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सोमवार, 31 जुलाई 2023

भारत में जल परिवहन पुस्तक को राजभाषा सम्मान

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नयी दिल्ली 30 जुलाई। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री  सर्बानंद सोनोवाल ने राजभाषा शील्ड एवं मौलिक पुस्तक योजना के तहत वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अरविंद कुमार सिंह को उनकी पुस्तक भारत में जल परिवहन के लिए सम्मानित किया गया। विज्ञान भवन में शनिवार को आयोजित मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति की बैठक में यह पुरस्कार दिया गया। इस समारोह में कई सांसद, मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी और सभी बंदरगाहों के प्रमुख अधिकारी मौजूद थे। उनकी लिखी पुस्तक भारत में जल-परिवहन भारत में नौवहन के गौरवशाली अतीत के साथ मौजूदा परिदृश्य में भविष्य की सम्भावनाओं की पड़ताल करती है। इस पुस्तक का प्रकाशन नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया ने किया है। सदियों तक जल परिवहन हमारे सामाजिक-आर्थिक विकास में मददगार रहा। ताकतवर जलमार्गों के तट पर वैभवशाली नगर बसे। लेखक का मानना है कि आज भी देश में कई इलाकों में लाखों लोगों की जरूरतें जल परिवहन से पूरी होती है। धीमी गति के बाद भी यह गरीबों के लिए जीवनरेखा बना हुआ है और आपदाओं के दौरान देसी नौकाएं तक सबसे अधिक काम आती है।  


उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 7 अप्रैल 1965 को जन्में अरविंद कुमार सिंह हिंदी के प्रतिष्ठित पत्रकार और लेखक हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा हासिल करने के बाद पिछले साढ़े तीन दशकों से वे पत्रकारिता और लेखन से जुड़े हैं। जनसत्ता दैनिक से अपना कैरियर आरंभ करने वाले अरविंद कुमार सिंह ने अमर उजाला, जनसत्ता एक्सप्रेस,हरिभूमि समेत कई अखबारों को सेवाएं दी और तीन सालों तक रेल मंत्रालय में सलाहकार भी रहे। एक दशक तक राज्य सभा टीवी में संसदीय मामलों के संपादक के तौर पर पर काम किया। राज्य सभा की मीडिया सलाहकार समिति के अलावा कई विश्वविद्यालयों के बोर्ड आफ स्टडीज के सदस्य भी रहे हैं। श्री सिंह पीएम युवा कार्यक्रम के मेंटर भी रहे हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी 600 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी तथा टेलिविजन चैनलों पर 400 से अधिक कार्यक्रम प्रसारित हुए है। अरविंद कुमार सिंह संचार, परिवहन क्षेत्र और ग्रामीण समाज के अध्येता हैं। अरविंद सिंह कई पुस्तकों के लेखक हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तक भारतीय डाक हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू तथा असमिया भाषा में प्रकाशित हुई है। डाक टिकटों में भारत दर्शन पुस्तक के अलावा उन्होंने भारतीय महिला कृषक नामक पुस्तक का हिंदी अनुवाद भी किया है। एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम और कई राज्यों में पाठ्यक्रम में उनकी रचनाएं शामिल किया है। श्री सिंह को भारत सरकार के साक्षरता पुरस्कार, गणेशशंकर विद्यार्थी पत्रकारिता पुरस्कार, हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा साहित्यकार सम्मान (पत्रकारिता), चौधरी चरण सिंह कृषि पत्रकारिता पुरस्कार, इफको हिंदी सेवी सम्मान, शिक्षा पुरस्कार 2009, भारतीय प्रेस परिषद के ग्रामीण पत्रकारिता में उत्कृष्टता पुरस्कार, महेश सृजन सम्मान के अलावा राष्ट्रमंडल संसदीय संघ की ओर सम्मानित किया जा चुका है।


भारत में जल परिवहन पुस्तक के बारे में

नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित श्री सिंह की पुस्तक भारत में जल-परिवहन के अतीत और मौजूदा परिदृश्य में अन्तर्देशीय जल परिवहन की स्थिति व भविष्य की सम्भावनाओं की पड़ताल करती है। किसी ज़माने में पूरब में इलाहाबाद, पटना जैसे शहर और पश्चिम में लाहौर से सक्खर तक पोत निर्माण हुआ करता था और यहाँ से होकर समुद्री सीमा तक जाया जा सकता था। भारत की नदियों, तटवर्ती शहरों, उनके अतीत, नौवहन के इतिहास के बारे में किताब बहुत मूल्यवान जानकारियां देती है। विभिन्न विषय के अध्येताओं, ख़ासतौर पर विद्यार्थियों के लिए यह पुस्तक उपयोगी है। सदियों तक जल परिवहन हमारे सामाजिक-आर्थिक विकास में मददगार रहा। ताकतवर जलमार्गों के तट पर वैभवशाली नगर बसे। आज भी देश में कई इलाकों में लाखों लोगों की जरूरतें जल परिवहन से पूरी होती है। धीमी गति के बाद भी यह गरीबों के लिए जीवनरेखा बना हुआ है और आपदाओं के दौरान देसी नौकाएं तक सबसे अधिक काम आती है। पर यह सच्चाई भी है कि सूचना, संचार और परिवहन क्रांति के इस दौर में बहुत से पर्यावरण मैत्री साधन नष्ट हो गए हैं। सड़कों, रेलों और वायु परिवहन के व्यापक विस्तार के बाद भी यात्री और माल परिवहन का ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ है। ऐसे में नयी संभावनाओं के रूप में अंतर्देशीय जल परिवहन और तटीय जहाजरानी पर हमारी निगाह आ टिकती है, जिसमें सस्ते दर पर थोक माल परिवहन की क्षमता है। यह क्षेत्र विकसित होगा तो क्रूज पर्यटन से लेकर जल क्रीडा जैसी गतिविधियों से रोजगार के नए मौके पैदा होंगे। रेलों और मोटरों के अभ्युदय के बाद से दुनिया भर की सोच तेज रफ्तार की तरफ गयी है। और हम प्रकृतिप्रदत्त साधनों की अनदेखी करने लगे। नदियों या नहरों को अब हम सिंचाई या पेयजल का साधन भर मानते हैं। ये नौवहन के काम आ सकती हैं, इस तरफ हमारा ध्यान कम जाता है। इसी सोच से हमारी बहुत सी नदियों की नौवहन क्षमता समाप्त हुई। अंग्रेजी राज से ही यह क्रम चला और रेलों और सड़कों के विस्तार की होड़ में जलमार्गों का विनाश होता रहा। 


1985-86 में इस दिशा में सरकार का ध्यान गया और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण बना जिसके बाद कुछ विचार मंथन आरंभ हुआ। 2014 तक कुल पांच राष्ट्रीय जलमार्ग थे। पर बाद में 106 नए राष्ट्रीय जलमार्गों की घोषणा हुई। हालांकि इनमें से सीमित संख्या में ही पुनर्जीवित होने की संभावना पायी गयी। इस पुस्तक में जल परिवहन की चुनौतियों और संभावनाओं सभी पक्षों पर विस्तार से अध्ययन किया गया है।

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