों के अनुसार शिव की उपासना करने से व्यक्ति को कई जन्मों के पुण्य का फल मिलता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सावन में महादेव को प्रसन्न करने के लिए.रुद्रभिषेक सबसे अचूक उपाय है. रूद्र और शिव एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं, रूद्र शिव का प्रचंड रूप है. शिव कि कृपा से सारी ग्रह बाधाओं और समस्याओं का नाश होता है

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शिव का अंत नहीं हो पाता। शिव हैं, जो चिर और सनातन हैं। शिव सारस्वत हैं। इसलिए सारस्वत शिव की महिमा को कोई नकार नहीं सकता। इसीलिए शिव ही मूल सत्य हैं। वे शक्ति और प्रकाश के पुंज हैं। साथ ही अंतिम सुंदर भी वही हैं। सुनने से थोड़ा भ्रम होता है, पर जब यह उच्चरित होता है, ‘‘श्मशाने स्वक्रीड़ा सार हर पिशाच सहचरा। स्थिता, भष्मांगलेप निकोदि परिकर। अमल्यं शालं तव भवतु नामैव मखिलं‘‘।। अर्थात हजारों भूत-पिशाच के साथ वे क्रीड़ा करते हैं, राख रूपी भस्म को शरीर पर लपेटे हुए भय पैदा करते हैं, लेकिन ज्ञानवान के लिए यही चरम है, यही मूल वास्तविकता है, यही अवस्था उन्नत मनुष्य को ऊर्जा की प्राप्ति कराता है। ऐसे भी नाश या परिवर्तन चाहे नाश हो या मृत्यु। अंतिम विदाई श्मशान या अन्य अविहित क्षेत्र, पर सत्य तो एक ही है शिव, शिव और स्वयं शिव। इनके अतिरिक्त जो है, सब माया। यही शिव की विशेषता व सुंदरता है। शिव जन-जन के हृदय में स्थापित व पूजित हैं। ‘तथापि स्मतृषणं वरद् परमं मंगल मसि‘। शिव के रहस्य को जो समझ गया, उसका कल्याण अटल है। यही पूर्ण सुख व शांति का मार्ग है, उनकी तमाम सकारात्मक कल्याण निश्चित हो जाता है। ज्योतिषियों के अनुसार शिव को प्रसंन करने का सर्वोच् उपाय रुद्राभिषेक है। देवी देवता भी शिव कृपा के लिए शिव शक्ति के ज्योति - स्वरुप रुद्र का अभिषेक करते हैं। रुद्र अर्थात जो दुखों को दूर करें वहीं रुद्र हैं। रुद्राभिषेक में शिवलिंग की विधिवत पूजा की जाती है। रुद्र के पूजन से सब देवताओं का पूजन स्वतः संपंन हो जाता है। प्राचीनकाल से रुद्र की पूजा होती चली आ रही है। शस्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति हेतु रुद्राभिषेक के लिए विभिन्न द्रव्यों का उपयोग किया जाता है। 


रुद्राभिषेक

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शिवलिंग पर मन्त्रों के साथ विशेष वस्तुएं अर्पित की जाती हैं. इस पद्धति को ही रुद्राभिषेक कहा जाता है. इसमें शुक्ल यजुर्वेद के रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रो का पाठ किया जाता है. सावन में रुद्राभिषेक करना बेहद शुभ होता है. मान्यता है कि सावन में रुद्राभिषेक करने से मनोकामनाए जल्दी पपूरी हो जाती हैं. मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना काफी उत्तम होता है. इसके अलावा घर में पार्थिव शिवलिंगपर भी अभिषेक कर सकते हैं। घर से ज्यादा मंदिर में, इससे ज्यादा नदी तट पर, इससे ज्यादा पर्वतों पर फलदायी होता है. शिवलिंग के अभाव में अंगूठे को भी शिवलिंग मानकर उसका अभिषेक किया जा सकता है। महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं, तो वह मूर्चि्छत हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है। भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए विल्वपत्र और शमीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी- तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव 100 कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक विल्वपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक शमीपत्र का महत्व है। विल्वपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। विल्वपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा है कि एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। श्रावण महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया। इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुप कर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़ कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहां वह विल्वपत्र फेंक रहा था, उसके नीचे शिवलिंग स्थापित था। तब से विल्वपत्र का महत्व है। जहां तक आस्थावनों का अभिषेक का सवाल है तो इसके लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग को अर्पित करते है। शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए। मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहिए। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है। रात्रि में जागरण कर वेदमंत्र संहिता, रुद्राष्टा ध्यायी पाठ ब्राह्मणों के मुख से सुनने से यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है। इस दिन त्रिपुण्ड लगाकर, रुद्राक्ष धारण करके, शिवजी को बिल्व पत्र, ऋतु फल एवं पुष्प के साथ रुद्र मंत्र अथवा ओम नमः शिवाय मंत्र का जप करना चाहिए। जय-जय शंकर, हर-हर शंकर का कीर्तन करना चाहिए। कोई विशेष कामना हो तो शिवजी को रात्रि में समान अंतर काल से पांच बार शिवार्चन और अभिषेक करना चाहिए। किसी भी प्रकार की धारा लगाते समय शिवपंचाक्षर मंत्र ‘ओम नमः शिवाय’ का जप करना चाहिए।


रवि योग में मनेगा चौथा सोमवार

सावन का चौथे सोमवार पर रवि योग बन रहा है। इस दिन रुद्राभिषेक के लिए शिववास भी है, लेकिन ये सुबह जल्द ही खत्म हो जाएगा। इस दिन रवि योग सुबह 05 बजकर 42 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा विष्कम्भ योग सुबह से लेकर रात 11 बजकर 05 मिनट तक रहेगा। जिसके बाद प्रीति योग शुरू हो जाएगा। रवि और प्रीति योग को बेहद शुभ माना जाता है। 31 जुलाई को शिववास प्रातः काल से लेकर सुबह 07 बजकर 26 मिनट तक है। ऐसे में सावन के चौथे सोमवार पर रुद्राभिषेक करने के लिए शुभ समय सुबह 07 बजकर 26 मिनट तक ही रहेगा। इस दिन शिववास नंदी पर है।


रुद्राभिषेक पूजा विधि

सावन के चौथे सोमवार पर सुबह स्नान के बाद व्रत और शिवजी की पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शुभ मुहूर्त में किसी शिव मंदिर में जाकर या घर ही शिवलिंग की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करें। गंगाजल या दूध से शिवजी का अभिषेक करें। भगवान शिव को चंदन, अक्षत, सफेद फूल, बेलपत्र, भांग की पत्तियां, शमी के पत्ते, धतूरा, भस्म और फूलों की माला अर्पित करें। इसके बाद शिव जी को शहद, फल, मिठाई, शक्कर, धूप-दीप अर्पित करें। इसके बाद शिव चालीसा और सोमवार व्रत कथा का पाठ करें। आखिर में शिवलिंग के पास दीपक जलाएं और शिव जी की आरती करें। इस दिन शिववास नंदी पर है।


कल्याणकारी है रुद्राभिषेक

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घी की धारा से अभिषेक से वंश का विस्तार होता है. इक्षुरस से अभिषेक से मनोकामनाएं पूरी होती हैं, कुंडली के दुर्योग नष्ट हो जाते हैं। शक्कर मिले दूध से अभिषेक से व्यक्ति विद्वान हो जाता है. शहद से अभिषेक करने पर पुरानी से पुरानी बीमारियां खत्म हो जाती हैं। गाय के दूध से अभिषेक से आरोग्य की प्राप्ति होती है। शक्कर मिश्रित जल से अभिषेक से संतान प्राप्ति सरल हो जाती हैं। भस्म से अभिषेक करने पर व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है। गंगाजल चढ़ाने से सर्वसुख व मोक्ष की प्राप्ति होती है। दूध की धारा से अभिषेक करने से मुर्ख भी बुद्धिमान हो जाता है, घर की कलह शांत होती है। जल की धारा से अभिषेक करने से विभिन्न मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। घृत यानी घी की धारा से अभिषेक करने से वंश का विस्तार, रोगों का नाश तथा नपुंसकता दूर होती है। इत्र की धारा चढ़ाने से काम, सुख व भोग की वृद्धि होती है। शहद के अभिषेक से टीबी रोग का क्षय होता है। गन्ने के रस से आनंद की प्राप्ति होती है।


प्रमुख जाप मंत्र

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सावन के प्रदोष काल में स्फटिक शिवलिंग को शुद्ध गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से स्नान करवाकर धूप-दीप जलाकर ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्रः प्रचोदयात, मंत्र का जाप करने से समस्त बाधाओं का शमन होता है। बीमारी से परेशान होने पर और प्राणों की रक्षा के लिए महामृत्युंजय मंत्र ओम त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टीवर्धनम. उर्वारुकमिव बंधनान मृत्योर मुक्षीय मामृतात.’ का जाप करें। याद रहे, महामृत्युंजय मंत्र का जाप रुद्राक्ष की माला से ही करें। यह मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है। शिव का मृत्युंजय मंत्र वेदों के सबसे प्रतिष्ठित मंत्रों में से एक माना जाता है। मृत्युंजय अर्थात् मृत्यु पर विजय। आत्मा की मृत्यु नहीं होती। वह एक शरीर से दूसरे में चली जाती है। मृत्युंजय मतलब अल्पकालिक पर मन की जीत और अनंत की ओर उसकी उड़ान। मन यह समझ लेता है कि मैं शाश्वत हूं, मुझ में एक ऐसा तत्व है, जो अपरिवर्तनशील है। इसके बाद कोई भय नहीं रहता। भय, मृत्यु का लक्षण है। आप भय पर जीत पाकर अपने छोटे मन की छोटी पहचान से मुक्त हो जाते हैं और इस विनाशी संसार से अविनाशी चेतना की ओर बढ़ते हैं। हमारी आत्मा अविनाशी है और हमारा शरीर नश्वर- हम दोनों का एक संयोजन हैं। अक्सर हमारा मन नश्वर से जुड़ जाता है और उसे लगने लगता है कि वह मर रहा है। मृत्युंजय मंत्र हमारे मन को अपनी सीमित पहचान से असीमित पहचान की ओर अग्रसर कर देता है। उसमें यह प्रार्थना है- ‘शिव मुझे शक्ति दें। वे मुझे शक्तिशाली बनाएं। वे हमें बंधन से मुक्त कराएं। आपकी जन्मकुंडली में बृहस्पति ग्रह अगर कष्ट दे रहा हो तो भगवान शिव की आराधना से सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और मनोकामना पूरी होती है। खासकर उन लोगों को, जिनकी जन्मकुंडली में बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हैं, उन्हें तो हर हाल में शिव जी की पूजा कर बृहस्पति ग्रह को मजबूत करना चाहिए। जिन लोगों की जन्मकुंडली में शनि अपनी नीच राशि मेष में हैं, उन्हें भी शिव जी के व्रत से ही लाभ मिलेगा। साथ ही शनि की साढ़ेसाती और ढैया वाली राशियों- मेष, सिंह, तुला, वृश्चिक, धनु वालों को व्रत करने से लाभ होगा। जिन लोगों के विवाह में अड़चन आ रही है, वे गणोश जी की पूजा के साथ महाशिवरात्रि का व्रत करते हैं तो बहुत जल्द उनका विवाह हो जाएगा। जो लोग खराब सेहत होने के कारण व्रत नहीं कर सकते, वे केवल भगवान शिव से संबधित मंत्र का जाप अवश्य करें। ‘महामृत्युंजय’, ‘ओम नमः शिवाय’ आदि के जाप से उन्हें बहुत लाभ मिलेगा। जो लोग सर्पदोष से पीड़ित हैं, उन्हें तो यह व्रत अवश्य करना चाहिए। नमस्ते त्वां महादेवं लोकनां गुरभीस्वरम्। सम्पूर्ण कामनां कामपूराड़धिपम।। अतएव सावन का पवित्र मास शिव के इसी रूप का प्रतीक है। वर्षा, हरियाली तो शिव रूपी प्राकृतिक सुंदरता को और भी निखार देता है। इसलिए कहा गया है कि तव तत्वं न जानामि हे दृशो महेश्वरः। यादृशरत्वं कामनां काम पुराड़धिपम।।




Sureah-gandhi

सुरेश गांधी

वरिष्ठ पत्रकार

वाराणसी

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